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Friday 6 July 2018

खगोल सॉफ्टवेयर : ब्रह्मांड का आभासी अन्वेषण

खगोल शास्त् अथवा खगोलविज्ञान(Astronomy) विज्ञान की वह शाखा है जिसमें आकाशीय पिण्डों, उनकी गतियों और अंतरिक्ष में मौजूद विविध प्रकार की चीजों की खोज और उनका अध्ययन किया जाता है। खगोलविज्ञान दुनिया का सबसे लुभावना और सबसे पुराना विज्ञान है, वास्तव में यह ब्रह्मांड का वह विज्ञान है, जिसमें सूर्य, ग्रहों, सितारों, उल्काओं, पिण्डों, नक्षत्रों, आकाश गंगाओं तथा उपग्रहों की गति, प्रकृति, नियम, संगठन, इतिहास तथा भविष्य में संभावित विकासों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।

भौतिकशास्त्र का एक अहम हिस्सा माने जाने वाले खगोल विज्ञान को कई शाखाओं में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं।

  • एस्ट्रोफिजिक्स(Astrophysics)
  • एस्ट्र्रोमेटेओरोलॉजी(Astrometeorology)
  • एस्ट्र्रोबायोलॉजी(Astrobiology)
  • एस्ट्र्रोजियोलॉजी(Astrogiology)
  • एस्ट्र्रोमेट्री(Astrometry)
  • कास्मोलॉजी(Cosmology)

ये सभी शाखाएँ मिलकर ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने में मदद करती हैं। यह विज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें अतिउन्नत तकनीक का उपयोग किया जाता है, चाहें सूर्य, ग्रहों, सितारों, उल्काओं, पिण्डों, नक्षत्रों, आकाशगंगाओं का अध्ययन हो या उस अध्ययन को प्रस्तुत करना हो।

सिमुलेशन(Simulation): एक ऐसी ही तकनीक है जिसका उपयोग खगोलविज्ञान के अध्ययन को प्रस्तुत करने में किया जाता है। शाब्दिक रूप से, किसी वास्तविक चीज, प्रक्रम या कार्यकलाप का किसी अन्य विधि से अनुकरण करना सिमुलेशन कहलाता है। सिमुलेशन का कार्य कम्प्यूटरों के द्वारा किया जाता है। वर्तमान समय में प्रौद्योगिकी, प्राकृतिक विज्ञानों, सामाजिक विज्ञानों एवं अन्यान्य क्षेत्रों में कम्प्यूटरी सिमुलेशन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। सिद्धान्त एवं प्रयोग के अलावा कम्प्यूटरी सिमुलेशन भी विज्ञान में शोध की एक अपरिहार्य विधि बन गयी है। यदि आपको भी खगोलविज्ञान में रूचि है और आप कंप्यूटर का उपयोग करते हो तो आप भी सिम्युलेटर सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सकते है। कंप्यूटर सिमुलेशन सॉफ्टवेयर(computer simulation software) छोटे बच्चों को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते है और खगोलविज्ञान में उनकी दिलचस्पी को बढ़ा सकते है।

यहां हम उन सिम्युलेटर सॉफ्टवेयर का उल्लेख कर रहे है जो न केवल लुभावने है बल्कि आपके और आपके बच्चों के ज्ञान को भी बढ़ायेंगे। ये वे अंतरिक्ष सिमुलेटर है जो आपको परत्यक्ष ब्रह्मांड का अन्वेषण करने की अनुमति देते है।

स्पेस इंजन(Space Engine)

स्पेस इंजन

यह उत्कृष्ट सिमुलेशन आपको विंडोज पीसी पर ब्रह्मांड को बेहतर तरीके से देखने और समझने की अनुमति देता है। आप इस सिम्युलेटर को विंडो कंप्यूटर पर डाउनलोड और रन करने के लिए स्वतंत्र है। यह तारों, ग्रहों, सूर्य समेत पृथ्वी से दूरस्थ आकाशगंगाओं तक, ब्रह्मांड को फिर से बनाने के लिए वास्तविक खगोलीय डेटा का उपयोग करता है। किसी खगोलीय अवलोकन में जहां डेटा की कमी है, वहां यह कार्यक्रम स्टार सिस्टम और ग्रहों को प्रक्रियात्मक रूप से उत्पन्न आंकड़ो का उपयोग करता है। स्पेस इंजन वास्तव में बेहतरीन सिम्युलेटर है जो बड़े पैमाने पर आपको अंतरिक्ष की सैर करा सकता है। हमें विश्वास है यह अंतरिक्षीय अन्वेषण आपके लिए संतोषजनक और प्रेरणादायक होगा। अधिकृत वेबसाइट पर जाने के लिए यहाँ Space Engine क्लिक करें।

 

यूनिवर्स सैंडबॉक्स(Universe Sandbox)

यूनिवर्स सैंडबॉक्स

यह भी विंडोज कंप्यूटर के लिए निर्मित लेकिन अब सभी ऑपरेटिंग सिस्टम में कार्यरत शानदार अंतरिक्ष सिम्युलेटर है। कोई भी भौतिक विज्ञानी आपको बताता है की ब्रह्मांड में सबसे महत्वपूर्ण बल गुरुत्वाकर्षण है। यह सिम्युलेटर आपको सटीक न्यूटनियन भौतिकी का उपयोग करके सिमुलेशन निर्मित करता है साथ ही आपको न्यूटनियन भौतिकी के साथ बदलाव करने का अवसर भी देता है। बृहस्पति के बगल में आप एक ब्लैक होल निर्मित कर सकते है और अपने सौर मंडल को भी निगल सकते है। आप चंद्रमा को उड़ा सकते है और हर किसी पिंड को बर्बाद भी कर सकते है। गुरुत्वाकर्षण को स्थिर कर दो आकाशगंगाओं को एक दूसरे की तरफ झुका सकते है।यूनिवर्स सैंडबॉक्स आपको मैक्रो स्तर पर अपने ब्रह्मांडीय प्रयोगों को देखने का वेहतर विकल्प देता है। वैसे आप इस सिम्युलेटर का उपयोग ज्ञान अर्जित करने के लिए करें, खगोलीय विध्वंसो के लिए नहीं। अपने सिस्टम पर इस सॉफ्टवेयर को स्थापित करने या अधिकृत वेबसाइट पर जाने के लिए यहाँ Universe Sandbox क्लिक करें।

ऑर्बिटर 2010(Orbiter 2010)

ऑर्बिटर 2010

ऑर्बिटर पूरे ब्रह्मांड को फिर से बनाने के बजाय अंतरिक्ष उड़ान के यांत्रिकी पर केंद्रित है। आप अपना नासा अंतरिक्ष यान लॉन्च करें या अपना खुद का निर्माण करें और अनुकरण करें कि यह पृथ्वी के वायुमंडल को छोड़ने और सौर मंडल की कितनी दूर तक पहुंचने के लिए आप पसंद करते है। आप किसी भी ग्रह को या अंतरिक्ष स्टेशनों को देख सकते है और आप किसी भी ग्रह की सतह पर अंतरिक्ष स्टेशनों, उपग्रहों और लॉन्चिंग पैड तैनात कर सकते हैं। स्पेस इंजन की तरह, यह एक गैर-वाणिज्यिक परियोजना है, और इस प्रकार आप  विंडोज पीसी पर डाउनलोड और चलाने के लिए स्वतंत्र है। अपने विंडो सिस्टम पर इस सॉफ्टवेयर Orbiter 2010 को स्थापित करने के लिए इसके अधिकृत वेबसाइट पर जा सकते है।

सौर प्रणाली: अन्वेषण(The Solar System: Explore)

सौर प्रणाली: अन्वेषण

एक पूर्ण अंतरिक्ष सिमुलेशन की तुलना में यह एक डिजिटल तारामंडल है। यह सौर मंडल से जुड़े सभी जानकारिया और शैक्षणिक विवरण प्रदान करता है। यह एक खगोलीय सटीक प्रतिपादन उत्पन्न करने के लिए अवास्तविक गेम इंजन का उपयोग करता है। आप इस सिम्युलेटर के माध्यम से अपने सौर मंडल के जन्म और विकास को भलीभांति समझ सकते है। आपको पृथ्वी पर हर देश की जानकारी और उनकी सीमाएं की जानकारी भी देता है साथ ही 88 नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व भी यह सिम्युलेटर करता है। अपने कंप्यूटर पर इस सिमुलेशन सॉफ्टवेयर को डाउनलोड करने के लिए यहाँ The Solar System: Explore Your Backyard क्लिक करें।

