“हमारी पृथ्वी ही वह ज्ञात विश्व है जहाँ जीवन है। आनेवाले समय में भी कहीं ऐसा कुछ नहीं दिखता जहाँ हम प्रस्थान कर सकें। जा भी सकें तो बस न सकेंगे। मानें या न मानें, इस क्षण तो पृथ्वी ही वह स्थान है जहाँ हम अटल रह सकते हैं।”
प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक कार्ल सागन का यह कथन शनि ग्रह के समीप से 1990 मे वायेजर अंतरिक्ष यान द्वारा ली गई पृथ्वी की विश्वप्रसिद्ध तस्वीर “पेल ब्ल्यु डाट” के संदर्भ मे था। 1990 से लेकर अब तक अंतरिक्ष विज्ञान मे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। क्या कार्ल सागन का यह कथन आज भी प्रासंगिक है? क्या हम पृथ्वी के बाहर किसी अन्य ग्रह पर जा सकते है ? क्या मानवता का अस्तित्व पृथ्वी के बाहर संभव है ?
मानवता का कुछ लाख वर्ष का इतिहास है लेकिन मानव पहली बार पृथ्वी के बाहर कदम पिछली सदी मे ही रखा है, यह क्षण 12 अप्रैल 1961 को आया था जब रूसी अंतरिक्ष यात्री युरी गागारीन अंतरिक्ष मे पहुंचे थे। मानवता की इस यात्रा का दूसरा पड़ाव 10 जुलाई 1969 को आया था, जब नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा कदम पर रखे थे। उन्होने चंद्रमा की सतह पर कदम रखते हुये कहा था कि “एक मानव का एक छोटा कदम, मानवता के लिये एक बड़ी छलांग है। (दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड)”। यह अंतरिक्ष युग का आरंभ था, इसके बाद हमारे कई अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष की गहराईयों मे थाह लेने भेजे गये है, जिसमे से वायेजर युग्म यान तो सौर मंडल के बाहर जा चुके है।
इसके दूसरी ओर अंतरिक्ष अध्ययन की दिशा मे कई परिवर्तन आये है। अब तक अंतरिक्ष अण्वेषन का कार्य सरकारी अंतरिक्ष संस्थानो के ही हाथो मे था, जिसमे अमरीकी संस्थान नासा, युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो, चीनी अंतरिक्ष संस्थान और जापानी अंतरिक्ष संस्थान है। पिछ्ले कुछ समय से कुछ निजी अंतरिक्ष संस्थान भी अंतरिक्ष अण्वेषण मे सामने आये है जिसमे एलन मस्क के नेतृत्व मे स्पेसएक्स प्रमुख है। स्पेसएक्स अंतरिक्ष संस्थान का जन्म ही मंगल पर मानव पर मानव कालोनी की स्थापना के उद्देश्य से हुआ है।
मानव पृथ्वी से बाहर जाने इतना बेताब क्यों है ? इस प्रश्न का उत्तर मानवता, पृथ्वी के इतिहास और मानव प्रवृत्ति से जुडा हुआ है। मानव ऐतिहासिक रूप से अपनी निवास स्थान से बाहर के स्थानो की यात्रा, और उन स्थानो पर अपनी कालोनिया बसाता आ रहा है। अब जब मानव पृथ्वी के चप्पे चप्पे पर पहुंच चुका है तो अगला पड़ाव निसंदेह ही पृथ्वी के बाहर के ग्रह है। वर्तमान मे इन यात्राओं का लक्ष्य सौर मंडल ही है और इनमे प्रमुख है हमारा चंद्रमा, पड़ोसी मंगल ग्रह, बृहस्पति का चंद्रमा युरोपा, शनि का चंद्रमा एन्सलेडस।
