लेखक : ऋषभ
जब हम आकाश मे देखते है तो हम भिन्न आकाशीय पिंडो को देखते है। इनमे से कुछ(सूर्य और चंद्रमा) अत्याधिक चमकदार है जबकि कुछ अन्य(धुंधले तारे, निहारिका) नग्न आंखो से मुश्किल से ही दिखाई देते है। किसी पिंड की चमक बहुत से कारको पर निर्भर होती है। किसी पिंड से दूरी निश्चय ही एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन किसी पिंड की चमक मे उस के द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा का सबसे बड़ा योगदान होता है। इसका अर्थ यह है कि पिंडो को उनकी चमक के आधार पर वर्गीकरण की भी कोई अवधारणा अवश्य होगी। ’मूलभूत खगोलभौतिकी (Basics of Astrophysics)’ शृंखला के आंठवे लेख मे हम परिमाण(MAGNITUDE) की अवधारणा को जानेंगे।
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आगे बढ़ने से पहले हम इस तथ्य पर जोर डालना चाहेंगे कि परिमाण(MAGNITUDE) की अवधारणा महत्वपूर्ण है, यह ना केवल खगोलभौतिक विज्ञानियों के लिये महत्वपूर्ण है, साथ ही यह आकाश मे नजरे गढ़ाये रखने वाले शौकीया खगोलशास्त्रीयों के लिये भी महत्वपूर्ण है। इस लेख मे हम खगोलशास्त्रीयों द्वारा प्रयुक्त परिंमाणो को जानेंगे ?
खगोलभौतिकी मे परिमाण(Magnitude) क्या है?
सामान्यत: परिमाण का अर्थ किसी चीज का संख्यात्मक मूल्य होता है। उदाहरण के लिये यदि हम 40 किमी/घंटा पूर्व की ओर गति की को लेते है। यह एक सदिश मूल्य है, इसमे परिमाण और दिशा दोनो है। गति का परिमाण 40 है और दिशा पूर्व की ओर है। लेकिन खगोलभौतिकी मे परिमाण की अवधारणा गति जैसी सदिश राशीयो से भिन्न है। खगोलभौतिकी मे परिमाण का अर्थ है किसी पिंड द्वारा संपूर्ण विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम मे कुल उत्सर्जित ऊर्जा का मूल्य। सरल शब्दो मे परिमाण का अर्थ किसी पिंड की चमक या दीप्ती होता है।
परिमाण के प्रकार
खगोल भौतिकी मे तीन मुख्य प्रकार के परिमाण होते है। हर प्रकार का अपना प्रयोग और महत्व है।
आभासी परिमाण/सापेक्ष कांतिमान (Apparent Magnitude)
किसी पिंड का सापेक्ष कांतिमान पृथ्वी से किसी पिंड की दिखाई देने वाली चमक/दीप्ती/कांति को परिभाषित करने वाली संख्या है, इसकी कोई इकाई नही है। सापेक्ष कान्तिमान को मापने के लिए यह शर्त होती है कि आकाश में कोई बादल, धूल, वगैरा न हो और वह वस्तु साफ़ देखी जा सके। इस अवधारणा को समझने के लिये हमे इतिहास मे झांकना होगा और इसकी जड़ो को खोजना होगा।
ईसा पूर्व दूसरी सदी मे हिप्पारकस(Hipparchus) ने तारों का उनकी चमक के आधार पर वर्गीकरण किया और उन्होने 1000 तारों को छः वर्गो मे बांटा। इसके वर्ग 1 मे सबसे चमकीले तारे थे, वर्ग 2 मे वर्ग एक से कम चमकीले तारे थे, और इस तरह चमक के घटते क्रम मे वर्ग छः मे सबसे धूंधले तारे थे। ईसा के बाद दूसरी सदी मे टालेमी(Ptolemy) मे इसी आधार पर तारों का अपना स्वयं का वर्गीकरण किया। 1830 मे खगोलशास्त्री विलियम हर्शेल( William Herschel) ने पाया कि वर्ग 1 के तारे वर्ग 6 के तारों से 100 गुणा अधिक दीप्ती रखते है। 1856 मे एन आर पोगसन(N R Pogson) ने तारों की दीप्ती को मापने के लिये एक नया पैमाना बनाया जिसमे दो क्रमिक वर्ग के मध्य दीप्ती का अनुपार समान था।