सेलेस्टीआ(Celestia)

सेलेस्टीआ

स्पेस सिमुलेशन फ्रंटियर के एक अनुभवी सॉफ्टवेयर के रूप में इसे देखा जाता है। सेलेस्टिया को मूल रूप से 2001 में रिलीज़ किया गया था और वैज्ञानिक रूप से सटीक, खुले ब्रह्मांड की खोज के लिए कई बार सेट किया गया है। आप इसके कैटलॉग में 118,322 सितारों में से किसी भी दिव्य निकायों के बीच पहुंच सकते हैं। यह एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है जिसे किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलाया जा सकता है। आप प्रति सेकंड लाखों प्रकाश वर्ष तक की रफ्तार से अंतरिक्षीय यात्रा सिमुलेट कर सकते हैं। इस ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर को अपने कंप्यूटर पर स्थापित करने के लिए यहाँ Celestia क्लिक करें।

वर्ल्डवाइड टेलिस्कोप(WorldWide Telescope)

वर्ल्डवाइड टेलिस्कोप

वर्ल्डवाइड टेलीस्कोप वास्तव में एक खगोलीय नक्शा है जो 3 डी वातावरण पर ब्रह्मांड की वास्तविक छवियों को ओवरले करता है। यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित किया गया है और हबल सहित जमीन और अंतरिक्ष दूरबीनों दोनों से इमेजरी का उपयोग करता है। कार्यक्रम कुछ गुंबद ग्रहों में भी पेश किया गया है। यह मुफ़्त है और वेब क्लाइंट के रूप में भी चलता है, बशर्ते आपके पास उपयुक्त सिल्वरलाइट ब्राउज़र प्लगइन हों। बेहद आकर्षक और विंडो कंप्यूटर के लिए पूर्णतः स्वतंत इस सिम्युलेटर को स्थापित करने के लिए आप यहाँ WorldWide Telescope जा सकते है।

केरवल स्पेस प्रोग्राम(Kerbal Space Program)

केरवल स्पेस प्रोग्राम

केरवल अंतरिक्ष कार्यक्रम यह एक काल्पनिक ब्रह्मांड को अनुकरण करता है, लेकिन यह व्यापक रूप से खगोल भौतिकी के बारे में एक महान शैक्षिक खेल के रूप में प्रशंसा करता है। व्यावहारिक अंतरिक्ष यान का निर्माण करें जो आपको छोटे केर्बल्स को कक्षा में लाने के लिए गुरुत्वाकर्षण और ईंधन की खपत के प्रभावों के बारे में बता सकता है। यह काल्पनिक रूप से आपके जहाज में जोड़े गए घटकों की स्थिति, आकार और मात्रा से यह सिम्युलेटर निर्धारित करेगी कि यह यान समताप मंडल या अंतरिक्ष तक पहुंचती है या नहीं। इस सिम्युलेटर में बहुत सुधार की जरूरत है जो लगातार किया जा रहा है। अधिकृत वेबसाइट पर जाने के लिए यहाँ Kerbal Space Program क्लिक करें।

उल्लेखनीय सभी सिम्युलेटर सॉफ्टवेयर आपको खगोलविज्ञान की बहुत सारी जानकारिया और शैक्षणिक विवरण प्रदान करता है लेकिन इन में से कुछ सॉफ्टवेयर का उपयोग ज्यादातर गेम खेलने के उद्देश्य से किये जाते है इसलिए हम सुझाव देते है की आप अपने बच्चों को अपने देख-रेख में ही इन सिम्युलेटर सॉफ्टवेयर के प्रयोग की अनुमति दे। इसमें से कुछ सिम्युलेटर खगोलीय विध्वंसो को भी सिमुलेट करने की अनुमति देते है इसलिए आप इन सिम्युलेटर का उपयोग अपने विवेक के अनुसार करें।



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Tuesday 3 July 2018

आसमानी मौत के दूत : संभावित रूप से खतरनाक धूमकेतु और क्षुद्रग्रह

पृथ्वी सूर्य का तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्मांड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है।रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये(ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा भी कर देता है।
पृथ्वी न केवल मानव का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन का अस्तित्व पाया जाता है। माना जाता है की इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ था लेकिन इस दरम्यान पृथ्वी पर बहुत सारे उतार-चढ़ाव और प्राकृतिक घटनाएं हुई। लेकिन पृथ्वी पर लंबे समय तक जीवन का अस्तित्व बना रह सके ऐसी भविष्वाणी नहीं की जा सकती, वैसे माना जाता है की जीवन उत्पत्ति और विकास क्रम बड़ा ही जीवट होता है किसी भी परिस्थिति में आपने आप को ढाल सकता है इसके वावजूद भी ब्रह्माण्ड में जीवन का न मिलना हमे बताता है की जीवन उत्पत्ति पर ब्रह्मांडीय नियम/ब्रह्मांडीय घटनाएं ज्यादा हावी है। वैसे पृथ्वी पर जीवन नष्ट होने के बहुत सारे संभावित कारण हो सकते है कुछ मानव निर्मित और कुछ प्राकृतिक निर्मित। इस लेख में हम उन प्राकृतिक निर्मित क्षुद्रग्रहों(Asteroids) और धूमकेतुओ(Comets) की चर्चा कर रहे है जो पृथ्वी के आसपास ही ख़तरा बनकर मड़राते रहते है।

नियर अर्थ ऑब्जेक्ट(near-Earth object: NEO)

काल्पनिक छवि: पृथ्वी के लिए संभावित रूप से खतरनाक एक क्षुद्रग्रह
विज्ञान की भाषा में ऐसे पिंडो को नियर अर्थ ऑब्जेक्ट(near-Earth object: NEO) कहा जाता है जिसे संभावित खतरनाक वस्तु(Potentially Hazardous object: PHO) के श्रेणी में रखा जाता है। इस श्रेणी में केवल क्षुद्रग्रह ही नहीं आते बल्कि वे धूमकेतु भी आते है जो पृथ्वी के काफी करीब से गुजरते रहते है, यदि इनकी टक्कर पृथ्वी से हो तो यह पृथ्वी के लिए बड़े घातक साथ ही दूरगामी प्रभाव छोड़ सकते है। इनमें से अधिकतर संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रह हैं जो 0.05 खगोलीय इकाइयों(AU) से भी कम दुरी से पृथ्वी की कक्षा से गुजरते है कभी-कभी तो इनका निरपेक्ष कांतिमान/चमक(Absolute magnitude) 22 तक देखा गया है। जनवरी 2018 तक लगभग 1885 ज्ञात संभावित खतरनाक वस्तुओं को खोजा जा चूका है। इनमे से 157 ऐसे PHOs जिनका व्यास 1 किलोमीटर से ज्यादा है जबकि 1601 अपोलो श्रेणी की क्षुद्रग्रह है शेष एटेन श्रेणी की क्षुद्रग्रह(Aten asteroids) है। सभी संभावित खतरनाक वस्तु को अगले 100 वर्षों या उससे अधिक के लिए पृथ्वी के लिए खतरा नहीं माना जा सकता है, क्योकि इनकी कक्षा अच्छी तरह से निर्धारित कर ली गयी है। लेकिन कुछ ऐसे भी क्षुद्रग्रह और धूमकेतु है जो अगले संभावित 100 सालों में पृथ्वी के लिए खतरनाक हो सकते है, यहां हम केवल इन्ही पिंडो को सूचीबद्ध कर रहे है।

संभावित रूप से खतरनाक धूमकेतु(Potentially hazardous comets)

धूमकेतु स्विफ्ट-टटल(109P/Swift-Tuttle)

