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Tuesday 7 May 2019

खगोल भौतिकी 10 : मेघनाद साहा का समीकरण और महत्व

लेखिका याशिका घई(Yashika Ghai)

मूलभूत खगोलभौतिकी (Basics of Astrophysics)’ शृंखला के इस लेख मे हम आज एक आधारभूत गणितीय उपकरण की चर्चा करेंगे। इस उपकरण को साहा का समीकरण कहा जाता है। इस समीकरण ने खगोलभौतिकी की एक विशिष्ट शाखा की नींव रखी थी और यह प्लाज्मा के अध्ययन मे मील का पत्थर साबीत हुई है। लेखिका प्लाज्मा भौतिक वैज्ञानिक है, और इस लेख मे साहा के समीकरण और उसके इतिहास के बारे मे सहर्ष चर्चा कर रही है। चलीये साहा के समीकरण को समझते है और देखते है कि इस समीकरण ने तारों के वर्णक्रम के अध्ययन मे क्या भूमिका निभाई है।

संक्षिप्त इतिहास

1814 मे फ़्राउनहोफ़र रेखाओं की खोज ने तारों के वर्णक्रम के अध्ययन को जन्म दिया था। तारों का वर्णक्रम फ़्राउनहोफ़र वर्णक्रम के साधारण गुणधर्मो की व्याख्या करता है। सभी तारकीय(stellar) वर्णक्रम मे कुछ तत्वो की रेखाये अन्य तत्वो की रेखाओं की तुलना मे अधिक गहरी होती है। दिलचस्प रूप से उसी तत्व की रेखा की गहराई भिन्न तारों के वर्णक्रम मे सतत रूप से भिन्नता मे पाई जाती है।

यह भी पढ़े : विद्युत चुंबकीय (EM SPECTRUM) क्या है और वह खगोलभौतिकी (ASTROPHYSICS) मे महत्वपूर्ण उपकरण क्यों है ?

फ़्राउनहोफ़र रेखायें(The Fraunhofer Lines)

फ़्राउनहोफ़र रेखायें(The Fraunhofer Lines)

मेघनाद साहा

जिस समय परमाण्विक तथा विकिर्ण सिद्धांत अज्ञात था, खगोलभौतिक वैज्ञानिक वर्णक्रम रेखाओं मे भिन्नता को तारों के निर्माण के समय आरंभिक पदार्थ की संरचना मे भिन्नता का परिणाम मानते थे। लेकिन आज हम जानते है कि तारों के वर्णक्रम मे यह भिन्नता तापमान के अंतर के कारण है। इस लेख मे हम इतिहास मे झांखते हुये देखते है कि तारों के वर्णक्रम मे इस विविधता की पहेली को किस तरह एक भारतीय खगोलवैज्ञानिक मेघनाद साहा ने हल किया था।

1920 मे साहा के आयोनाइजेशन सिद्धांत ने बोह्र के परमाण्विक सिद्धांत के एक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग की व्याख्या की थी। आयनोनाईजेशन एक ऐसी स्तिथि है जिसमे किसी परमाणु केंद्रक के आसपास मंडराते इलेक्ट्रान इतनी ऊर्जा प्राप्त कर लेते है कि वे केंद्रक से अलग हो जाते है या बहुत ही कमजोर रूप से बंधे रहते है। साहा ने एक गणितिय सूत्र प्रस्तावित किया था जो कि यह दर्शाता था कि किसी तारे के वातावरण मे इलेक्ट्रानो का ऊर्जा प्राप्त करना और परमाणुओं का आयोनाइजेशन वास्तविकता मे तारों की संरचना के अतिरिक्त तापमान और दबाव पर भी निर्भर करता है। साहा के इस समीकरण ने खगोलभौतिकी की एक नई शाखा की नींव रखी थी जिसे तारकीय(stellar) स्पेक्ट्रोस्कोपी कहते है। अब हम साहा के प्रसिद्धा कार्य साहा आयोनाइजेशन समीकरण को देखते है।

साहा के समीकरण का अर्थ

साहा का समीकरण तारों के वर्णक्रम आधारित वर्गीकरण(spectral classification) की व्याख्या करने के लिये क्वांटम यांत्रिकी(quantum mechanics) और सांख्यकिय यांत्रिकी(statistical mechanics) के मिश्रण का प्रभावी परिणाम है। यह समीकरण बताता है कि उष्मीय संतुलन(thermal equilibrium) किसी गैस मे आयोनाइजेशन की दर उस गैस के दबाव और तापमान पर निर्भर करती है।

साहा का समीकरण

साहा का समीकरण

साहा का समीकरण

यह समीकरण दर्शा रहा है कि किसी गैस मे आयोनाईजेशन भिन्न भौतिक कारको पर निर्भर है और ये कारक है :