इसका निश्कर्ष यह निकला कि प्रथम परिमाण वाले तारे द्वितिय परिमाण वाले तारों से 2.5 गुणा अधिक चमकदार है और यही अनुपात अगले क्रमिक वर्गो मे है। इस तरह से छठा वर्ग प्रथम वर्ग से 100 गुणा कम चमकदार है। 100 का पांचवा मूल 2.5 है। गणितिय रूप से यदि B(m) तथा B(n) दो तारों की दीप्ती है जिनका परिमाण m तथा n ( n>m ) है तो
B(m)/B(n) = (2.5) n-m
यह समीकरण एक महतपूर्ण तथ्य बताता है। इस समीकरण के अनुसार अधिक चमकदार पिंड का परिमाण उतना ही कम होगा। इसका अर्थ है कि -4 परिमाण वाले पिंड की दीप्ती +2 परिमाण वाले पिंड से अधिक होगी।
उदाहरण
सूर्य का निरपेक्ष कांतिमान(आभासी परिमाण) -26.74 है और रात्रि आकाश मे सबसे अधिक चमकदार तारे का-1.74। अब इस समीकरण के अनुसार सूर्य रात्रि आकाश के सबसे अधिक चमकदार तारे(लुब्धक/सीरीअस) से 10 अरब गुणा अधिक दीप्तीमान है। निम्न चित्र इस अवधारणा को स्पष्ट करती है।
मानव आंखो से दृष्य |
सापेक्ष कांतिमान | वेगा( Vega) के सापेक्ष दीप्ती | सापेक्ष कांतिमान से अधिक चमक वाले तारों की संख्या |
---|---|---|---|
हाँ | −1.0 | 251% | 1 (Sirius) |
0.0 | 100% | 4 | |
1.0 | 40% | 15 | |
2.0 | 16% | 48 | |
3.0 | 6.3% | 171 | |
4.0 | 2.5% | 513 | |
5.0 | 1.0% | 1602 | |
6.0 | 0.4% | 4800 | |
6.5 | 0.25% | 9100[3] | |
नही | 7.0 | 0.16% | 14000 |
8.0 | 0.063% | 42000 | |
9.0 | 0.025% | 121000 | |
10.0 | 0.010% | 340000 |
निरपेक्ष परिमाण(कांतिमान)/Absolute Magnitude
आभासी परिमाण/सापेक्ष कांतिमान उस पिंड की अपनी चमक या उस पिंड द्वारा प्रतिसेकंड उत्सर्जित कुल ऊर्जा पर निर्भर है। इसके अतिरिक्त यह उस पिंड की दूरी पर भी निर्भर करता है। लेकिन खगोलीय पैमाने पर दूरी मे अत्याधिक परिवर्तन होता है जिससे किसी खगोलीय पिंड का निरपेक्ष परिमाण उस पिंड की वास्तविक चमक या दीप्ती नही दर्शाता है। उदाहरण के लिये सूर्य और लाल महादानव तारे बीटलगुज को लेते है। सूर्य का निरपेक्ष कांतिमान -26.74 है जबकि बीटलगुज का +0.50। इसका अर्थ यह है कि उपरोक्त सूत्र के अनुसार सूर्य को बीटलगुज से 69 अरब गुणा अधिक चमकदार होना चाहीये। जबकि वास्तविकता यह है कि बीटलगुज सूर्य से 100,000 गुणा अधिक चमकदार है। इसलिये दीप्ती मापन के लिये एक नई पद्धिति निरपेक्ष परिमाण/कांतिमान(Absolute Magnitude) की आवश्यता महसूस हुई। निरपेक्ष कांतिमान किसी खगोलीय वस्तु के अपने चमकीलेपन को कहते हैं।
निरपेक्ष कांतिमान की अवधारणा मे हम खगोलीय पिंड की दूरी को एक मानक दूरी पर स्थिर कर देते है। यह चूनी हुई दूरी 10 पारसेक(32.6 प्रकाशवर्ष) है। किसी तारे के निरपेक्ष कांतिमान की बात हो रही हो तो यह देखा जाता है कि यदि देखने वाला उस तारे के ठीक 10 पारसैक की दूरी पर होता तो वह कितना चमकीला लगता। हम भिन्न खगोलीय पिंडो को इस दूरी पर रख कर उनकी दीप्ती के मध्य तुलना करते है।
गणितिय रूप से यदि m किसी पिंड का सापेक्ष कांतिमान है ,M उसका निरपेक्ष कांतिमान है तथा उसकी पृथ्वी से दूरी d हो तो,
m – M = 5 log (d) – 5
अवश्य पढ़े: खगोलीय दूरी मापन : खगोलीय इकाई(AU), प्रकाशवर्ष(Ly) और पारसेक(Parsec)
परिमाण m – M केवल दूरी पर निर्भर करता है इसलिये इसे दूरी माप(distance modulus) माप कहलाता है। यह सूत्र किसी पिंड के निरपेक्ष कांतिमान, सापेक्ष कांतिमान और हम से दूरी के मध्य के संबध को दर्शाता है।
अधिकतर तारों का निरपेक्ष कांतिमान -20 से + 10 के मध्य होता है। सूर्य का निरपेक्ष कांतिमान +4.8 है जो उसे तारों की जनसंख्या मे एक औसत तारा बनाता है।