धूमकेतु स्विफ्ट-टटल(109P/Swift-Tuttle)
अमेरीकन खगोलविज्ञानी लेविस शिफ्ट(Lewis Swift) ने 16 जुलाई 1862 में इस धूमकेतु की खोजा था यह एक नियमित अवधि में अपनी परिक्रमा पूरी करने वाला धूमकेतु है। यह अपनी एक परिक्रमा 133 सालो में पूरा करता है इसकी कक्षा को अच्छी तरह से निर्धारित किया जा चूका है। यह एक बड़ा धूमकेतु है जिसका व्यास लगभग 26 किलोमीटर है। यह काफी उज्जवल धूमकेतु(सापेक्ष कांतिमान 0.7) माना जाता है इसलिए इसे नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है। वैसे अब 2126 में यह धूमकेतु पृथ्वी के वेहद करीब होगा। यह एक ऐसा खतरनाक धूमकेतु है जिसकी कक्षा पृथ्वी के बेहद पास से गुजरती है, इस दरम्यान पृथ्वी कक्षा से इसकी कक्षा दुरी महज 84000 मील(0.0009 AU) की होती है। अबतक के प्राप्त अवलोकनों के अनुसार भविष्यवाणी की गयी है की अगस्त 2126 में पृथ्वी से इसकी दुरी 0.147 AU अर्थात 13,700,000 मील की हो सकती है लेकिन इस धूमकेतु से पृथ्वी की सबसे नजदीकी मुलाकात 3044 में होगी जब इन दोनों के बीच की दुरी 10 लाख किलोमीटर से भी कम की होगी। अभी तक के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जब स्विफ्ट-टटल सूर्य के वेहद करीब होता है तब इसकी अधिकतम गति 42.6 km/s तक हो जाती है जबकि इसकी सबसे न्यूनतम गति जब स्विफ्ट-टटल सूर्य से सबसे दूर होता है तब 0.8 km/s दर्ज की गयी है। आधुनिक शोध के अनुसार किसी धूमकेतु की कक्षा ज्यादा स्थिर(stable) नहीं होती, इसे स्थिर मानना मानव जाति के लिए घातक साबित हो सकता है इसलिए ऐसे धूमकेतुओ पर लगातार नजर बनाये रखना आवश्यक हो जाता है।
स्विफ्ट-टटल द्वारा छोड़े गए उल्काओ के मध्य से गुजरती पृथ्वी
वैसे स्विफ्ट-टटल पृथ्वी के लिए खतरनाक धूमकेतुओ की श्रेणी में तो है लेकिन यह प्रति वर्ष आपके लिए अद्भुत मनोरम दृश्य भी देकर चला जाता है। पृथ्वी अपनी कक्षा में आगे बढ़ते हुए जब इस धूमकेतु द्वारा छोड़े गए उल्काओ के मध्य से गुजरती है, तब सैकड़ों छोटी-बड़ी उल्काएं पृथ्वी पर बरसते हुए ऊपरी वायुमंडल में जलती हुई नजर आती हैं और आकाश में मनोरम दृश्य उत्पन्न हो जाता है। स्विफ्ट-टटल द्वारा प्रदर्शित इस मनोरम उल्का पात को अगस्त के महीने में देखा जा सकता है।

टेम्पल-टटल(55P/Tempel–Tuttle)


टेम्पल-टटल(55P/Tempel–Tuttle)
यह भी एक नियमित अवधि में सूर्य की परिक्रमा करने वाला धूमकेतु है इसका परिक्रमण काल लगभग 33 वर्षो का है। इस धूमकेतु को हेली टाइप धूमकेतुओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस धूमकेतु की खोज स्वंतंत्र रूप से विल्हेल्म टेम्पल(Wilhelm Tempel) द्वारा 19 दिसंबर 1865 में की गयी थी। उस समय इसकी कक्षा को ठीक तरह से नहीं समझा जा सका था इसलिए आवधिक धूमकेतु के रूप वर्गीकृत नहीं किया गया था बाद के अवलोकनों में ही इसकी कक्षा को भलीभांति समझा जा सका। पूर्व के अवलोकनों से हमे पता चलता है की यह धूमकेतु 26 अक्टूबर 1366 में पृथ्वी के सबसे करीब से गुजर चूका है उस समय पृथ्वी से इसकी दुरी लगभग 0.0229 AU अर्थात 3,430,000 किलोमीटर की रही थी।टेम्पल-टटल के केंद्र का द्रव्यमान लगभग 1.2×10^13 किलोग्राम और इसका व्यास लगभग 3.6 किलोमीटर का है जबकि पेरीहेलियन के समय इससे निकलनेवाली धारा का द्रव्यमान 5×10^12 किलोग्राम है। इस धूमकेतु की गति अवलोकन के समय 2.673 km/s की मापी गयी है लेकिन इसकी अधिकतम और न्यूनतम गति सम्बंधित आंकड़े अभी मौजूद नहीं है।
टेम्पल-टटल की कक्षा लगभग ऐसी है जो पृथ्वी की कक्षा से छेड़छाड़ ज्यादा करती है, जब पृथ्वी पेरीहेलियन(perihelion) के समय इसकी कक्षा के क्षेत्र में दाख़िल होती है तब यह धूमकेतु द्वारा छोड़ा गया सामग्री का फ़ैलाव ज्यादा नहीं होता है। इसका सरल अर्थ है की इसकी कक्षा पृथ्वी के कक्षा से जायदा दूर नहीं है। वैज्ञानिको को लगता है की इस संयोग का मतलब है पेरीहेलियन में धूमकेतु से निकलने वाली धाराएं घनी होती हैं जब वे पृथ्वी का ज्यादा करीब से सामना करते हैं। यह धूमकेतु भी मनमोहक लियोनिड उल्का पात(Leonid meteor shower) का प्रदर्शन कराती है, इस मनोरम दृश्य प्रदर्शन को दिसम्बर के महीने में देखा जाता है।

फिनले(15P/Finlay)

फिनले(15P/Comet-Finlay)
यह भी हमारे सौरमंडल का एक नियमित अंतराल पर दिखने वाला आवधिक धूमकेतु(periodic comet) है। इस कॉमेट की खोज साउथ अफ्रीका स्थित रॉयल ऑब्ज़र्वेट्री में कार्यरत खगोलविद विलियम हेनरी फ़िनले(William Henry Finlay) ने 26 सितंबर 1886 में की थी।इसी साल पहली बार पैराबोलिक कक्षा(parabolic orbit) की गणना की गयी थी, इस गणना से पहले एक भूले हुए धूमकेतु की कक्षा और फिनले की कक्षा को लगभग समान माना जाता था।  उस भूले धूमकेतु का नाम 54P/de Vico-Swift-NEAT था जिसे इटैलियन खगोलविद फ्रांसेस्को डी विको(Francesco de Vico) ने 1844 में खोजा था। कई साल के अवलोकनों के बाद यह निष्कर्ष निकला की डी विको द्वारा भुला धूमकेतु फिनले नहीं है क्योकि दोनों की कक्षाएं समान नहीं है दोनों कक्षाओं में कई विसंगतिया है।
इस धूमकेतु का व्यवहार भी कुछ अजीब सा रहा है इसकी उज्ज्वलता में 1929 के बाद से गिरावट दर्ज की गयी जो 1953 तक लगातार मापी गयी फिर इसकी उज्ज्वलता स्थिर हो गयी। लेकिन 16 दिसम्बर 2014 को इसकी उज्ज्वलता में वृद्धि देखी गयी तब इसकी उज्ज्वलता 11-9 दर्ज की गयी लेकिन 23 दिसम्बर 2014 को इसकी उज्ज्वलता फिर से मंद पड़ गयी थी। अभी तक हम केवल अनुमानित रूप से मानते है की इस धूमकेतु का व्यास लगभग 1.8  किलोमीटर का है लेकिन यह अनिश्चित आंकड़ा है। पृथ्वी कक्षा से इसकी न्यूनतम कक्षा दुरी 930,000 मील की है अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 2060 में यह धूमकेतु पृथ्वी से लगभग  3,700,000 मील की दुरी से गुजरेगा। इस धूमकेतु की गति लगभग 6.510 km/s दर्ज की गयी है लेकिन इसकी अधिकतम और न्यूनतम गति सम्बंधित आंकड़े अभी तक अज्ञात है। इसकी उज्ज्वलता में कमी पृथ्वी के लिए अच्छे संकेत नहीं है क्योकि ऐसे परिस्थितियों में इसका सटीक पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है।

ब्लैनपैन(289P/Blanpain)