हमारी अब तक की जानकारी के अनुसार द्रव जल जीवन के लिये आवश्यक है, इसके बिना जीवन संभव नही है। इसलिये मानव अंतरिक्ष अण्वेषण मे सबसे पहले जल खोजता है। अब तक चंद्रमा, मंगल, युरोपा और एन्सलेडस पर जल की उपस्थिति के प्रमाण मिल चुके है, जिसमे युरोपा और एन्सलेडस पर जल द्रव रूप मे उपस्थित है, जबकी चंद्रमा पर जल हिम के रूप मे उपस्थित है। मंगल पर जल के हिम रूप मे होने के ठोस प्रमाण है लेकिन द्र्व रूप मे उपस्तिथि के अस्पष्ट प्रमाण है। जीवन की दूसरी आवश्यकता ऐसे वातावरण की उपस्थिति है जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के विचरण कर सके। दुर्भाग्य से सौर मंडल मे पृथ्वी के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रह पर ऐसा वातावरण नही है। बुध ग्रह पर वातावरण ही नही है, शुक्र का वातावरण अत्यंत घना है, बृहस्पति, शनि , युरेनस , नेपच्युन पर वातावरण है लेकिन ठोस धरातल नही है। चंद्रमाओ मे युरोपा और एन्सलेडस पर भी वातावरण नही है। शेष रह जाता है मंगल जिस पर वातावरण है लेकिन विरल है, आक्सीजन की उपस्थिति है लेकिन कार्बन डाय आक्साइड जानलेवा है, इसके अतिरिक्त चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति के कारण घातक रूप से सौर विकिरण की उपस्थिति है। इसका अर्थ यही है कि पृथ्वी से बाहर सौर मंडल मे जीवन आसान नही है।
आपने पिछले कुछ वर्षो मे अखबारो मे पढ़ा होगा, टीवी पर देखा होगा कि मंगल ग्रह पर बसने के लिये कुछ उम्मीदवारो का चयन किया गया है और वे मंगल ग्रह पर बसने के उद्देश्य से एकतरफ़ा यात्रा के लिये निकट भविष्य मे रवाना होने वाले है। तो वे यात्री मंगल ग्रह पर जीवन कैसे गुजारेंगे ?
इस चुनौति से निपटने के लिये वैज्ञानिको ने दो उपाय सोच रखे है। एक उपाय है मंगल ग्रह कांच के बड़े बड़े गोल गुंबदो का निर्माण, जिसके अंदर एक ऐसा वातावरण बनाया जाये जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के पृथ्वी के जैसे जीवन बीता सके। इसके लिये इस गुंबद के अंदर पृथ्वी के जैसे वायुमंडलीय दबाव, गैसो का मिश्रण का निर्माण करना होगा, इस वातावरण मे 20% आक्सीजन, 78% नाईट्रोजन , 0.04% कार्बन डायाआक्साईड , अल्प मात्रा मे जल नमी तथा शेष अन्य गैसे होंगी। इस गुंबद मे जल स्रोत और आवासीय इमारतो का निर्माण होगा। कृषि तथा अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन की सुविधा होगी। लेकिन इस तरह के बड़े पैमाने के निर्माण की व्यवस्था करनी कठीन होगी और उसमे समय लगेगा। तब तक मंगल पर आरंभीक मानव बस्तिया कालोनी छोटे सीलेंडर नुमा संरचनाओ के रूप मे ही होंगी, जिसमे अधिकतम कुछ लोग ही रह पायेंगे, एक सिलेंडर से दूसरे सिलेंडर मे जाने के लिये उन्हे अंतरिक्ष सूट पहनने होंगे।
मंगल या किसी अन्य ग्रह पर बसने का दूसरा उपाय टेराफ़ार्मिंग है। इस उपाय मे किसी ग्रह को संपूर्ण रूप से ट्रासफ़ोर्म किया जायेगा और उसे कृत्रिम रूप से पृथ्वी के जैसे बनाया जायेगा। अर्थात उस ग्रह पर पृथ्वी के जैसे वायुमंडल का निर्माण, चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण, सागरो , झीलो, नदीयो और जंगलो का निर्माण किया जायेगा, साथ ही पृथ्वी के जैसे मौसम बनाना होगा, जिसमे बरसात, बर्फ़बारी, ग्रीष्म , शीत का समावेश होगा। लेकिन यह एक बहुत दूर की सोच है और अभी हमारा विज्ञान उस स्तर तक नही पहुंचा है लेकिन शायद अगली एक सदी मे यह संभव होगा।
