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Thursday 29 November 2018

नकली चाँद की चाँदनी से रौशन होगा चीन!

धरती-चांद की सृष्टि होने के समय से ही सूरज की प्रचंड किरणों को सोखकर चांद उसे शीतलता में बदलकर दूधिया चांदनी पूरी धरती पर बिखेरता रहा है। रात के टिमटिमाते तारों भरे अनंत आकाश में चाद से सुंदर कुछ नहीं होता। इसलिए चांद सभ्यता के उदय काल से ही मानव की कल्पना को हमेशा से रोमांचित करता रहा है। दुनिया के लगभग सभी भाषाओं के कवियों ने चंद्रमा की पूर्णिमा की चांदनी वाले मनोहरी रूप पर अपनी-अपनी तरह से काव्य-सृष्टि की है। तब भला आम आदमी चांद और उसकी चांदनी का मुरीद क्यों न हो ! मगर नकली चांद, यह तो हैरान करने वाली बात है। भले यह बात अजीब लग रही हो, मगर सच है। अगर चीन की आर्टिफिशियल मून यानी मानव निर्मित कृत्रिम चांद बनाने की योजना सफल हो जाती है तो चीन के आसमान में 2020 तक अपना चांद चमकने लगेगा। यह नकली चांद चीन के चेंगडू शहर के सड़कों पर अपनी रोशनी फैलाएगा और तब वहां स्ट्रीटलैंप की जरूरत नहीं होगी।


चीन अपने इस अभिनव अंतरिक्ष योजना के जरिये अंतरिक्ष विज्ञान में एक बड़ी छलांग की तैयारी में जुटा हुआ है। उसकी इस प्रोजेक्ट को 2020 तक लांच करने का कार्यक्रम निर्धारित है। इस प्रोजेक्ट पर चेंगडू एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट कारपोरेशन नामक निजी संस्थान कुछ वर्षों से काम कर रहा है। चीन के अखबार पीपुल्स डेली के अनुसार, यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में है। चाइना डेली अखबार ने चेंगड़ू एयरोस्पेस कार्पोरेशन के निदेशक वु चेन्फुंग के हवाले से लिखा है कि सड़कों और गलियों में रोशनी करने पर होने वाले वर्तमान बिजली-खर्च को चीन घटाना चाहता है। नकली चांद से 50 वर्ग किलोमीटर के इलाके में रोशनी होगी, जिससे हर साल बिजली में आने वाला 17.3 करोड़ डॉलर का खर्च बचाया जा सकता है। आर्टिफिशियल मून आपदा या संकट से जूझ रहे इलाकों में ब्लैक आउट की स्थिति में भी बड़ा सहायक होगा।

चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में अमेरिका और रूस की बराबरी करना चाहता है। इसके लिए उसने कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं बनाई हैं। हालांकि चीन नकली चांद बनाने की कोशिश में पूरी गंभीरता से जुटा हुआ है, मगर नकली चांद को स्थापित करने की राह इतनी आसान नहीं है। पृथ्वी के आकाश के एक ख़ास हिस्से में रोशनी करने के लिए मानव निर्मित चांद को बिलकुल निश्चित जगह पर बनाए रखना काफी कठिन काम है। नब्बे के दशक में रूस और अमेरिका भी कृत्रिम चांद बनाने की असफल कोशिश कर चुके हैं। चीन के इस प्रोजेक्ट पर पर्यावरणविदों ने सवाल भी उठाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। दिन को सूरज और फिर रात में भी अधिक रोशनी फैलाने वाले कृत्रिम चांद के कारण वन्यप्राणियों का जीना दूभर हो जाएगा। उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। पेड़-पौधों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा प्रकाश-प्रदूषण भी बढ़ेगा।

अगर चीन का पहला प्रोजेक्ट सफल हुआ तो साल 2022 तक चीन ऐसे तीन चांद अपने आकाश में स्थापित कर सकता है। सवाल है कि नकली चांद काम कैसे करेगा? चेंगडू एयरोस्पेस के अधिकारियों के मुताबिक, नकली चांद एक शीशे की तरह काम करेगा, जो सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर पृथ्वी पर भेजेगा। यह कृत्रिम चांद हू-ब-हू पूर्णिमा के चांद जैसा ही होगा, मगर इसकी रोशनी असली प्राकृतिक चांद से आठ गुना अधिक होगी। नकली चाद की रोशनी को नियंत्रित भी किया जा सकेगा। यह पृथ्वी से महज 500 किलोमीटर की दूरी पर आकाश में स्थपित होगा। जबकि असली चांद तो पृथ्वी से तीन लाख 80 हजार किलोमीटर दूर है। भविष्य के कवियों को भी ऐसे चांद से परेशानी हो सकती है, जो प्रेयसी के मुखमंडल की तुलना हजारों सालों से शीतल चांदनी वाले चौदहवीं के चांद से करते आए हैं। तब पाठकों-दर्शकों का मन इस बात से आशंकित बना रहेगा और सवाल यह भी उठेगा कि असली चांद की जगह कहीं नकली से तो तुलना नहीं की जा रही है! (pk110043@gmail.com)



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परग्रही जीवन भाग 6 : जल – जीवन का विलायक

जल

जल

वर्तमान मे जीवन के विलायक के रूप मे केवल जल ही ज्ञात है। अब हम देखते है जल की ऐसी कौनसी विशेषताये है जो उसे जीवन का विलायक बनाये हुये है, कैसे वह आदर्श जैव विलायक के रूप मे सभी आवश्यक शर्तो को पूरा करता है। यह हमे अन्य विलायको के आदर्श जीवन के विलायक के रूप मे  तुलना करने के लिये बेंचमार्क का कार्य भी करेगा।

सर्वत्र व्याप्त जल : जल समस्त ब्रह्मांड मे सबसे अधिक उपलब्ध अणु है। इसकी उपलब्धता इतनी है कि अधिकतर ग्रहो मे यह बड़ी मात्रा मे पाया जाना चाहिये, विरोधाभाष यह है कि यह द्रव रूप मे दुर्लभ है। पृथ्वी पर अकाबनिक द्रवो मे केवल जल ही प्राकृतिक रूप से द्रव अवस्था मे  प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है।

जल एक सार्वत्रिक विलायक : जल सबसे अधिक प्रभावी विलायक है। इसे इसी गुण के कारण सार्वत्रिक विलायक ही कहते है। एक विलायक के रूप मे इसकी सफ़लता का कारण इसके अणु का अत्याधिक द्विध्रुवी(polarized) होना है, जिससे इसमे अन्य ध्रुविकृत अणु तथा लवण (Salt)भी घुल जाते है। अध्रुविकृत  कार्बनिक अणु जैसे तैलीय अणु ऐसे विशिष्ट वर्ह के अणु है जो साधारणत: जल मे नही घुलते है। लेकिन जल की इस सीमा के भी लाभ है जोकि हायड्रोफ़ोबिक प्रभाव उत्पन्न करता है। इस गूण की चर्चा हम आगे करेंगे।