  • आयोनाइजेशन ऊर्जा(Ionization energy): जब किसी गैस के तापमान मे वृद्धि होती है, आयोनाइजेशन की डीग्री(degree of ionization) तब तक निम्न रहती है जब तक आयोनाइजेशन ऊर्जा के गैस के तापमान से अधिक ना हो जाये।(जो कि घातांकी(exponential ) कारक से स्पष्ट है।)
  • तापमान(Temperature): उष्मीय संतुलन मे किसी गैस की आयोनाइजेशन की डीग्री(degree of ionization) अर्थात आयन के जनघनत्व(number density) तथा उदासीन परमाणु के जनघनत्व का अनुपात तापमान मे वृद्धि के साथ अचानक बढती है। इस के बाद गैस प्लाज्मा अवस्था मे पहुंच जाती है जोकि आयन, इलेक्ट्रान और कुछ उदासीन परमाणूओ से बनी होती है।
  • आयन का जनघनत्व(number density) : जब कोई परमाणु आवेशित होता है, वह किसे इलेक्ट्रान से मिलकर फ़िर से उदासीन हो सकता है। इसलिये जैसे ही इलेक्ट्रान की संख्या बढ़ती है, आयोनाइजेशन अनुपात कम होता है। सबसे सरल हायड्रोजन प्लाज्मा मे इलेक्ट्रान की संख्या और आयन की संख्या समान मानी जाती है। इसलिये जब प्लाज्मा मे आयन का जनघनत्व बढ़ता है, आयन के उदासीन होने की दर भी बढ़ती है। इससे आयोनाइजेशन अनुपात मे कमी होती है।
  • अब इस समीकरण का भौतिक महत्व समझने का प्रयास करते है।

साहा ने निर्देशित किया था कि किसी गैस की आयोनाइजेशन की डीग्री मे दबाव का अत्याधिक प्रभाव रहता है। इस तथ्य को इससे पहले नही माना गया था। उन्होने 1921 मे जब अपना शोधपत्र रायल सोसायटी मे प्रकाशित किया। इस शोधपत्र मे उन्होने इस सिध्दांत की सहायता से तारकीय वर्णक्रम की व्याख्या की थी। उन्ही के शब्दो मे

जब हम किसी तारे को हायड्रोजन, हिलियम या कार्बन तारा कहते है और यह कहने का प्रयास कर रहे होते है कि ये तत्व किसी तारे के मुख्य घटक है तब हम उन तारों के साथ न्याय नही कर रहे होते है। जबकि सही निष्कर्ष यह है कि उस तारे के वातावरण मे उपस्थित उद्दीपन कारको के प्रभाव मे विशिष्ट तत्व या एकाधिक तत्व उत्तेजित अवस्था मे होते है और अपनी गुणधर्म वाली वर्णक्रम रेखा से उपस्थिति दर्शाते है, जबकि अन्य तत्व या तो आयन अवस्था मे होते है या उद्दीपन इतना कम होता है कि उन तत्वो को पहचानने वाली गुणधर्म रेखा नही बन पाती है।
We are not justified in speaking of a star as a hydrogen, helium or carbon star, thereby suggesting that these elements for the chief ingredients in the chemical composition of the star. The proper conclusion would be that under the stimulus prevailing in the star, the particular element or elements are excited by radiation of their characteristic lines, while other elements are either ionized or the stimulus is too weak to excite the lines by which we can detect the element.

साहा का समीकरण यह भी दर्शाता है कि कोई गैस प्लाज्मा अवस्था अत्याधिक तापमान तथा आवेशित कणो के कम जनघनत्व पर प्राप्त करती है। इसी कारण से प्लाज्मा प्राक्रुतिक रूप से खगोलीय पिंडो मे पाई जाती है जिनपर तापमान लाखों डीग्री तथा परमाणुओं का जनघनत्व 1 परमाणु प्रति घन सेमी होता है। अपनी इस प्राकृतिक उपस्थिति के कारण प्लाज्मा को पदार्थ की चतुर्थ अवस्था माना जाता है।

लेखिका का संदेश

लेखिका प्लाज्मा भौतिकी वैज्ञानिक है और वे मानती है कि तारकीय वातावरण मे शोध, खगोलभौतिकी मे लोकप्रिय और सक्रिय विषयो मे से एक है। किसी तारे का वर्णकम वास्तविकता मे अत्याधिक सूचना प्रदान कर देता है जोकि किसी खगोलभौतिक वैज्ञानिक के लिये ब्रह्मांड के रहस्यो को खोलने मे अत्यावश्यक है। इस लेख के साथ हमने इस शृंखला का एक तिहाई भाग देख लिया है। अगले लेख मे हम किसी तारे के वातावरण और खगोलभौतिकी के आयोनाइजेशन सिद्धांतों के महत्व को और विस्तार से देखेंगे। उसके पश्चात हम अपने सबसे समीप के और सर्वाधिक शोध किये गये तारे की आधारभूत संरचना को देखेंगे, यह तारा है : हमारा अपना सूर्य।

मूल लेख : SAHA’S EQUATION AND ITS IMPORTANCE

लेखक परिचय

याशिका घई(Yashika Ghai)
संपादक और लेखक : द सिक्रेट्स आफ़ युनिवर्स(‘The secrets of the universe’)

लेखिका ने गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से सैद्धांतिक प्लाज्मा भौतिकी(theoretical plasma physics) मे पी एच डी किया है, जिसके अंतर्गत उहोने अंतरिक्ष तथा खगोलभौतिकीय प्लाज्मा मे तरंग तथा अरैखिक संरचनाओं का अध्ययन किया है। लेखिका विज्ञान तथा शोध मे अपना करीयर बनाना चाहती है।

Yashika is an editor and author at ‘The secrets of the universe’. She did her Ph.D. from Guru Nanak Dev University, Amritsar in the field of theoretical plasma physics where she studied waves and nonlinear structures in space and astrophysical plasmas. She wish to pursue a career in science and research.



from विज्ञान विश्व http://bit.ly/2vL9BRO
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