अंतरिक्ष यात्राओं मे सबसे बड़ी चुनौति यात्रा मे लगने वाले समय की होती है। हमारे तेज से तेज यान को अपने पड़ोस के मंगल ग्रह तक पहुंचने मे नौ से दस महिने लग जाते है। वायेजर को सौरमंडल से बाहर जाने मे चार दशक लग गये। सौर मंडल के बाहर तो तारों के मध्य दूरी अत्याधिक होती है। सूर्य के सबसे निकट का तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है, उससे प्रकाश को भी हम तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगते है। प्रकाश की गति अत्याधिक है, वह एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की यात्रा करता है। तुलना के लिये सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुँचने केवल आठ मिनट लगते है। कई प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने के लिये इतनी दूरी तक यात्रा करने मे वर्तमान के हमारे सबसे तेज राकेट को भी सैकड़ों वर्ष लगेंगे।
ऐसी लंबी यात्रा मे ढेर सारी अड़चने है, जिसमे कई वर्षो की इतनी लंबी यात्रा मानव या किसी भी अन्य बुद्धिमान जीव के लिये आसान नही होगी। यात्रा मे लगने वाले यान के निर्माण मे ढेर सारी प्रायोगिक मुश्किले आयेंगी, जैसे इस यान मे इस लंबी यात्रा के लिये राशन, पानी, कपड़े तथा ऊर्जा का इंतज़ाम करना होगा। यान मे कई वर्षो की भोजन सामग्री ले जाना संभव नही होगा, ऐसी स्थिति मे यान मे ही कृषि, पेड़, पौधे उगाने की व्यवस्था करनी होगी। विशाल यान के संचालन तथा यात्रीयों के प्रयोग के ऊर्जा के निर्माण के लिये बिजली संयत्र का निर्माण करना होगा। यान मे वायु से विषैली गैस जैसे कार्बन डाय आक्साईड को छान कर आक्सीजन के उत्पादन के लिये संयत्र चाहीये होंगे। प्रयोग किये गये जल के पुनप्रयोग के लिये संयत्र, उत्पन्न कचरे के पुनप्रयोग के लिये संयत्र चाहिये होंगे। इन सभी संयंत्रो के यान मे लगाने पर वह किसी छोटे शहर के आकार का हो जायेगा। इतना बड़ा यान पृथ्वी या ग्रह पर निर्माण कर अंतरिक्ष मे भेजना भी आसान नही है, इस आकार के यान का निर्माण भी अंतरिक्ष मे ही करना होगा।
इतने विशाल यान का निर्माण हो भी जाये तो इस यान के अंतरिक्ष यात्रीयों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होगा। यान के अंतरिक्षयात्रीयों के दल मे हर क्षेत्र से विशेषज्ञ चूनने होगे जिसमे इंजीनियर, खगोलशास्त्री, चिकित्सक इत्यादि प्रमुख होंगे। यदि यात्रा समय 30-40 वर्ष से अधिक हो तो इन यात्रीयों मे स्त्री-पुरुष जोड़ो को भेजना होगा जिससे इतनी लंबी यात्रा मे यात्रीयों की नयी पिढी तैयार हो और वह इस यात्रा को आगे बढ़ाये। इस अवस्था मे यान मे पाठशाला और शिक्षक भी चाहीये होंगे।
लंबी यात्रा की इन सब परेशानीयो को देखते हुये यह स्पष्ट है कि पारंपरिक तरिके के यानो से अन्य तारामंडलो की यात्रा अत्याधिक कठीन और चुनौति भरी है। इस कठीनाई का भी हल है प्रकाशगति या उससे तेज गति के यानो का निर्माण। ध्यान रहे कि प्रकाशगति से तेज चलने वाले यान भी सबसे निकट के तारे से आवागमन मे कम से कम 8 वर्ष लेंगे, जबकि अंतरिक्ष मे दूरीयाँ सैकड़ो, हजारो या लाखो प्रकाशवर्ष मे होती है। प्रकाशगति से तेज यात्रा मे सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वैज्ञानिक नियमो के अनुसार प्रकाश गति से या उससे तेज यात्रा संभव नही है। यह आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके अनुसार प्रकाशगति किसी भी कण की