जल एक सार्वत्रिक विलायक

जल एक सार्वत्रिक विलायक

एक बड़ी सीमा मे द्रव अवस्था : साधारण अवस्थाओं मे शुद्ध जल एक बड़ी सीमा मे द्रव अवस्था मे होता है 0-100°C/32-212°F। यदि इसमे साधारण लवण मिला दे तो उसका हिंमांक बिंदु कम होकर -23°C/-10°F तक पहुंच जाता है। यदि हम दबाव को वायुमंडलीय दबाव का 215 गुणा कर दे तो इसका बाष्पीकरण बिंदु 374°C/706°F पहुंच जाता है। इसका अर्थ है कि जल के द्रव अवस्था मे रहने की संभवत तापमान सीमा 397°C/716°F है।

जल का सबसे अधिक जलविरोधी(hydrophobic) प्रभाव है: जल का सबसे अधिक जलविरोधी प्रभाव होने से वह पृथ्वी पर जीवन मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह प्रभाव कोशीकाओं के मजबूत मेम्ब्रेन के निर्माण और रखरखाव के लिये अत्यावश्यक है। इस प्रभाव की भूमिका प्रोटीन की तहों के निर्माण के भी आवश्यक है, इन तहो के निर्माण से प्रोटीन त्रीआयामी आकार बना पाता है जिससे प्रोटीन एक निश्चित आकार मे रहकर अपने कार्य ठीक तरह से कर पाता है। प्रोटीन के तैलीय अमिनो अम्ल पानी से बचाव के लिये प्राकृतिक रूप से मध्य से मुड़ जाते है जबकि अन्य अमिनो अम्ल बाहर की ओर मुड़ते है।

जल के अन्य बहुत से विशिष्ट गुणधर्म है : जल के सबसे महत्वपूर्ण गुणो मे से एक यह है कि उससे कई विशिष्ट गुण साधारण सीमा से इस तरह बाहर है कि वे जीवन के लिये लाभदायी हो जाते है। जल का पारद्युतिक स्थिरांक(dielectric constant) अत्याधिक उच्च है जो कि जीवन के लिये उपयुक्त विलायको के लिये अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है; इसके अतिरिक्त बहुत कम विलायक ही जल की उष्मीय गुणो के आसपास पहुंच पाते है, ये  गुण तापमान और उष्मा के प्रभाव को नियंत्रित करते है। जल की अत्याधिक उच्च उष्माधारिता(Hear Capacity),  द्रवण की गुप्त उष्मा(heat of fusion) , वाष्पन की गुप्त ऊष्मा(heat of vaporization) तथा उष्मा संवहन क्षमता  है। साथ ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण गुणो मे अत्याधिक पृष्ठ तनाव, कम श्यानता तथा उच्च विसरण है।

जल कार्बनिक रसायन के लिये आदर्श है। हम देख चुके है कि कार्बन अकेला तत्व है जो जैव रसायन के लिये आदर्श है। कार्बनिक रसायन प्रक्रियाओं के लिये जल सबसे अधिक उपयुक्त विलायक है। यह दो महत्वपूर्ण कारणो से होता है, कार्बन  जल के दोनो तरह के परमाणुओं आक्सीजन और हायड्रोजन दोनो से मजबूत रासायनिक बंधन बनाता है। कार्बन और हायड्रोजन के मध्य का बंधन साधारण पदार्थो मे पाया जाने  वाला सबसे अधिक मजबूत बंधन है। दूसरा साधारण दबाव मे जल के द्रव अवस्था मे रहने वाली तापमान सीमा ( (0-100°C or 32-212°F)इतनी है कि कार्बन रसायन प्रक्रियाये आसानी से हो जाती है। कार्बन प्रक्रियाये इससे कम तापमान मे अन्य विलायको मे भी संभव है लेकिन वे धीमी होती है और उससे जैविक विकास बहुत धीमा हो जायेगा। इसके विपरीत उच्च तापमान पर यह प्रक्रिया संभव नही होंगी क्योंकि कार्बनिक यौगिक 200°C/392°F तापमान पर टूटने लगते है। जल के द्रव अवस्था मे रहने वाली सीमा कार्बनिक रसायन के लिये आदर्श है।

 

सारांश मे जल विलक्षण द्रव है। विलायक के रूप मे उसकी बराबरी मे कोई नही है। एक तरह से यह मानकर चल सकते हैं कि जल जीवन के लिये ही बना है।

 

अब तक हमने देखा है कि जल के गुणधर्म किस तरह जीवन के लिये आवश्यक है। लेकिन यह गुण ही जीवन के लिये महत्वपूर्ण नही है। जल की भूमिका समस्त ग्रह के पर्यावरण नियंत्रण मे भी महत्वपूर्ण भूमिका है जिससे जीवन संभव होता है। इसमे से कुछ महत्वपूर्ण गुण है

  1. झील, नदीयों और ध्रुविय क्षेत्रो को हीमीकृत होने से बचाना
  2. वैश्विक तापमान का नियंत्रण तथा तीव्र मौसमी बदलाव से बचाव
  3. भूगर्भीय संरचनाओं मे भूकटाव, नदी, घाटी निर्माण और मिट्टी के स्थानांतरण मे सहायता
  4. लवण और खनीजो के वैश्विक स्थानांतरण मे सहायता
  5. भूप्लेटो के स्थानांतरण मे सहायता
  6. जलीय जीवन को सहायता
  7. प्राणी और मानव के शारीरीक तापमान पसीने के द्वारा शीतलन और नियंत्रण

यह सभी कारक महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी जीवित प्राणी अपने वातावरण पर अत्याधिक निर्भर होते है। इसके स्थानापन्न विलायक पर चर्चा की जा सकती है, उसकी तुलना जल से करनी होगी। पृथ्वी पर जीवन के लिये जल की भूमिका चंहुओर है जिसमे जीवन के लिये अनुकुल वातावरण, मौसम का निर्माण और नियंत्रण का भी समावेश होता है। अन्य कोई द्रव इन गुणो मे जल के आसपास भी नही पहुंचता है।

 

जल की कमीयाँ

जल एक आदर्श विलायक है और उसमे कई अद्भुत गुण है लेकिन कुछ वैज्ञानिको के अनुसार वह पृथ्वी पर भी हर परिस्थिति मे आदर्श नही है। अब हम जल की इन कमीयों की चर्चा करेंगे।