ब्लैनपैन(289P/Blanpain)
यह एक छोटे अंतराल(short-period comet) पर पृथ्वी के पास से गुजरने वाला धूमकेतु है, इस धूमकेतु की खोज जीन जैक्विस ब्लैनपैन(Jean-Jacques Blanpain) ने 28 नवम्बर 1819 में की थी। ब्लैनपैन ने इस धूमकेतु को “बहुत छोटा और भ्रमित पिंड” बताया था। इसका परिक्रमण समय केवल 5.18 साल का है। इस धूमकेतु के खोजे जाने के बाद यह कही गायब हो गया था इसलिए इस धूमकेतु को उस समय मृत करार दे दिया गया था लेकिन 2013 में एक नया धूमकेतु खोजा गया जिसे 2003 WY25 नाम दिया गया। पान स्टारर्स(Pan-STARRS) ने कई अवलोकनों के बाद 2013 में अपने आधिकारिक बयान में बताया की यह कोई नया धूमकेतु नहीं है बल्कि यह 289P ही है जो अबतक भुला हुआ था। इतने कम समय पर अपनी परिक्रमा करने के वावजूद इस धूमकेतु के बारे में हमे ज्यादा जानकारी नहीं है। पृथ्वी कक्षा से इसकी न्यूनतम कक्षा दुरी 0.015 AU(2,200,000 km; 1,400,000 mi) की है, अनुमान के अनुसार यह धूमकेतु फिर से दिसम्बर 2019 में और 2025 में पृथ्वी के करीब से गुजरेगा। पृथ्वी से सबसे करीबी दुरी पर इसकी गति 10.282 km/s देखी गयी है लेकिन इसकी अधिकतम और न्यूनतम गति का आंकलन हम अभी तक नहीं लगा पाए है। यह धूमकेतु भी शानदार उल्कापात(Phoenicid meteor stream) का प्रदर्शन करता है जिसे भारत, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, हिंद महासागर, और दक्षिण अफ्रीका में भी देखा जा सकता है लेकिन इस उल्कापात को देख पाना बड़ा दुर्लभ माना जाता है।

लेवी(255P/Levy)

लेवी(255P/Levy)
लेवी जिसे P/2006 T1 और P/2011 Y1 के नाम से भी जाना जाता है यह एक आवधिक धूमकेतु है। इसकी कक्षा ज्यादा बड़ी नहीं है यह केवल 5.25 ~ 5.30 वर्ष में ही अपनी एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। इस धूमकेतु की खोज डेविड लेवी(David H Levy) ने 2 अक्टूबर 2006 को की थी।  पिछली बार जब यह सूर्य के काफी करीब आया था 2012 में तब इसकी सापेक्ष उज्ज्वलता 7 मापी गयी थी जबकि 2006 में इसकी सापेक्ष उज्ज्वलता लगभग 9.5 मापी गयी थी। इस धूमकेतु की गति अवलोकन के समय 13.684 km/s की मापी गयी है लेकिन इसकी अधिकतम और न्यूनतम गति सम्बंधित आंकड़े अभी मौजूद नहीं है।
2012 में इसकी उपस्थिति सूर्य के पास होने पर पृथ्वी से इसकी दुरी 0.2359 AU(35,290,000 km; 21,930,000 mi) के आसपास मापी गयी थी जबकि 2017 में जब यह सूर्य के पास आया तो इसकी दुरी पृथ्वी से थोड़ी कम मापी गयी थी। वैसे अवलोकनों के आधार पर यह माना गया की पृथ्वी कक्षा से इसकी न्यूनतम कक्षा दुरी 0.025 AU(3,700,000 km; 2,300,000 mi) के लगभग की रही है। इस धूमकेतु को भी संभावित रूप से खतरनाक धूमकेतु(Potentially hazardous comets) की श्रेणी में रखा गया है क्योकि यह एक शांत धूमकेतु है जो अपने आने का कोई आहट नहीं देता न ही कोई पद-चिन्ह छोड़ता है।

बर्नार्ड-बॉयटिनी(206P/Barnard–Boattini)

बर्नार्ड-बॉयटिनी(206P/Barnard–Boattini)
बर्नार्ड-बॉयटिनी पहला धूमकेतु था जिसे फोटोग्राफिक(photographic) तकनीक की मदद से खोजा गया था। अमेरीकन खगोलविज्ञानी एडवर्ड एमर्सन बर्नार्ड(Edward Emerson Barnard) ने 13 अक्टूबर 1882 को रात्रि में फोटोग्राफी करते इस धूमकेतु को खोजा था। खोजा जाने के बाद यह फिर से लुप्त हो गया थी जिसे बाद में देखे जाने पर इसे D/1892 T1 नाम से नामांकित किया गया फिर लंबे अंतराल तक यह धूमकेतु नजरों से ओझल बना रहा लेकिन आखिरकार 2008 में यह धूमकेतु एंड्रिय बॉयटिनी(Andrea Boattini) द्वारा फिर से देखा गया तब से इस धूमकेतु को बर्नार्ड-बॉयटिनी के नाम से जाना जाता है।
21 अक्टूबर 2008 को यह धूमकेतु पृथ्वी से करीब 0.1904 AU(28,480,000 km; 17,700,000 mi) की दुरी से गुजरा। इस धूमकेतु की भी गति सम्बंधित आंकड़े पूरी तरह से निश्चित नहीं है अवलोकन के अनुसार इसकी गति लगभग 8.882 km/s की है। यह बहुत ही फीका दिखने वाला धूमकेतु है इसलिए 2014 में इसे नहीं देखा जा सका। यह धूमकेतु वापस मार्च 2021 में फिर से पृथ्वी के पास से गुजरने वाला है लेकिन देखे जाने की संभावना फ़िलहाल अनिश्चित है इस धूमकेतु सूर्य का एक चक्क्र लगभग 6.51 जूलियन वर्ष में पूरी करता है इसलिए इस धूमकेतु को एक आवधिक धूमकेतु कहा जाता है।

धूमकेतु जिओकोबिनी-जेनर(Comet Giacobini–Zinner)

धूमकेतु जिओकोबिनी-जेनर(Comet Giacobini–Zinner)
 इसे आधिकारिक रूप से 21P/Giacobini–Zinner के नाम से भी जाना जाता है। यह हमारे सौरमंडल का एक नियमित अंतराल पर दिखने वाला आवधिक धूमकेतु(periodic comet) है। इसका परिक्रमण काल लगभग 6.621 जूलियन वर्ष का है। इस कॉमेट की खोज फ्रेंच खगोलविद मिचेल जिओकोबिनी(Michel Giacobini) और जर्मन खगोलविद अर्नेस्ट जेनर(Ernst Zinner) ने संयुक्त रूप से 20 दिसम्बर 1900 में की थी। यह एक उज्जवल धूमकेतु है इसे 1946 में सबसे उज्जवल रूप में देखा जा चूका है उस समय इसकी सापेक्ष उज्ज्वलता 5 मापी गयी थी जबकि कुछ अवलोकनों में इसकी उज्ज्वलता 8 मापी गयी है। सूर्य के करीब मापी गयी इसकी गति लगभग 29.250 km/s की है लेकिन यह इसकी अधिकतम गति हो ऐसा अभी तक नहीं माना जा सकता है।
इस धूमकेतु का केंद्र लगभग 2 किलोमीटर के व्यास का है पृथ्वी कक्ष से इसकी कक्षीय दुरी लगभग 0.035 AU(5,200,000 km; 3,300,000 mi) दर्ज की गयी है। इंटरनेशनल कोमेट्री एक्सप्लोरर(International Cometary Explorer) यान इस धूमकेतु के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इसके पुछ के करीब से गुजरा था और उनसे इस धूमकेतु के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की थी। जापानी मानव रहित प्रोब भी इस धूमकेतु के बारे में जानने के लिए 1998 में तैयारी की थी लेकिन ईंधन की कमी के कारण उसे इस अभियान को बंद करना पड़ा।

स्क़्वासमान-वाचमान(73P/Schwassmann–Wachmann)