फोटोग्राफ़िक परिमाण(Photovisual Magnitude)
जब हम तारों को आंखो से देखते है तब उसका परिमाण दृश्य परिमाण होता है। लेकिन हमारी आंखो का दृष्टिपटल विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम के एक बड़े भाग को महसूस नही कर पाता है। लेकिन एक तारे का चित्र हम अलग अलग फ़िल्टर लगा कर ले सकते है और इस तरह से प्राप्त परिमाण को हम फोटोग्राफ़िक परिमाण कहते है।
बोलोमेट्रीक परिमाण(Bolometric Magnitude)
अब तक हमने जितने भी परिमाणो की चर्चा की है वे खगोलीय वर्णक्रम के एक चुनिंदा भाग पर ही निर्भर करते है। किसी पिंड की दीप्ती को यदि विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम के समस्त पट्टे पर मापा जाये तो प्राप्त परिमाण बोलोमेट्रीक परिमाण कहलाता है।
लेकिन हमारे पास कोई ऐसा अकेला उपकरण नही है जो खगोलीय वर्णक्रम के सभी भागो के लिये संवेदी हो जिससे किसी अन्य परिमाण को बोलोमेट्रीक परिमाण मे रूपांतरित करने कुछ सुधार करने होते है। विशेष रूप से बोलोमेट्रीक परिमाण और फोटोग्राफ़िक परिमाण के मध्य का अंतर बोलोमेंट्रीक सुधार (Bolometric correction (BC)) कहलाता है।
सूर्य का बोलोमेट्रिक सुधार -0.11 है (यह हमेशा ऋणात्मक होगा)। इस परिमाण का महत्व इस उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा। ग्वाला तारामंडल(Boötes constellation) मे एक महाकाय नारंगी स्वाति(Arcturus) तारा है। यह तारा सूर्य से 110 गुणा अधिक चमकदार है लेकिन अवरक्त(infrared) वर्णक्रम मे यह सूर्य से 180 गुणा अधिक चमकदार है। इसलिये स्वाति तारे का कुल (बोलोमेट्रीक) ऊर्जा उत्पादन उसके आभासी ऊर्जा उत्पादन से कहीं अधिक है।
लेखक का संदेश
सबसे पहले मै सभी पाठक को इस शृंखला के लिये दीये जा रहे उत्साहजनक प्रतिसाद के लिये धन्यवाद देता हुं। हमारी टीम की मेहनत के प्रतिफ़ल से हम खुश है। अब हम खगोलभौतिकी की अवधारणाओं मे गहरा गोता लगाने जा रहे है। अब तक हम इस क्षेत्र के मूलभूत उपकरणो और अवधारणाओं की जानकारी प्राप्त की है। खगोलभौतीकी मे परिमाण की अवधारणा समझना महत्वपूर्ण है। इसके बाद हम आने वाले लेखो मे तारकीय खगोलभौतिकी (Stellar Astrophysics) की यात्रा आरंभ करेंगे। यह एक खूबसूरत विषय है। अब हम देखेंगे कि तारो का जन्म कैसे होता है, उनका जीवन चक्र क्या होता है, उनकी संरचना कैसी होती है और उनकी मृत्यु किसी श्वेत वामन तारे, न्युट्रान तारे या ब्लैक होल के रूप मे कैसे होती है। इस लेख शृंखला से जुड़े रहीये, इस शृंखला मे बहुत कुछ बाकि है।
इस शृंखला मे इससे पहले : खगोलीय निर्देशांक प्रणाली(CELESTIAL COORDINATE SYSTEMS)
मूल लेख : UNDERSTANDING THE CONCEPT OF MAGNITUDE IN ASTROPHYSICS
लेखक परिचय
लेखक : ऋषभ
लेखक The Secrets of the Universe के संस्थापक तथा व्यवस्थापक है। वे भौतिकी मे परास्नातक के छात्र है। उनकी रूची खगोलभौतिकी, सापेक्षतावाद, क्वांटम यांत्रिकी तथा विद्युतगतिकी मे है।
Admin and Founder of The Secrets of the Universe, He is a science student pursuing Master’s in Physics from India. He loves to study and write about Stellar Astrophysics, Relativity, Quantum Mechanics and Electrodynamics.
from विज्ञान विश्व http://bit.ly/2DP26gO
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