  • जल हिमीकृत होने पर कोशीकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। जल का एक विचित्र गुण है, जब वह हिमीकृत होता है तो वह फ़ैलता है। यह झीलो, नदीयो तथा आर्कटीक सागर को हिमीकृत होने पर ठोस होने से बचाता है लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि जल कोशिका के अंदर हिमीकृत होने पर कोशीकाओं की मेम्ब्रेन को तोड़ देता है और कोशिका मृत हो जाती है। यह अन्य विलायकों पर आधारित जीवन पर लागु नही होगा क्योंकि वे हिमीकृत होने पर संकुचित होते है, जल के जैसे फ़ैलते नही है। सामान्यत: जल के हिमीकरण से होने वाली हानि अधिक नही होती है क्योंकि बहुत से पौधो और प्राणीयों ने जल के हिमीकरण के दौरान होनेवाले फ़ैलाव से बचने के उपाय खोज लिये है। उदाहरण के कुछ प्राणी प्राकृतिक हिमीकरण रोधी रसायन उत्पन्न करते है जो तापमान के जल के हिमीकरण बिंदु से नीचे जाने के बावजूद उनके शरीर के अंदर जल के हिमीकरण को रोक देते है।
  • जल प्रतिक्रियाशील है और मुख्य जैव अणुओं को क्षति पहुंचा सकता है। सामान्यत: जल को अक्रियाशील माना जाता है और उसे घरो मे, व्यवसायिक तथा औद्योगिक स्थानो मे धड़्ल्ले से प्रयोग किया जाता है। अपेक्षाकृत रूप से जल उदासीन है लेकिन कुछ साधारण सामान्य पदार्थो जैसे तैलिय हाइड्रोकार्बन के साथ वह अधिक क्रियाशील है। इसी वजह से कार्बनिक रसायनज्ञ अपने 80 प्रतिशत से अधिक कार्यो मे  जल की बजाय अन्य विलायको का प्रयोग करते है जिससे कि जल के अन्य प्रक्रियाओं को प्रभावित करने से बच सके। सबसे प्रमुख मुद्दा जल के द्वारा कुछ मुख्य जैविक अणु जैसे डी एन ए का धीमे धीमे क्षरण है, इससे बचाव के लिये डी एन ए के पास एक जटिल क्षतिपूर्ती प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। लेकिन यह पूरी कहानी नही है। पानी के पूर्णत उदासीन नही होने के कुछ लाभ भी है क्योंकि उसकी कुछ महत्वपूर्ण जैवरासायनिक प्रक्रियाओं मे आवश्यकता होती है।
  • जल कार्बनडाय आक्साईड के साथ संगत नही है। कार्बन डाई आक्साईड  पौधो मे प्रकाश संशलेषण के लिये एक प्रमुख घटक है। पृथ्वी पर पौधे वर्ष मे लगभग 258  अरब टन CO2 की खपत करते है। गैस के रूप मे समस्त वातावरण मे आसानी से समांगी रूप से फ़ैल जाती है जिससे वह समस्त जमीनी पौधो के लिये आसानी से उपलब्ध होती है। लेकिन जल मे CO2 आसानी से घुलनशील नही है, उसकी बजाय वह CO2 से प्रतिक्रिया कर घूलनशील बायोकार्बोनेट (HCO3) आयन बनाती है। यह जलीय वातावरण जैसे झीलो और सागरो मे जलीय वनस्पति के लिये CO2 की उपलब्धता के लिये अत्यावश्यक है। लेकिन गोरखधंधा यह है कि बायोकार्बोनेट (HCO3) आयन अधिक प्रक्रियाशील नही है लेकिन घुलनशील है, CO2 प्रक्रियाशील है लेकिन घुलनशील नही है। इस समस्या के कारण जलीय और स्थलीय पौधो के सामने एक चुनौति उत्पन्न होती है। पौधो के पास इस समस्या से निपटने का एक उपाय बायोटीन (biotin)एन्जाईम है। बायोटीन चयापचय प्रक्रिया के लिये अधिक ऊर्जा लेता है साथ ही CO2 की अधिक मात्रा प्रयोग नही कर पाता है। अधिकतर कार्बन यौगिकीकरण  एक दूसरे एंजाईम रुबिस्को(rubisco ribulose-1,5-bisphosphate carboxylase oxygenase) से किया जाता है। लेकिन रुबिस्को की छवि अपव्ययी तथा अक्षम एंजाईम होने ही है। यह जिन प्रक्रियाओं के लिये उत्प्रेरक का काम करता है वह धीमी तो होती है और वह O2 और CO2 मे अंतर नही कर पाता है। जब वह आक्सीजन को लेता है तब बहुत से अवांछित यौगिक बनते है जिसका अर्थ और अधिक मात्रा मे रुबिस्को की आवश्यकता होती है।  लेकिन यह समस्या जल या रुबिस्को की कमी ना होकर CO2 तथा O2 की आंतरिक रसायनिक समानता के कारण है।

 

सारांश यह है कि जल मे कुछ कमीयाँ है लेकिन वह उसके लाभो के सामने कुछ नही है। जल का निर्माण ही जीवन के लिये हुआ है। जीवन के लिये जल की तुलना मे कोई भी अन्य विलायक आदर्श ना होने से नासा जीवन की खोज के लिये अंतरिक्ष मे ग्रहों के पास द्रव जल की खोज करता है। लेकिन सभी खगोल जैव वैज्ञानिक ऐसा नही मानते है कि केवल जल ही जीवन के लिये आवश्यक संभव विलायक है, वे अमोनिया और उसके जैसे कुछ अन्य द्रवों  को जीवन के लिये संभव विलायक होने की संभावना पर विचार कर रहे है।

अगले लेख मे हम चर्चा करेंगे जल के विकल्पो की

लेख शृंखला

परग्रही जीवन भाग 1 : क्या जीवन के लिये कार्बन और जल आवश्यक है ?

परग्रही जीवन भाग 4 :बोरान आधारित जीवन

परग्रही जीवन भाग 5 : जीवन अमृत – जल एक महान विलायक



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Tuesday 27 November 2018

नासा का मंगलयान ’इनसाइट ’ मंगल पर उतरा

इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सिस्मिक इन्वेस्टिगेशंस

इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सिस्मिक इन्वेस्टिगेशंस

नासा का रोबोटिक मंगलयान (मार्स लैंडर) “इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सिस्मिक इन्वेस्टिगेशंस” 26 नवंबर 2018 सोमवार रात 1:24 बजे मंगल ग्रह पर सफलता पूर्वक उतर गया। नासा के अनुसार पहली बार प्रायोगिक उपग्रहो ने किसी अंतरिक्ष यान का पीछा करते हुए उस पर नजर रखी। इस पूरे अभियान पर 99.3 करोड़ डॉलर (करीब 7044 करोड़ रुपए) का खर्च आया। ये दोनों उपग्रह मंगल पर पहुंच रहे अंतरिक्ष यान से छह हजार मील पीछे चल रहे थे। नासा ने इसी साल 5 मई को कैलिफोर्निया के वंडेनबर्ग एयरफोर्स स्टेशन से एटलस वी रॉकेट के जरिए मार्स लैंडर लॉन्च किया था।

इनसाइट (InSight या Interior Exploration using Seismic Investigations, Geodesy and Heat Transport) एक रोबोट मंगल ग्रह लैंडर है। जो मूल रूप से मार्च 2016 में प्रक्षेपण के लिए योजना बनाई थी। इसके उपकरण की विफलता के कारण लांच करने से पहले दिसंबर 2015 में नासा ने मिशन स्थगित की घोषणा की। और मार्च 2016 में, लांच 5 मई 2018 के लिए पुनर्निर्धारित किया गया।