स्क़्वासमान-वाचमान(73P/Schwassmann–Wachmann)
 जर्मन खगोलविद अर्नाल्ड स्क़्वासमान(Arnold Schwassmann) और अर्नो वाचमान(Arno Arthur Wachmann) द्वारा इस धूमकेतु की खोज 2 मई 1930 में हुई थी। यह एक नियमित अवधि में अपनी परिक्रमा पूरी करने वाला धूमकेतु है। यह अपनी एक परिक्रमा 5.36 साल में पूरा करता है और अब इसकी कक्षा को अच्छी तरह से निर्धारित किया जा चूका है। 2006 में जब यह सूर्य के बेहद करीब आ गया था तब सूर्य की गर्मी से इसका बहरी आवरण जो शायद बहुत ठंडा बर्फीला होगा इस धूमकेतु से टूटकर अंतरिक्ष में फ़ैल गया था। इस घटना से इस धूमकेतु की सापेक्ष चमक में कमी आयी लेकिन इसकी स्पस्ट संरचना का भी पता चला। फिर से जब 2011 में जब यह धूमकेतु सूर्य के करीब आया था तब इसकी सापेक्ष उज्ज्वलता 21.3 मापी गई थी। वैज्ञानिको के अनुसार यह धूमकेतु भी कई बार नजरों से ओझल होकर खो चूका है और वापस देखा भी गया है।
इस धूमकेतु के केंद्र का व्यास 1100 मीटर का है, पृथ्वी की कक्षा से इसकी कक्षीय दुरी लगभग 0.04 AU(6,000,000 km; 3,700,000 mi) की है। इस धूमकेतु की गति अवलोकन के समय 12.516 km/s की मापी गयी है लेकिन इसकी अधिकतम और न्यूनतम गति सम्बंधित आंकड़े अभी मौजूद नहीं है। धूमकेतु 73 पी शानदार उल्का शॉवर टाऊ हरक्यूलिड्स(Tau Herculids) का मूल जन्मदाता है इस उल्का पात को मई जून के महीने में देखा जा सकता है।
खगोलविज्ञानी लंबे समय से पृथ्वी के पास भटकने वाले और पृथ्वी के लिए संभावित खतरा उतपन्न करने वाले इन धूमकेतुओ को देख रहे है लेकिन संभव है कुछ धूमकेतु ऐसे भी हो सकते है जो अबतक हमारी नजरों से दूर हो। इन धूमकेतुओ पर लगातार नजर रखना बड़ा मुश्किल काम है क्योकि इनका आकार छोटा होता है इसलिए ये प्रकाश की बेहद कम मात्रा को ही प्रतिबिंबित कर पाते है। अवलोकनों से हमे पता चलता है की सूर्य के करीब आने पर ही हम इन धूमकेतुओं को देख पाते है। वैज्ञानिक काफी पहले इन धूमकेतुओं की कक्षा को स्थिर माना करते थे लेकिन आधुनिक अनुसंधान और धूमकेतुओं के व्यवहार से अब हम जानते है की इन धूमकेतुओं की कक्षा ज्यादा स्थिर नहीं है और कई आधुनिक शोध पत्रों में मुख्य रूप से उल्लेख किया गया है की धूमकेतुओं की कक्षा को सटीक मानना मानव की बड़ी भूल साबित हो सकती है। वैज्ञानिको ने 1908 में साइबेरिया में घटित तुंगुस्का घटना(Tunguska event) और चेल्याबिंस्क उल्का गिरने(Chelyabinsk meteor event) जैसी बड़ी घटनाओं को देखा है। जुलाई 2004 में वृहस्पति के साथ धूमकेतु शूमेकर-लेवी 9(Comet Shoemaker–Levy 9) की टक्क्र ने मानव जाति को दिखा दिया की धूमकेतु कितने घातक सिद्ध हो सकते है। अब वैज्ञानिक और खगोलविद नए उन्नत दूरबीनों और उपकरणों से सभी संभावित खतरनाक धूमकेतुओं पर लगातार नजर बनाये रखने की कोशिश में प्रयासरत है। वैसे पृथ्वी को खतरा केवल धूमकेतुओं से ही नहीं बल्कि क्षुद्रग्रहों से भी है आंकड़ों के अनुसार 20 से ज्यादा क्षुद्रग्रह संभावित रूप से पृथ्वी के लिए खतरनाक क्षुद्रग्रहों की श्रेणी में आते है।
अगले भाग में हम इन्ही संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रहों की चर्चा करेंगे..
स्रोत:  NASA JPL. Wikipedia. Seiichi Yoshida(Comet@aerith.net) and Sky.org.
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Sunday 1 July 2018

जेम्स क्लार्क मैक्सवेल : जिन्होने सापेक्षतावाद की नींव रखी

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जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) स्कॉटलैण्ड (यूके) के एक विख्यात गणितज्ञ एवं भौतिक वैज्ञानिक थे। इन्होंने 1865 ई. में विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिससे रेडियो और टेलीविजन का आविष्कार सम्भव हो सका। क्लासिकल विद्युत चुंबकीय सिद्धांत, चुंबकत्व और प्रकाशिकी के क्षेत्र में दिए गए सिद्धांतों के लिए उन्हें प्रमुखता से याद किया जाता है। मैक्सवेल ने क्रांतिकारी विचार रखा कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है और यह माध्यम से स्वतंत्र है। स्कॉटिश भौतिकविद जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने इस सिद्धांत से क्रांति ला दी। न्यूटन के बाद विद्युतचुंबकत्व के क्षेत्र में मैक्सवेल द्वारा किए गए कार्य को भौतिकी के क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा एकीकरण कार्य माना जाता है। यह कई क्षेत्रों से जुड़ा है।
मैक्सवेल का जन्म एडिनर्बग (स्कॉटलैण्ड) में 13 जून सन् 1831 के हुआ था। आपने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय तथा केंब्रिज में शिक्षा पाई। 1856 से 1860 तक आप ऐबर्डीनके मार्शल कालेज में प्राकृतिक दर्शन (Naturalphilosophy) के प्रोफेसर रहे। सन् 1860 से 68 तक आप लंदन के किंग कालेज में भौतिकी और खगोलमिति के प्रोफेसर रहे। 1868 ई0 आपने अवकाश ग्रहण किया, किंतु 1871 में आपको पुन: केंब्रिज में प्रायोगिक भौतिकी विभाग के अध्यक्ष का भार सौंपा गया। आपके निर्देशन में इन्हीं दिनों सुविख्यात कैंबेंडिश प्रयोगशाला की रूपपरेखा निर्धारित की गई। आपकी मृत्यु 5 नवम्बर 1879 में हुई।
18 वर्ष की अवस्था में ही आपने गिडनबर्ग की रॉयल सोसायटी के समक्ष प्रत्यास्थता (elasticity) वाले ठोस पिंडों के संतुलन पर अपना निबंध प्रस्तुत किया था। इसी के आधार पर आपने श्यानतावाले (viscous) द्रव पर स्पर्शरेखीय प्रतिबल (tangential stress) के प्रभाव से क्षण मात्र के लिये उत्पन्न होनेवाले दुहरे अपवर्तन की खोज की। सन् 1859 में आपने शनि के वलय के स्थायित्व पर एक गवेषणपूर्ण निबंध प्रस्तुत किया। गैस के गतिज सिद्धान्त (Kinetic Ttheory) पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करके, गैस के अणुओं के वेग के विस्तरण के लिये आपने सूत्र प्राप्त किया, जो “मैक्सवेल के नियम” के नाम से जाना जाता है। मैक्सवेल ने विशेष महत्व के अनुसंधान विद्युत् के क्षेत्र में किए। गणित के समीकरणों द्वारा आपने दिखाया कि सभी विद्युत् और चुंबकीय क्रियाएँ भौतिक माध्यम के प्रतिबल तथा उसकी गति द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इन्होंने यह भी बतलाया कि विद्युच्चुंबकीय तरंगें तथा प्रकाशतरंगें एक से ही माध्यम में बनती हैं, अत: इनका वेग ही उस निष्पत्ति के बराबर होना चाहिए जो विद्युत् परिमाण की विद्युतचुंबकीय इकाई तथा उसकी स्थित विद्युत् इकाई के बीच वर्तमान है। निस्संदेह प्रयोग की कसौटी पर मैक्सवेल क यह निष्कर्ष पूर्णतया खरा उतरा।
मैक्सवेल ने सबसे पहले प्रयोग के माध्यम से बताया कि विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र अंतरिक्ष में तरंगों के रूप में प्रकाश की गति से चलते हैं। वर्ष 1864 में मैक्सवेल ने विद्युत चुंबकत्व की गति का सिद्धांत दिया और पहली बार बताया कि प्रकाश वास्तव में उसी माध्यम में तरंग है जिससे विद्युत और चुंबकीय तरंग पैदा होती है।
उन्होंने विद्युत चुंबकत्व के क्षेत्र में एकीकृत मॉडल दिया, जिसे भौतिकी में एक बड़ा योगदान माना जाता है। मैक्सवेल ने मैक्सवेल वितरण का विकास किया जिसे गैसों की गतिज उर्जा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है।