अधिकतम सीमा है। कोई भी वस्तु जो अपना द्रव्यमान रखती है वह प्रकाशगति प्राप्त नही कर सकती है; उसे प्रकाशगति प्राप्त करने के लिये अनंत ऊर्जा चाहिये जोकि संभव नही है। मान लेते है कि किसी तरह से सापेक्षतावाद के इस नियम का तोड़ निकाल लिया गया और प्रकाश गति से यात्रा करने वाला यान बना भी लिया गया। इस अवस्था मे समय विस्तार (Time Dilation) वाली समस्या आयेगी। हम जानते है कि समय कि गति सर्वत्र समान नही होती है, प्रकाशगति पर या अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो मे प्रकाशगति धीमी हो जाती है। यदि कोई याम प्रकाश गति से चलता है तो उस यान मे समय की गति धीमी हो जायेगी, जबकि पृथ्वी/एलीयन ग्रह पर समय की गति सामान्य ही रहेगी। प्रकाश गति से चलने वाला यान को पृथ्वी से प्राक्सीमा सेंटारी तक पहुँचने मे 4 वर्ष ही लगेंगे लेकिन तब तक पृथ्वी पर कई सदियाँ बीत जायेंगी।
यह तय है कि मानव का पृथ्वी से बाहर किसी अन्य ग्रह पर बसना आसान नही है लेकिन ऐसी क्या चुनौतियाँ है कि मानव पृथ्वी से बाहर किसी अन्य ग्रह पर बसने की सोच रहा है?
बीसवी सदी के आरंभ मे मानव जनसंख्या 1.5 अरब थी। वर्तमान मे मानव जनसंख्या साढे सात अरब है। बढ़ती जनसंख्यासे पृथ्वी के संसाधनो पर प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधन सिमीत है, वे एक क्षमता तक ही जनसंख्या का बोझ सह सकते है। कुछ समय बाद ऐसा समय आना तय है कि पृथ्वी पर खाद्यान, पीने योग्य जल की कमी हो जायेगी। बढ़ती जनसंख्या से अन्य समस्याये भी बढ़ रही है। अधिक जनसंख्या के लिये रहने के लिये अधिक जगह चाहिये, जिससे वनो की कटाई हो रही है। बढती जनसंख्या और अधिक सुख सुविधाओं के लिये अधिक ऊर्जा चाहिये और वर्तमान मे हम ऊर्जा के लिये हम जीवाश्म इंधन जैसे पेट्रोल, कोयले पर निर्भर है। इन इंधनो के ज्वलन से प्रदुषण बढ़ रहा है, पृथ्वी हर वर्ष अधिक गर्म होते जा रही है। इसे ही ग्लोबल वार्मींग कहते है जिसके प्रभाव मे ध्रुवो पर, ग्लेशियरो की बर्फ़ पिघल रही है, सागर का जल स्तर बढ़ रहा है। इन सब कारको से जलवायु मे सतत परिवर्तन आ रहे है, कहीं बाढ़, कहीं सूखा पड़ रहा है, बेमौसम बरसात, चक्रवात, तूफ़ान आ रहे है। यदि इस गति से पर्यावरण नष्ट होता रहा तो हमे निकट भविष्य मे ही रहने के लिये कोई अन्य ग्रह खोजना होगा।
दूसरा महत्वपूर्ण कारण है पृथ्वी पर जीवन को अंतरिक्ष से मिलने वाली चुनौति, जैसे कोई आवारा क्षुद्रग्रह, धूमकेतु का पृथ्वी से टकराव। पृथ्वी पर इस तरह के उल्का पिंडो से टकराव होते रहते है। इसी तरह की एक और घटना मे 6.5 करोड़ वर्ष पहले एक विशाल उल्का पिंड या क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया था। यह टक्कर इतनी भयावह थी कि पृथ्वी पर उपस्थित अधिकांश जीवन समाप्त हो गया था। ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिये आवश्यक है कि मानव के पास रहने के लिये कम से कम एक और वैकल्पिक ग्रह हो।
हालीवुड फ़िल्म इंटरस्टेलर का एक संवाद है
“मानव जाति ने पृथ्वी पर जन्म तो लिया है लेकिन मानवता का भविष्य पृथ्वी पर समाप्त होना नही है। “
कादंबिनी जून 2018 मे प्रकाशित
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