मंगल के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिए नासा ने क़रीब सात महीने पहले (इसी साल पांच मई को) इस खोजी अभियान को धरती से रवाना किया था।

30 करोड़ मील यानी 45.8 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय कर इनसाइट ने सोमवार को मंगल की ज़मीन पर एलिसियम प्लानिशिया नामक एक सपाट मैदान में लैंडिंग की। ये जगह इस लाल ग्रह की भूमध्य रेखा के नज़दीक है और लावा से बनी चादर के जैसी है।

इनसाइट का उद्देश्य मंगल की ज़मीन के भीतर छिपे राज़ की पड़ताल कर अधिक जानकारी जुटाना है।

मंगल ग्रह से इनसाइट ने धरती पर संकेत भेजा है कि वो काम शुरु करने के लिए तैयार है। उसने सूरज की रोशनी पाने के लिए अपने सोलर पैनल फैला लिए हैं और ख़ुद को चार्ज कर रहा है।

नासा के इनसाइट प्रोजेक्ट मैनेजर टॉम हॉफ़मैन ने कहा है,

“अब इनसाइट आराम से काम कर सकता है, वो अपनी बैटरी रीचार्ज कर रहा है।”

संक्षेप मे

  1. छह महीने पहले लॉन्च किया गया था इनसाइट अंतरिक्ष यान
  2. 7044 करोड़ रुपए अभियान की लागत, इसमेमं 10 देशों के वैज्ञानिक शामिल
  3. इनसाइट अंतरिक्ष यान पता लगाएगा कि 4.5 अरब साल पहले मंगल, धरती और चंद्रमा जैसे पथरीले ग्रह कैसे बने

अभियान

इनसाइट InSight

इनसाइट
InSight

इनसाइट के लिए लैंडिंग में लगने वाला छह से सात मिनट का समय बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस दौरान इसका पीछा कर रहे दोनों सैटेलाइट्स के जरिए दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नजरें इनसाइट पर रहीं। डिज़्नी के किरदारों के नाम वाले ये सैटेलाइट्स ‘वॉल-ई’ और ‘ईव’ ने आठ मिनट में इनसाइट के मंगल पर उतरने की जानकारी धरती तक पहुंचा दी। नासा ने इस पूरे अभियान का सीधा प्रसारण किया।

यह ग्रह की सतह पर उतरने के दौरान 19,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से छह मिनट के भीतर शून्य की रफ्तार पर आ गया। इसके बाद यह पैराशूट से बाहर आया और अपने तीन पैरों पर लैंड किया। नासा ने इस यान को मंगल ग्रह के निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए और इस ग्रह से जुड़े नए तथ्यों का पता लगाने के लिए तैयार किया है। नासा का यह यान सिस्मोमीटर की मदद से मंगल की आंतरिक परिस्थितियों का अध्ययन करेगा। नासा के इस यान में 1 बिलियन डॉलर यानी 70 अरब रुपए का खर्च आया है। सौर ऊर्जा और बैटरी से ऊर्जा पाने वाले लैंडर को 26 महीने तक संचालित होने के लिए डिजाइन किया गया है। हालांकि नासा को उम्मीद है कि यह इससे अधिक समय तक चलेगा।

पांच मई को लांच किया गया मार्स ‘इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सीस्मिक इंवेस्टिगेशंस, जियोडेसी एंड हीट ट्रांसपोर्ट’ (इनसाइट) लेंडर 2012 में ‘क्यूरियोसिटी रोवर’ के बाद मंगल पर उतरने वाला नासा का पहला अंतरिक्ष यान है।

दो साल का मिशन

यान के मंगल की धरती पर उतरते ही दो वर्षीय मिशन शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही इनसाइट पहला अंतरिक्ष यान हो जाएगा जो मंगल की गहरी आंतरिक संरचना का अध्ययन करेगा। इससे वैज्ञानिकों को हमारी अपनी पृथ्वी सहित पत्थर से बने सभी ग्रहों के निर्माण को समझने में मदद मिलेगी।

इनसाईट मंगल ग्रह के बारे में ऐसी जानकारियां दे सकता है, जो अरबों सालों से नहीं मिली हैं।

अपने अभियान के दौरान यह यान मंगल पर एक साइज़्मोमीटर रखेगा जो इसके अंदर की हलचलें रिकॉर्ड कर सकेगा। यह पता लगाएगा कि मंगल के अंदर कोई भूकंप जैसी हलचल होती भी है या नहीं।

यह पहला यान है जो मंगल की खुदाई करके उसकी रहस्यमय जानकारियां जुटाएगा। साथ ही एक जर्मन उपकरण भी मंगल की ज़मीन के पांच मीटर नीचे जाकर उसके तापमान का पता लगाएगा।

ग्रह के इस तापमान से यह पता चल सकेगा कि मंगल ग्रह अभी भी कितना सक्रिय है।

इसके तीसरे प्रयोग में रेडियो ट्रांसमिशन का इस्तेमाल होगा जिससे यह बता चलेगा कि यह ग्रह अपनी धुरी पर डगमगाते हुए कैसे घूमता है।

इस अभियान से जुड़ी एक वैज्ञानिक सुज़ैन स्म्रेकर कहती हैं,

“आप एक कच्चा अंडा लें और एक पक्का अंडा, दोनों को घुमाने पर वह अलग-अलग तरीक़े से घूमेगा क्योंकि उसके अंदर तरल पदार्थ अलग-अलग है। आज हम यह नहीं जानते हैं कि मंगल के अंदर तरल चीज़ है या ठोस चीज़। साथ ही इसका भीतरी भाग कितना बड़ा है यह नहीं मालूम। इनसाईट हमें इसकी जानकारियां देगा।”

इनसाइट से जुड़ी खास बातें

  1. इनसाइट द्वारा लिया प्रथम चित्र

    इनसाइट द्वारा लिया प्रथम चित्र

    358 किलो के इनसाइट का पूरा नाम ‘इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सिस्मिक इन्वेस्टिगेशंस’ है। सौर ऊर्जा और बैटरी से चलने वाला यह यान 26 महीने तक काम करने के लिए डिजाइन किया गया है।