बचपन

जेम्स का जन्म 1831 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में हुआ था। जब वह आठ वर्ष के थे, उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता जॉन ने अपनी बहन जेन के साथ उनकी संगति के लिए जिम्मेदारी संभाली। 1841 में, वह एडिनबर्ग अकादमी मे गये, वे एक संतोषजनक छात्र थे, लेकिन स्कूल के पाठ्यक्रम, विशेषकर ज्यामिति, चित्रकारी और गणित के बाहर के विषयों में बहुत रुचि ली थी। 14 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपना पहला वैज्ञानिक पत्र (ओवल कर्व्स) लिखा
1847 में, वह एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में चले गए जहां उन्होंने तर्कशास्त्र, गणित और प्राकृतिक दर्शन  का अध्ययन किया। हालांकि, स्कूल की तरह, वह पाठ्यक्रम के बाहर अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने में अधिक रुचि रखते थे। उन्होंने ध्रुवीकृत प्रकाश और प्रिज्म्स के गुणों की जांच की, और महत्वपूर्ण रूप से बिजली और चुंबकीय उपकरणों में अपनी प्रारंभिक जांच की। 18 वर्ष की आयु में, उन्होंने दो और शोध पत्रों को प्रस्तुत किया।
1850 में, वह कैंब्रिज ट्रिनिटी कॉलेज चले गए, और महान ट्यूटर विलियम हॉपकिंस।के तहत गणित का अध्ययन किया।

प्रारंभिक वर्ष और शिक्षा

1831 में एडिनबर्ग में पैदा हुए, मैक्सवेल ने अपने शुरुआती वर्षों में परिवार के घर डम्फ़्राइस Dumfries और गैलोवे( Galloway) में ग्लेन्लेयर(Glenlair) में बिताया। वे दस वर्ष की आयु मे एडिनबर्ग अकादमी मे गये। यहां उन्होंने गणित में एक असाधारण क्षमता का प्रदर्शन किया। उनके एक स्कूल मित्र पीटर गुथरी टाइट थे, जो एक प्रख्यात भौतिक विज्ञानी भी बन गए थे। मैक्सवेल का पहला वैज्ञानिक पेपर, जब वह 14 साल का था, तब लिखा गया जोकि पिन और स्ट्रिंग का उपयोग करके अंडाकार आकृतियों को चित्रित करने में उनकी रूचि से आया।

विश्वविद्यालय जीवन

मैक्सवेल ने एडिनबर्ग, लंदन और कैम्ब्रिज में अध्ययन किया, जहां उन्होंने एक साथ रंग के अलग-अलग रंगों को मिलाकर रंग दृष्टि में प्रयोग किया।इस समय अपने सबसे महत्ववपू्र्ण कार्य विद्युत चुम्बकीय विकिरण में अनुसंधान को आरंभ किया।अगले कुछ वर्षो मे वर्षों में उन्होंने पहली बार बिजली चुंबकत्व और प्रकाश से संबंधित चार समीकरण तैयार किए। इस सिद्धांत ने रेडियो तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की।

अनुसंधान कार्य

18 वर्ष की अवस्था में ही आपने गिडनबर्ग की रॉयल सोसायटी के समक्ष प्रत्यास्थता (elasticity) वाले ठोस पिंडों के संतुलन पर अपना निबंध प्रस्तुत किया था। इसी के आधार पर आपने श्यानतावाले (viscous) द्रव पर स्पर्शरेखीय प्रतिबल (tangential stress) के प्रभाव से क्षण मात्र के लिये उत्पन्न होनेवाले दुहरे अपवर्तन की खोज की। सन् 1859 में आपने शनि के वलय के स्थायित्व पर एक गवेषणपूर्ण निबंध प्रस्तुत किया। गैस के गतिज सिद्धान्त (Kinetic Ttheory) पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करके, गैस के अणुओं के वेग के विस्तरण के लिये आपने सूत्र प्राप्त किया, जो “मैक्सवेल के नियम” के नाम से जाना जाता है। मैक्सवेल ने विशेष महत्व के अनुसंधान विद्युत् के क्षेत्र में किए। गणित के समीकरणों द्वारा आपने दिखाया कि सभी विद्युत् और चुंबकीय क्रियाएँ भौतिक माध्यम के प्रतिबल तथा उसकी गति द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इन्होंने यह भी बतलाया कि विद्युच्चुंबकीय तरंगें तथा प्रकाशतरंगें एक से ही माध्यम में बनती हैं, अत: इनका वेग ही उस निष्पत्ति के बराबर होना चाहिए जो विद्युत् परिमाण की विद्युतचुंबकीय इकाई तथा उसकी स्थित विद्युत् इकाई के बीच वर्तमान है। निस्संदेह प्रयोग की कसौटी पर मैक्सवेल क यह निष्कर्ष पूर्णतया खरा उतरा।
मैक्सवेल ने सबसे पहले प्रयोग के माध्यम से बताया कि विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र अंतरिक्ष में तरंगों के रूप में प्रकाश की गति से चलते हैं। वर्ष 1864 में मैक्सवेल ने विद्युत चुंबकत्व की गति का सिद्धांत दिया और पहली बार बताया कि प्रकाश वास्तव में उसी माध्यम में तरंग है जिससे विद्युत और चुंबकीय तरंग पैदा होती है।

मैक्सवेल के समीकरण


विद्युत्चुम्बकत्व के क्षेत्र में मैक्सवेल के समीकरण चार समीकरणों का एक समूह है जो वैद्युत क्षेत्रचुम्बकीय क्षेत्र, वैद्युत आवेश, एवं विद्युत धारा के अन्तर्सम्बधों की गणितीय व्याख्या करते हैं। ये समीकरण सन १८६१ में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल के शोधपत्र में छपे थे, जिसका शीर्षक था – ऑन फिजिकल लाइन्स ऑफ फोर्स
मैक्सवेल के समीकरणों का आधुनिक स्वरूप निम्नवत है :
गाउस का नियम{\displaystyle \nabla \cdot \mathbf {E} ={\frac {\rho }{\epsilon _{0}}}}
चुम्बकत्व के लिये गाउस का नियम{\displaystyle \nabla \cdot \mathbf {B} =0}bf {B} =0}
फैराडे का प्रेरण का नियम{\displaystyle \nabla \times \mathbf {E} =-{\frac {\partial \mathbf {B} }{\partial t}}}
एम्पीयर का नियम
मैक्सवेल द्वारा इसमें विस्थापन धारा (displacement current) के समावेश के साथ
{\displaystyle \nabla \times \mathbf {B} =\mu _{0}\mathbf {J} +\mu _{0}\epsilon _{0}{\frac {\partial \mathbf {E} }{\partial t}}}
उपरोक्त समीकरणों में लारेंज बल का नियम भी सम्मिलित कर लेने पर शास्त्रीय विद्युतचुम्बकत्व की सम्पूर्ण व्याख्या हो पाती है।

मृत्यु

जेम्स सी मैक्सवेल की कैंब्रिज, 5 नवम्बर, 1897 को, पेट के कैंसर से इंग्लैंड में मृत्यु हो गई थी।
यह एक सुखद संयोग कहा जाएगा कि जिस वर्ष मैक्सवेल की मृत्यु हुई उसी वर्ष (1879) महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन का जन्म हुआ । शायद प्रकृति को इस महान वैज्ञानिक का पद रिक्त रखना गवारा न हुआ.उनकी खोजों ने आधुनिक दुनिया के तकनीकी नवाचारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया और अगली शताब्दी में भौतिकी को अच्छी तरह से प्रभावित करना जारी रखा, साथ ही अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे विचारकों ने उनके अपरिहार्य योगदान के लिए प्रशंसा की।
मैक्सवेल का मूल घर, अब एक संग्रहालय है, जो जेम्स क्लर्क मैक्सवेल फाउंडेशन की साइट है।
जेम्स क्लार्क मैक्सवेल(James Clerk Maxwell)
जेम्स क्लार्क मैक्सवेल(James Clerk Maxwell)
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पृथ्वी के बाहर किसी अन्य ग्रह पर बसने की बेताबी