  2. 7000 करोड़ के इस अभियान में यूएस, जर्मनी, फ्रांस और यूरोप समेत 10 से ज्यादा देशों के वैज्ञानिक शामिल हैं।
  3. इनसाइट प्रोजेक्ट के प्रमुख वैज्ञानिक ब्रूस बैनर्ट ने कहा कि यह एक टाइम मशीन है, जो यह पता लगाएगी कि 4.5 अरब साल पहले मंगल, धरती और चंद्रमा जैसे पथरीले ग्रह कैसे बने।
  4. इसका मुख्य उपकरण सिस्मोमीटर (भूकंपमापी) है, जिसे फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी ने बनाया है। लैंडिंग के बाद ‘रोबोटिक आर्म’ सतह पर सेस्मोमीटर लगाएगा। दूसरा मुख्य टूल ‘सेल्फ हैमरिंग’ है जो ग्रह की सतह में ऊष्मा के प्रवाह को दर्ज करेगा।
  5. नासा ने इनसाइट को लैंड कराने के लिए इलीशियम प्लैनिशिया नाम की लैंडिंग साइट चुनी। इस जगह सतह सपाट थी। इससे सीस्मोमीटर लगाने और सतह को ड्रिल करना आसान हुआ।
  6. इनसाइट की मंगल के वातावरण में प्रवेश के दौरान अनुमानित गति 12 हजार 300 मील प्रति घंटा रही।
  7. भूकंप से पैदा होने वाली सिस्मिक वेव से बनाया जाएगा मंगल का आंतरिक नक्शा
  8. मंगल पर भूकंप से पैदा होने वाली सिस्मिक वेव से मंगल के आंतरिक नक्शे बनेंगे। पहले भेजे गए क्यूरोसिटी अंतरिक्ष यान का लक्ष्य पानी पर था, लेकिन यह यान मंगल की संरचना का अध्ययन करेगा।
  9. मंगल ग्रह कई मामलों में पृथ्वी के समान है। दोनों ग्रहों पर पहाड़ हैं। हालांकि, पृथ्वी की तुलना में इसकी चौड़ाई आधी, भार एक तिहाई और घनत्व 30% से कम है।

मंगल ग्रह के बारे में 10 तथ्य

1- सौर मंडल  मंगल सूरज से 227,900,000 कि.मी. की दूरी पर है। सौर मंडल में धरती तीसरे क्रमांक पर है जिसके बाद चौथे क्रमांक पर मंगल है। धरती सूरज से 149,600,000 कि.मी. की दूरी पर है।

2- धरती की तुलना में मंगल ग्रह लगभग इसका आधा है। जहां धरती का व्यास 12,742 कि.मी. है, मंगल का व्यास 6,779 कि.मी. है। लेकिन वजन की बात की जाए को मंगल धरती के दसवें हिस्से के बराबर है।

3- मंगल सूरज का पूरा चक्कर 687 दिनों में लगाता है। इस आधार पर धरती की तुलना में मंगल सूरज का चक्कर लगाने में दोगुना वक़्त लेता है और यहां एक साल 687 दिनों का होता है।

4- मंगल पर एक दिन (जिसे सौर दिवस कहा जाता है) 24 घंटे 37 मिनट का होता है।

5- कँपकँपा देने वाली ठंड, धूल भरी आँधी का ग़ुबार और फिर बवंडर-पृथ्वी के मुक़ाबले ये सब मंगल पर कहीं ज़्यादा है। माना जाता है कि जीवन के लिए मंगल की भौगोलिक स्थिति काफ़ी अच्छी है।

गर्मियों में यहाँ सबसे ज़्यादा तापमान होता है 30 डिग्री सेल्सियस और जाड़े में यह शून्य से घटकर 140 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है।

6- धरती की तरह मंगल में भी साल में चार मौसम आते हैं- पतझड़, ग्रीष्म, शरद और शीत। धरती की तुलना में मंगल में हर मौसम लगभग दोगुना वक्त तक रहता है।

7- धरती और मंगल पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति अलग होने के कारण धरती पर 100 किग्रा वज़न वाला व्यक्ति मंगल पर 38 किग्रा वज़न का होगा।

8- मंगल के पास दो चांद हैं- फ़ोबोस जिसका व्यास 23 कि. मी. है और डेमियोस जिसका व्यास 12 कि.मी. है।

9- मंगल और धरती दोनों ही चार परतों से बने हैं। पहली पर्पटी यानी क्रस्ट जो लौह वाले बसाल्टिक पत्थरों से बना है। दूसरा मैंटल जो सिलिकेट पत्थरों से बना है।

तीसरे और चौथे हैं बाहरी कोर और आंतरिक कोर। माना जाता है कि ये धरती के कोर की तरह लोहे और निकल से बने हो सकते हैं। लेकिन ये कोर ठोस धातु की शक्ल में है या फिर ये तरल पदार्थ से भरा है अभी इसके बारे में पुख़्ता जानकारी मौजूद नहीं है।

10- मंगल के वातारण में 96 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड है, 1.93 प्रतिशत आर्गन, 0.14 प्रतिशत ऑक्सीजन और 2 प्रतिशत नाइट्रोजन है।

साथ ही यहां के वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड के निशान भी पाए गए हैं।



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Sunday 18 November 2018

1875 के पश्चात SI ईकाईयों मे सबसे बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन

पेरीस मे रखा किलोग्राम का बांट

पेरीस मे रखा किलोग्राम का बांट

लेखक : अनमोल

मापन ईकाईयो मे 1875 के पश्चात सबसे बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर मतदान हुआ और इस बदलाव के फ़लस्वरूप चार मूलभूत ईकाईयों की परिभाषाये पुननिर्धारित की गई, ये ईकाईयाँ है – एम्पीयर, किलोग्राम, केल्विन और मोल।

अंतराष्ट्रीय ईकाईयो की प्रणाली जिसे संक्षेप मे SI भी कहा जाता है, मे अब सभी ईकाईयाँ प्रकृति के विभिन्न मूलभूत स्थिरांको पर आधारित होंगी। यह नये मानक पुरानी वस्तुओं पर आधारित ईकाईयों के वर्तमान मूल्यों को मूलभूत स्थिरांको के रूप मे विभिन्न प्रयोगो द्वारा परिवर्तन कर निर्धारित किये गये है। वर्तमान मे प्रचलित मापन ईकाई किसी भौतिक वस्तु या अनियमित संदर्भ पर आधारित है।

अंतर्राष्ट्रीय भार तथा मापन ब्युरो(International Bureau of Weights and Measures (BIPM)) के पूर्व प्रमुख टेरी क्यिन(Terry Quinn) के अनुसार

“मेसोपोटामीया सभ्यता के बाद, शायद 5000 वर्ष पहले से किसी वस्तु के द्रव्यमान के मापन के लिये एक वस्तु और दूसरी ओर स्थानिय द्रव्यमान मापन का वजन बाट ही रहा है लेकिन अगले वर्ष की 20 मई से ऐसा नही रहेगा। यह अभूतपूर्व और असाधारण घटना है।

NIST के भौतिक वैज्ञानिक डेविड नेविल यह कहते है कि मापन ईकाईयों मे इस परिवर्तन से SI मापन प्रणाली परिपूर्ण नही हो जायेगी। वैज्ञानिको का अगला कार्य सेकंड की परिभाषा को बेहतर करना और अन्य ईकाईयों का इसमे समावेश करना है। यह हैरी पोर्टर की श्रृंखला के समापन के जैसा है कि अच्छाई की जीत हुई है लेकिन सब बर्बाद हो चुका है। SI प्रणाली मे अब भी बहुत कुछ साफ़ करना बचा है।

यह परिवर्तन क्यों आवश्यक था ?

किसी भी चीज़ को अनन्त शुद्धता से मापन संभव नही है। आपका एक मीटर वाला स्केल 1.00 मीटर का जरूर होगा मग़र अगर उस स्केल को और अच्छे यन्त्र से मापें तो 1.0025 मीटर हो सकता है। और उसे और भी अच्छे यंत्र से मापेंगे तो हो सकता है वह 1.002523 मीटर निकले। इसमें यह मापन बेहतर उपकरण से करते जाएँगे और स्केल की लंबाई का पता उतनी ही शुद्धता से लगता जाएगा मग़र लंबाई की जानकारी में कुछ न कुछ अशुद्धता हमेशा ही बनी रहेगी। इसी तरह मापने वाली आप किसी भी चीज़ को ले लें जैसे समय या द्रव्यमान; यह बात सबके लिये सत्य है।

किलोग्राम बाट के द्रव्यमान मे समय के साथ आया विचलन

किलोग्राम बाट के द्रव्यमान मे समय के साथ आया विचलन

वर्तमान मे इसमें एक अपवाद है। वो अपवाद है फ़्रान्स में 90% प्लेटिनम और 10% इरेडिम के सम्मिश्रण से बनी और निहायत ही कड़ी सुरक्षा में रखी एक चीज़ जिसे IPK या ‘इंटर्नैशनल प्रोटोटाइप ऑफ़ दि किलोग्राम’ कहते हैं। इसका द्रव्यमान एक किलोग्राम है। और वो इसलिए नहीं क्योंकि इसे बड़ी ही सावधानीपूर्वक तौलकर बनाया गया है बल्कि वो इसलिए क्योंकि उसी के द्रव्यमान से एक किलोग्राम को परिभाषित किया गया है। यानी उसका जो द्रव्यमान है उसको ही “एक किलोग्राम” कहते हैं। 1889 में GCPM या ‘जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेज़र्स’ का पहला सम्मेलन हुआ था और उसी में किलोग्राम के इस प्रोटोटाइप को स्वीकार किया गया था और तब से आजतक पूरे विश्व में किलोग्राम का जो मानक है वो वही है।

1889 में जब इस प्रोटोटाइप को स्वीकार किया गया तब इसकी कई प्रतिकृतियाँ भी बनवायी गयीं। मुख्य IPK और उसकी 6 मुख्य प्रतिकृति फ्रांस में ही BPIM या ‘इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स’ में शान्ति से कड़ी सुरक्षा में रखी हैं। फ़्रांस में ही इसकी दस प्रतिकृति और हैं और वो ही काम में लायी जाती हैं। इसके साथ ही BPIM ने हर सदस्य देश को भी एक एक प्रतिकृति मुहैया करवाई है। हर देश के अंदर किलोग्राम का जो मानक होता है वो उसके देश को मिली प्रतिकृति पर ही निर्भर करता है। भारत तो उस समय था नहीं इसलिए भारत को अपनी प्रतिकृति 1958 में मिली और ये प्रतिकृति दिल्ली स्थित नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में रखी है। भारत वाली प्रतिकृति का नंबर K57 है। (रोचक तथ्य, एक प्रतिकृति पाकिस्तान के पास भी है K93)
इतना सब तो ठीक है मगर IPK की ये जो इतनी प्रतिकृति हैं तो इनका वजन भी एक किलोग्राम है?

नहीं!

केल्विन के मूल्य की निर्धारण विधि

केल्विन के मूल्य की निर्धारण विधि

यह संभव ही नहीं है। लेकिन ये सभी प्रतिकृति उस मूल से जितना ज्यादा संभव हो सकता है उतनी समान हैं। इन सभी प्रतिकृति में समय के साथ-साथ एक किलोग्राम के लाखवें हिस्से जितना कम-ज़्यादा होता रहता है। इसलिए हर देश की प्रतिकृति समय-समय पर फ़्रांस में BPIM फ़िर से कैलिबरेट करवाने के लिए भेजी जाती है। भारत में जो प्रतिकृति है वो 1985, 1992, 2002 और 2012 में कैलिबरेट करवायी गयी। IPK में समस्या तो दिखने ही लगी होगी। सबसे पहली बात तो इस तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल है तो उसका प्रयोग नामुमकिन जैसा है। देशों को उसकी प्रतिकृति से काम चलाना होता है जो कि भले ही एक किलो हैं पर परिपूर्ण एक किलो नहीं हैं। दूसरी बात सबको एक प्रतिकृति देने से भी काम कहाँ चल जायेगा। हर देश में इतनी सारी प्रयोगशालाएं हैं, सबको कैसे मिलेगा अपने देश की ही प्रतिकृति तक पहुच देना कठीन है? ऊपर से ये स्वयं भी अपना द्रव्यमान बनाये नहीं रख पाता जो सबसे ज़रूरी है। माइक्रोग्राम में ही सही पर कमी बढोत्तरी तो होता ही है।

इसलिये मापन ईकाईयों के मूल्य निर्धारण के लिये कुछ ऐसा चाहिए जो विश्वव्यापी हो और जो समय के साथ भी कभी भी न बदले। कुछ ऐसा जो खुद में ही परिभाषित हो और प्रायोगिक तौर पर भी सर्वसुलभ हो। ऐसा क्या हो सकता है?

इसका उत्तर है मूलभूत भौतिक नियतांक। ये वो स्थिरांक हैं जिन्हें आप भले ही पूर्ण शुद्धता से माप न पाओ लेकिन इनका मूल्य स्थिर होता हैं जो कभी नहीं बदलता। हर देश-काल में एक जैसी ही रहती हैं। फिर क्यों न किलो आदि की परिभाषा इनपे ही आधारित कर दी जाये?

ईकाईयों के प्रयोग मे स्थिरांको/नियतांको का प्रयोग

विद्युत धारा का मापन

विद्युत धारा का मापन

यही सब सोंचते हुए 2011 में हुए GCPM के 24 वें सम्मलेन में वैज्ञानिकों ने इस आवश्यकता के कारण प्राकृतिक नियतांकों के आधार पर मापन की मूलभूत ईकाइयों को परिभाषित करने का प्रस्ताव सामने रखा। 2014 में 25वां सम्मलेन हुआ और इसमें भी इस बात पर चर्चा हुई मगर अंतिम फैसला नहीं हुआ क्यूंकि इन नियतांकों की जो भी मूल्य है वो हमेशा हमेशा के लिए एक परिभाषा के द्वारा स्थित की जानी थी और उसके लिए प्रयोगों द्वारा इन नियतांकों की सबसे शुद्धतम मूल्य का ज्ञात होना बहुत ज़रूरी था, जिससे कि नयी परिभाषा आने के बाद भी आम रोजमर्रा के कार्य में कोई प्रभाव नहीं पड़े और नया किलोग्राम पुराने किलोग्राम से जितना निकट हो सके उतना निकट हो।

मापन की ईकाईयों के आधार मे प्राकृतिक स्थिरांको के प्रयोग का आईडीया अपरिवर्तनीय है और वह किसी एक देश से संबधित नही है। यह आईडीया 19वी सदी के अंत मे प्रस्तावित किया गया था लेकिन इसके प्रयोग मे लाने के लिये 150 वर्ष लग गये।