“हमारी पृथ्वी ही वह ज्ञात विश्व है जहाँ जीवन है। आनेवाले समय में भी कहीं ऐसा कुछ नहीं दिखता जहाँ हम प्रस्थान कर सकें। जा भी सकें तो बस न सकेंगे। मानें या न मानें, इस क्षण तो पृथ्वी ही वह स्थान है जहाँ हम अटल रह सकते हैं।”

carl-sagan
कार्ल सागन
प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक कार्ल सागन का यह कथन शनि ग्रह के समीप से 1990 मे वायेजर अंतरिक्ष यान द्वारा ली गई पृथ्वी की विश्वप्रसिद्ध तस्वीर “पेल ब्ल्यु डाट” के संदर्भ मे था। 1990 से लेकर अब तक अंतरिक्ष विज्ञान  मे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। क्या कार्ल सागन का यह कथन आज भी प्रासंगिक है? क्या हम पृथ्वी के बाहर किसी अन्य ग्रह पर जा सकते है ? क्या मानवता का अस्तित्व पृथ्वी के बाहर संभव है ?
मानवता का कुछ लाख वर्ष का इतिहास है लेकिन मानव पहली बार पृथ्वी के बाहर कदम पिछली सदी मे ही रखा है, यह क्षण 12 अप्रैल 1961 को आया था जब रूसी अंतरिक्ष यात्री युरी गागारीन अंतरिक्ष मे पहुंचे थे। मानवता की इस यात्रा का दूसरा पड़ाव 10 जुलाई 1969 को  आया था, जब नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा कदम पर रखे थे। उन्होने चंद्रमा की सतह पर कदम रखते हुये कहा था कि “एक मानव का एक छोटा कदम, मानवता के लिये एक बड़ी छलांग है। (दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड)”। यह अंतरिक्ष युग का आरंभ था,  इसके बाद हमारे कई अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष की गहराईयों मे थाह लेने भेजे गये है, जिसमे से वायेजर युग्म यान तो सौर मंडल के बाहर जा चुके है।
"एक मानव का एक छोटा कदम, मानवता के लिये एक बड़ी छलांग है। (दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड)"
“एक मानव का एक छोटा कदम, मानवता के लिये एक बड़ी छलांग है। (दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड)”
पिछले कुछ दशको मे हमारा अंतरिक्ष का ज्ञान पहले से कई गुणा बेहतर हुआ है। 1992 तक सूर्य के  आठ ग्रहों को ही जानते थे। 1992 मे पहली बार हमने सौर मंडल के बाहर किसी अन्य तारे की परिक्रमा करते एक ग्रह को खोजा था। इस खोज के पश्चात आज हम सौर मंडल के बाहर 3800 से अधिक ग्रहों को खोज चुके है। इसका अर्थ यह है कि मानवता को पृथ्वी से बाहर बसने के विकल्प पहले की तुलना मे अधिक है।
इसके दूसरी ओर अंतरिक्ष अध्ययन की दिशा मे कई परिवर्तन आये है। अब तक अंतरिक्ष अण्वेषन का कार्य सरकारी अंतरिक्ष संस्थानो के ही हाथो मे था, जिसमे अमरीकी संस्थान नासा, युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो, चीनी अंतरिक्ष संस्थान और जापानी अंतरिक्ष संस्थान है। पिछ्ले कुछ समय से कुछ निजी अंतरिक्ष संस्थान भी अंतरिक्ष अण्वेषण मे सामने आये है जिसमे एलन मस्क के नेतृत्व मे स्पेसएक्स प्रमुख है। स्पेसएक्स अंतरिक्ष संस्थान का जन्म ही मंगल पर मानव पर मानव कालोनी की स्थापना के उद्देश्य से हुआ है।
मानव पृथ्वी से बाहर जाने इतना बेताब क्यों है ? इस प्रश्न का उत्तर मानवता, पृथ्वी के इतिहास और मानव प्रवृत्ति से जुडा हुआ है। मानव ऐतिहासिक रूप से अपनी निवास स्थान से बाहर के स्थानो की यात्रा, और उन स्थानो पर अपनी कालोनिया बसाता आ रहा है। अब जब मानव पृथ्वी के चप्पे चप्पे पर पहुंच चुका है तो अगला पड़ाव निसंदेह ही पृथ्वी के बाहर के ग्रह है। वर्तमान मे इन यात्राओं का लक्ष्य सौर मंडल ही है और इनमे प्रमुख है हमारा चंद्रमा, पड़ोसी मंगल ग्रह, बृहस्पति का चंद्रमा युरोपा, शनि का चंद्रमा एन्सलेडस।
सौर मंडल मे जल
सौर मंडल मे जल
हमारी अब तक की जानकारी के अनुसार द्रव जल जीवन के लिये आवश्यक है, इसके बिना जीवन संभव नही है।  इसलिये मानव अंतरिक्ष अण्वेषण मे सबसे पहले जल खोजता है। अब तक चंद्रमा, मंगल, युरोपा और एन्सलेडस पर जल की उपस्थिति के प्रमाण मिल चुके है, जिसमे युरोपा और एन्सलेडस पर जल द्रव रूप मे उपस्थित है, जबकी चंद्रमा पर जल हिम के रूप मे उपस्थित है। मंगल पर जल के हिम रूप मे होने के ठोस प्रमाण है लेकिन द्र्व रूप मे उपस्तिथि के अस्पष्ट प्रमाण है। जीवन की दूसरी आवश्यकता ऐसे वातावरण की उपस्थिति है जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के विचरण कर सके। दुर्भाग्य से सौर मंडल मे पृथ्वी के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रह पर ऐसा वातावरण नही है। बुध ग्रह पर वातावरण ही नही है, शुक्र का वातावरण अत्यंत घना है, बृहस्पति, शनि , युरेनस , नेपच्युन पर वातावरण है लेकिन ठोस धरातल नही है। चंद्रमाओ मे युरोपा और एन्सलेडस पर भी वातावरण नही है। शेष रह जाता है मंगल जिस पर वातावरण है लेकिन विरल है, आक्सीजन की उपस्थिति है लेकिन कार्बन डाय आक्साइड जानलेवा है, इसके अतिरिक्त चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति के कारण घातक रूप से सौर विकिरण की उपस्थिति है। इसका अर्थ यही है कि पृथ्वी से बाहर सौर मंडल मे जीवन आसान नही है।
आपने पिछले कुछ वर्षो मे अखबारो मे पढ़ा होगा, टीवी पर देखा होगा कि मंगल ग्रह पर बसने के लिये कुछ उम्मीदवारो का चयन किया गया है और वे मंगल ग्रह पर बसने के उद्देश्य से एकतरफ़ा यात्रा के लिये निकट भविष्य मे रवाना होने वाले है। तो वे यात्री मंगल ग्रह पर जीवन कैसे गुजारेंगे ?
कांच के गुंबदो के अंदर जीवन
कांच के गुंबदो के अंदर जीवन
इस चुनौति से निपटने के लिये वैज्ञानिको ने दो उपाय सोच रखे है। एक उपाय है मंगल ग्रह कांच के बड़े बड़े गोल गुंबदो का निर्माण, जिसके अंदर एक ऐसा वातावरण बनाया जाये जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के पृथ्वी के जैसे जीवन बीता सके। इसके लिये इस गुंबद के अंदर पृथ्वी के जैसे वायुमंडलीय दबाव, गैसो का मिश्रण का निर्माण करना होगा, इस वातावरण मे 20% आक्सीजन, 78% नाईट्रोजन , 0.04% कार्बन डायाआक्साईड , अल्प मात्रा मे जल नमी तथा शेष अन्य गैसे होंगी। इस गुंबद मे जल स्रोत और आवासीय इमारतो का निर्माण होगा। कृषि तथा अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन की सुविधा होगी। लेकिन इस तरह के बड़े पैमाने के निर्माण की व्यवस्था करनी कठीन होगी और उसमे समय लगेगा। तब तक मंगल पर आरंभीक मानव बस्तिया कालोनी छोटे सीलेंडर नुमा संरचनाओ के रूप मे ही होंगी, जिसमे अधिकतम कुछ लोग ही रह पायेंगे, एक सिलेंडर से दूसरे सिलेंडर मे जाने के लिये उन्हे अंतरिक्ष सूट पहनने होंगे।
मंगल की टेराफ़ार्मिंग
मंगल की टेराफ़ार्मिंग
मंगल या किसी अन्य ग्रह पर बसने का दूसरा उपाय टेराफ़ार्मिंग है।  इस उपाय मे किसी ग्रह को संपूर्ण रूप से ट्रासफ़ोर्म किया जायेगा और उसे कृत्रिम रूप से पृथ्वी के जैसे बनाया जायेगा। अर्थात उस ग्रह पर पृथ्वी के जैसे वायुमंडल का निर्माण, चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण, सागरो , झीलो, नदीयो और जंगलो का निर्माण किया जायेगा, साथ ही पृथ्वी के जैसे मौसम बनाना होगा, जिसमे बरसात, बर्फ़बारी, ग्रीष्म , शीत का समावेश होगा। लेकिन यह एक बहुत दूर की सोच है और अभी हमारा विज्ञान उस स्तर तक नही पहुंचा है लेकिन शायद अगली एक सदी मे यह संभव होगा।
अंतरिक्ष यात्राओं मे सबसे बड़ी चुनौति यात्रा मे लगने वाले समय की होती है। हमारे तेज से तेज यान को अपने पड़ोस के मंगल ग्रह तक पहुंचने मे नौ से दस महिने लग जाते है। वायेजर को सौरमंडल से बाहर जाने मे चार दशक लग गये। सौर मंडल के बाहर तो तारों के मध्य दूरी अत्याधिक होती है। सूर्य के सबसे निकट का तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है, उससे प्रकाश को भी हम तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगते है। प्रकाश की गति अत्याधिक है, वह एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की यात्रा करता है। तुलना के लिये सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुँचने केवल आठ मिनट लगते है। कई प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने के लिये इतनी दूरी तक यात्रा करने मे वर्तमान के हमारे सबसे तेज राकेट को भी सैकड़ों वर्ष लगेंगे।
अंतरखगोलीय यात्राओं के लिये विशाल यान
अंतरखगोलीय यात्राओं के लिये विशाल यान
ऐसी लंबी यात्रा मे ढेर सारी अड़चने है, जिसमे कई वर्षो की इतनी लंबी यात्रा मानव या किसी भी अन्य बुद्धिमान जीव के लिये आसान नही होगी। यात्रा मे लगने वाले यान के निर्माण मे ढेर सारी प्रायोगिक मुश्किले आयेंगी, जैसे इस यान मे इस लंबी यात्रा के लिये राशन, पानी, कपड़े तथा ऊर्जा का इंतज़ाम करना होगा। यान मे कई वर्षो की भोजन सामग्री ले जाना संभव नही होगा, ऐसी स्थिति मे यान मे ही कृषि, पेड़, पौधे उगाने की व्यवस्था करनी होगी। विशाल यान के संचालन तथा यात्रीयों के प्रयोग के ऊर्जा के निर्माण के लिये बिजली संयत्र का निर्माण करना होगा। यान मे वायु से विषैली गैस जैसे कार्बन डाय आक्साईड को छान कर आक्सीजन के उत्पादन के लिये संयत्र चाहीये होंगे। प्रयोग किये गये जल के पुनप्रयोग के लिये संयत्र, उत्पन्न कचरे के पुनप्रयोग के लिये संयत्र चाहिये होंगे। इन सभी संयंत्रो के यान मे लगाने पर वह किसी छोटे शहर के आकार का हो जायेगा। इतना बड़ा यान पृथ्वी या ग्रह पर निर्माण कर अंतरिक्ष मे भेजना भी आसान नही है, इस आकार के यान का निर्माण भी अंतरिक्ष मे ही करना होगा।
इतने विशाल यान का निर्माण हो भी जाये तो इस यान के अंतरिक्ष यात्रीयों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होगा। यान के अंतरिक्षयात्रीयों के दल मे हर क्षेत्र से विशेषज्ञ चूनने होगे जिसमे इंजीनियर, खगोलशास्त्री, चिकित्सक इत्यादि प्रमुख होंगे। यदि यात्रा समय 30-40 वर्ष से अधिक हो तो इन यात्रीयों मे स्त्री-पुरुष जोड़ो को भेजना होगा जिससे इतनी लंबी यात्रा मे  यात्रीयों की नयी पिढी तैयार हो और वह इस यात्रा को आगे बढ़ाये। इस अवस्था मे यान मे पाठशाला और शिक्षक भी चाहीये होंगे।
समय संकुचन (Time Dilation)
समय संकुचन (Time Dilation)
लंबी यात्रा की इन सब परेशानीयो को देखते हुये यह स्पष्ट है कि पारंपरिक तरिके के यानो से अन्य तारामंडलो की यात्रा अत्याधिक कठीन और चुनौति भरी है। इस कठीनाई का भी हल है प्रकाशगति या उससे तेज गति के यानो का निर्माण। ध्यान रहे कि प्रकाशगति से तेज चलने वाले यान भी सबसे निकट के तारे से आवागमन मे कम से कम 8 वर्ष लेंगे, जबकि अंतरिक्ष मे दूरीयाँ सैकड़ो, हजारो या लाखो प्रकाशवर्ष मे होती है। प्रकाशगति से तेज यात्रा मे सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वैज्ञानिक नियमो के अनुसार प्रकाश गति से या उससे तेज यात्रा संभव नही है। यह आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके अनुसार प्रकाशगति किसी भी कण की अधिकतम सीमा है। कोई भी वस्तु जो अपना द्रव्यमान रखती है वह प्रकाशगति प्राप्त नही कर सकती है; उसे प्रकाशगति प्राप्त करने के लिये अनंत ऊर्जा चाहिये जोकि संभव नही है। मान लेते है कि किसी तरह से सापेक्षतावाद के इस नियम का तोड़ निकाल लिया गया और प्रकाश गति से यात्रा करने वाला यान बना भी लिया गया। इस अवस्था मे समय विस्तार (Time Dilation) वाली समस्या आयेगी। हम जानते है कि समय कि गति सर्वत्र समान नही होती है, प्रकाशगति पर या अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो मे प्रकाशगति धीमी हो जाती है। यदि कोई याम प्रकाश गति  से चलता है तो उस यान मे समय की गति धीमी हो जायेगी, जबकि पृथ्वी/एलीयन ग्रह पर समय की गति सामान्य ही रहेगी। प्रकाश गति से चलने वाला यान को पृथ्वी से प्राक्सीमा सेंटारी तक पहुँचने मे 4 वर्ष ही लगेंगे लेकिन तब तक पृथ्वी पर कई सदियाँ बीत जायेंगी।
यह तय है कि मानव का पृथ्वी से बाहर किसी अन्य ग्रह पर बसना आसान नही है लेकिन ऐसी क्या चुनौतियाँ है कि मानव पृथ्वी से बाहर किसी अन्य ग्रह पर बसने की सोच रहा है?
बीसवी सदी  के आरंभ मे मानव जनसंख्या 1.5 अरब थी। वर्तमान मे मानव जनसंख्या साढे सात अरब है। बढ़ती जनसंख्यासे पृथ्वी के संसाधनो पर प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधन सिमीत है, वे एक क्षमता तक ही जनसंख्या का बोझ सह सकते है। कुछ समय बाद ऐसा समय आना तय है कि पृथ्वी पर खाद्यान, पीने योग्य जल की कमी हो जायेगी। बढ़ती जनसंख्या से अन्य समस्याये भी बढ़ रही है। अधिक जनसंख्या के लिये रहने के लिये  अधिक जगह चाहिये, जिससे वनो की कटाई हो रही है। बढती जनसंख्या और अधिक सुख सुविधाओं के लिये अधिक ऊर्जा चाहिये और वर्तमान मे हम ऊर्जा के लिये हम जीवाश्म इंधन जैसे पेट्रोल, कोयले पर निर्भर है। इन इंधनो के ज्वलन से प्रदुषण बढ़ रहा है, पृथ्वी हर वर्ष अधिक गर्म होते जा रही है। इसे ही ग्लोबल वार्मींग कहते है जिसके प्रभाव मे ध्रुवो पर, ग्लेशियरो की बर्फ़ पिघल रही है, सागर का जल स्तर बढ़ रहा है। इन सब कारको से जलवायु  मे सतत परिवर्तन आ रहे है, कहीं बाढ़, कहीं सूखा पड़ रहा है, बेमौसम बरसात, चक्रवात, तूफ़ान आ रहे है। यदि इस गति से पर्यावरण नष्ट होता रहा तो हमे निकट भविष्य मे ही रहने के लिये कोई अन्य ग्रह खोजना होगा।
दूसरा महत्वपूर्ण कारण है पृथ्वी पर जीवन को अंतरिक्ष से मिलने वाली चुनौति, जैसे कोई आवारा क्षुद्रग्रह, धूमकेतु का पृथ्वी से टकराव। पृथ्वी पर इस तरह के उल्का पिंडो से टकराव होते रहते है। इसी तरह की एक और घटना मे 6.5 करोड़ वर्ष पहले एक विशाल उल्का पिंड या क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया था। यह टक्कर इतनी भयावह थी कि पृथ्वी पर उपस्थित अधिकांश जीवन समाप्त हो गया था।  ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिये आवश्यक है कि मानव के पास रहने के लिये कम से कम एक और वैकल्पिक ग्रह हो।
हालीवुड फ़िल्म इंटरस्टेलर का एक संवाद है
 “मानव जाति ने पृथ्वी पर जन्म तो लिया है लेकिन मानवता का भविष्य पृथ्वी पर समाप्त होना नही है। “
कादंबिनी जून 2018 मे प्रकाशित



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