यह तय हुआ कि इन नियतांकों के आधार पर परिभाषा तो बनेगी मगर उससे पहले इन नियतांकों को पुनः पूरी शक्ति के साथ और भी अधिकतम शुद्धता से मापा जाये। तो इतने सालों से दुनियाभर के अनेकों वैज्ञानिक इन नियतांकों को नयी नयी तकनीकें अपनाकर जितना हो सके उतनी शुद्धता से मापने की कोशिश करते रहे।

विद्युत पर कार्य करते वैज्ञानिक अपने प्रयोगो को उन्नत करते रहे और वे इलेक्ट्रानो की संख्या की गिनती करने मे जुटे रहे जिससे कि वे एक अकेले कण के आवेश के प्रयोग से एक एम्पीयर को परिभाषित कर सके। वर्तमान एम्पीयर की परिभाषा एक वैचारिक प्रयोग पर आधारित है जिसमे दो अनंत लंबाई के तारों का प्रयोग होता है। एम्पीयर की ईकाई मे यह परिवर्तन विद्युत इंजीनियरो द्वारा 1990 से प्रयुक्त प्रणाली के जैसे ही है जिसे वे अचूकता के लिये प्रयोग करते रहे है।

केल्विन को अब बोल्ट्जमैन स्थिरांक के प्रयोग से परिभाषित किया जायेगा जो कि ऊर्जा और तापमान को जोड़ता है। जबकि वर्तमान मानक जल के विशिष्ट तापमान के संदर्भ मे है जिसे तिहरा बिंदु(Triple Point) कहते है।

जबकी मात्रा की मानक ईकाई मोल जोकि वर्तमान के कार्बन 12 के 0.012 किलोग्राम मे परमाणुओं की संख्या के तुल्य है, अब अवोगाड्रो संख्या(Avogadro’s number) के तुल्य होगी।

परिवर्तन

मोल की परिभाषा विधि

मोल की परिभाषा विधि

मापन ईकाईयो मे 1875 के पश्चात सबसे बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर मतदान हुआ और इस बदलाव के फ़लस्वरूप चार मूलभूत ईकाईयों की परिभाषाये पुननिर्धारित की गई, ये ईकाईयाँ है – एम्पीयर, किलोग्राम, केल्विन और मोल।

16 नवंबर 2018 को , वर्सेल्स फ़्रांस(Versailles, France) मे विश्व के 60 देशों की सरकारो के प्रतिनिधीयों ने सर्वसम्मति से इन बदलावो को स्विकार किया। यह परिवर्तन 20 मई 2019 से प्रभावी होंगे।

अंतराष्ट्रीय ईकाईयो की प्रणाली जिसे संक्षेप मे SI भी कहा जाता है, मे अब सभी ईकाईयाँ प्रकृति के विभिन्न मूलभूत स्थिरांको पर आधारित होंगी। यह नये मानक पुरानी वस्तुओं पर आधारित ईकाईयों के वर्तमान मूल्यों को मूलभूत स्थिरांको के रूप मे विभिन्न प्रयोगो द्वारा परिवर्तन कर निर्धारित किये गये है। वर्तमान मे प्रचलित मापन ईकाई किसी भौतिक वस्तु या अनियमित संदर्भ पर आधारित है।

GCPM यानी ‘जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेज़र्स’ का 26 वाँ सम्मेलन , इस सम्मेलन में प्लांक नियतांक, बोल्ट्समैन नियतांक, आवोगाद्रो नियतांक और मूलभूत आवेश या एक इलेक्ट्रॉन के आवेश को स्थिर कर दिया गया और इनके आधार पर किलोग्राम, एम्पियर, केल्विन और मोल को फ़िर से परिभाषित किया गया और यह तय किया गया कि आने वाले 20 मई 2019 से अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली या SI सिस्टम में इन चार नियतांकों का मूल्य इस प्रकार रहेगा:

  • प्लैंक स्थिरांक(Planck constant) h = 6.626 070 15 × 10−34 J s, (किलोग्राम के लिए)
  • मूलभूत आवेश(Elementary Charge) e = 1.602 176 634 × 10−19 C, (एम्पियर के लिए)
  • बोल्टजमैन स्थिरांक( Boltzmann constant) k = 1.380 649 × 10−23 J/K, (केल्विन के लिए)
  • अवागाड्रो स्थिरांक (the Avogadro constant) NA = 6.022 140 76 × 1023 mol-1, (मोल के लिए)

 

ध्यान रहे कि इस परिभाषा के लागू हो जाने के बाद से इन नियतांकों का यह मूल्य हमेशा-हमेशा के लिए स्थाई हो जाएगा और इनमें कोई भी अशुद्धता नहीं रह जाएगी। इसका अर्थ यह है कि इसके बाद से इन नियतांकों के मूल्य का मापन करना या ज़्यादा शुद्धता से मापन करना जैसी बातें अर्थहीन हो जाएँगी क्योंकि अब यह नियतांक किसी प्रयोग से आया मूल्य के रूप मे नहीं हैं जिनमें कुछ न कुछ अशुद्धता हो सकती है। बल्कि अब इन नियतांकों को यह मूल्य एक परिभाषा के माध्यम से मि्ला है जिससे इनमें अनंत शुद्धता है। नयी परिभाषा लागू होने से पहले इन नियतांकों के मूल्य में जो प्रयोगात्मक अशुद्धता थी वो अशुद्धता अब अपने किलोग्राम के प्रोटोटाइप में ट्रांसफर हो जाएगी, जिससे फ़्रांस में रखे अपने उस प्रोटोटाइप का मूल्य परिपूर्ण एक किलोग्राम नहीं रह जाएगी और उसमें कुछ अशुद्धता आ जाएगी जो कि फ़िलहाल दस करोड़ में एक हिस्से के बराबर है। भविष्य में भी उस प्रोटोटाइप का द्रव्यमान कितना बदलता है अब यह प्रयोगों के माध्यम से तय किया जायेगा। यानी पहले लोग जिससे खुद की तुलना करते थे, जो ख़ुद को बस ख़ुद से तुलना करता था, वो जो ख़ुदा था, उसकी गद्दी छिन गयी है। अब उसकी भी तुलना होगी हालाँकि वो अभी भी वहीँ रहेगा जैसे पिछले 129 सालों से रह रहा है। वैज्ञानिक उसके द्रव्यमान की जाँच नए मानक के हिसाब से समय समय पर करते रहेंगे।

मूलभूत इकाइयाँ सात होती हैं. इनमें से तीन को नियतांकों के आधार पर पहले ही परिभाषित किया जा चुका था। GCPM के 1967 में हुए 13वें सम्मलेन में सेकण्ड को, 1979 में हुए 16वें सम्मलेन में कैंडेला को और 1983 में हुए 17वें सम्मेलन में मीटर को पुनः परिभाषित किया गया था। और जो तीन नियतांक स्थाई किये गए थे वे हैं:

  1. सीजीयम 133 परमाणु मे दो हायपरफ़ाईन स्तरो के मध्य संक्रमण की आवृत्ती :9 192 631 770 Hz, (सेकण्ड के लिए)
  2. 540 × 1012 Hz आवृत्ति वाले मोनोक्रोमोटिक विकिरण की प्रकाशदीप्ती 683 lm/W, (कैंडेला के लिए)
  3. निर्वात मे प्रकाशगति c = 299 792 458 m/s, (मीटर के लिए)
SI ईकाईयों मे परिवर्तन

SI ईकाईयों मे परिवर्तन

किलोग्राम की परिभाषा मे प्रयुक्त विधि

किब्बल तुला से किलोग्राम का मापन

किब्बल तुला से किलोग्राम का मापन

किलोग्राम ईकाई के संबंध म नई परिभाषा गढ़ने के लिये प्लैन्क स्थिरांक का मापन आवश्यक था। यह स्थिरांक क्वांटम स्तर पर ऊर्जा के पैकेट का आकार सटिकता से परिभाषित करता है। एक विशिष्ट विधि किब्ब्ल संतुलन(Kibble balance) के द्वारा प्लैंक स्थिरांक की गणना ज्ञात द्रव्यमान को विद्युत चुंबकीय बल की तुलना मे मापा जाता है।

दूसरी विधि मे सिलिकान-28 के दो गोलो मे परमाणुओं की गणना कर अवागाड्रो संख्या ज्ञात की जाती है, इस संख्या से प्लैंक स्थिरांक की गणना की जाती है।

दोनो विधियों के प्रयोग से प्लैंक स्थिरांक की अचूक गणना 2015 मे ही संभव हो पाई थी।

क्युइन कहते है कि दोनो विधियो से गणना से प्राप्त स्थिराक मे अंतर 100 लाख मे कुछ भाग ही है, जोकि एक असाधारण सफलता है क्योंकि दोनो विधि भौतिकी की दो अलग शाखाओं से संबधित है।

इन स्थिरांको को सर्वसम्मत स्थाई संख्या पर निश्चित किया जायेगा। 1983 मे यह प्रक्रिया मीटर की परिभाषा के लिये प्रकाश गति को आधार बनाते हुये प्रयुक्त की गई थी जब प्रकाशगति की सबसे सटीक माप की गई गति को मीटर की परिभाषा के लिये स्थाई कर दिया गया था। अब ईकाई को परिभाषित करने के लिये वैज्ञानिक विधि को उलट देंगे अर्थात स्थिरांक ज्ञात करने की विधि को पलट देंगे। उदाहरण के लिये वे प्लैन्क स्थिरांक के स्थाई मूल्य को किब्बल संतुलन मे विद्युत चुंबकीय बल के साथ अज्ञात द्रव्यमान के मापन मे प्रयोग मे लायेंगे।

प्लैंक स्थिरांक का यह मूल्य SI प्रणाली मे स्थाई हो जायेगा साथ ही इस मूल्य को NIST मे भी स्थाई कर दिया जायेगा।

भौतिक वस्तुओ के साथ खो जाने या क्षतिग्रस्त हो जाने की समस्या होती है, स्थिरांक के प्रयोग से यह समस्या नही रहती है और द्रव्यमान की परिभाषा अधिक प्रभावी हो जाती है। ले ग्रांड के(Le Grand K) का माप परिभाषा के अनुसार हमेशा 1 किलोग्राम रहा है, लेकिन उसकी प्रतिकृतियों की तुलना मे उसके द्रव्यमान मे आंशिक परिवर्तन आया है। यह कहना मुश्किल है कि ले ग्रांड के(Le Grand K) ने परमाणु खोये है या प्राप्त किये है। लेकिन भविष्य के अध्यन इसे ज्ञात कर पायेंगे।

नया किलोग्राम

द्रव्यमान मापन की नई परिभाषा तय कर रहे वैज्ञानिक सीधे सीधे इसे लागु नही कर सकते है। विभिन्न प्रयोगो के परिणाम बताते है कि नई परिभाषा उत्तम है लेकिन यह भी तथ्य है कि यह परिपूर्ण नही है। जब तक विश्व मे द्रव्यमान मापन मे आने वाली सूक्ष्म अंतर दूर नही होजाते है BIPM एक मध्यस्थ की भूमिका निभायेगा। यह संस्थान हर समूह को एक ही वस्तु का मापन करने के लिये कहेगा और उनके औसत द्रव्यमान को प्रकाशित करेगा जिसका प्रयोग समस्त विश्व तुलना के लिये करेगा। इस प्रक्रिया मे सभी अशुद्धियों और समस्याओं को दूर करने मे कम से कम दस साल तो लग जायेंगे।

इस समय सभी देशो की राष्ट्रीय मापन प्रयोगशाला मे रखे गये मानक वजन बाट फ़ेंके नही जायेंगे। विश्व मे बहुत कम प्रयोगशालाओं के पास नई परिभाषा से एक मानक किलोग्राम बाट निर्माण की क्षमता है, जिससे इन पर निर्भरता अगले कुछ वर्षो तक बनी रहेगी।

NIST तथा युनाईटेड किंगडम और जर्मनी की राष्ट्रीय मानक प्रयोगशालायें सस्ती और टेबल पर रखे जा सकने वाले किब्बल संतुलन पर कार्य कर रही है जिससे कि विभिन्न उद्योग और छोटी कंपनी स्वयं मानक किलोग्राम बाट स्वयं बना सकेंगी।

एक सेकंड बस

सेकंड की नई परिभाषा पर वैज्ञानिक 2005 से काम कर रहे है। वर्तमान मे एक सेकंड सीजीयम-133 द्वारा अवशोषित और उत्सर्जित माइक्रोवेव प्रकाश की आवृत्ति के संदर्भ मे पारिभाषित है। इन परमाणुओ का स्थान आप्टिकल घड़ीयो (optical clock) ने ले लिया है और वे दूसरे परमाणुओ के प्रयोग से उच्च आवृत्ति वाली दृश्य प्रकाश तरंग का प्रयोग करते है। इन आप्टिकल घडीयों की अचूकता अत्याधिक है और इनमे ब्रह्मांड की संपूर्ण आयु मे केवल एक सेकंड की चूक हो सकती है।

वैज्ञानिको की योजना के अनुसार सेकंड की परिभाषा मे परिवर्तन 2026 मे किया जायेगा। क्योंकि उन्हे समस्त विश्व मे आप्टिकल घड़ीयो के प्रयोग के लिये सर्वोत्तम परमाणु को खोजने के साथ तुलना के लिये विधियाँ खोजनी होगी।

SI ईकाईयों का भविष्य

SI ईकाईयों का भविष्य

 

इसके अतिरिक्त SI प्रणाली मे विमाओ के मापन के लिये ईकाई के समावेश के लिये भी दबाव है। उदाहरण के लिये रेडीयन जोकि किसी वृत्त चाप(arc) और त्रिज्या का अनुपात है।

1857 मे स्थापित BIPM जोकि वर्तमान मे मानक किलोग्राम और मीटर को रखे हुये है, SI प्रणाली मे यह परिवर्तन कुछ खट्टा मीठा है। अब किसी को भी मानक किलोग्राम या मीटर के लिये पेरीस जाने की आवश्यकता नही है।



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