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सौर मंडल की सीमाये
सौरमंडल सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओ से बना है। इसके केन्द्र मे सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर नेप्च्युन ग्रह है। नेपच्युन के परे प्लुटो जैसे बौने ग्रहो के अलावा धूमकेतु भी आते है।
हीलीयोस्फियर (heliosphere)
हमारा सौरमंडल एक बहुत बड़े बुलबुले से घीरा हुआ है जिसे हीलीयोस्फियर कहते है। हीलीयोस्फीयर यह सौर वायु द्वारा बनाया गया एक बुलबुला है, इस बुलबुले के अंदर सभी पदार्थ सूर्य द्वारा उत्सर्जित हैं। वैसे इस बुलबुले के अंदर हीलीयोस्फीयर के बाहर से अत्यंत ज्यादा उर्जा वाले कण प्रवेश कर सकते है!
हीलीयोस्फियर (heliosphere)
हमारा सौरमंडल एक बहुत बड़े बुलबुले से घीरा हुआ है जिसे हीलीयोस्फियर कहते है। हीलीयोस्फीयर यह सौर वायु द्वारा बनाया गया एक बुलबुला है, इस बुलबुले के अंदर सभी पदार्थ सूर्य द्वारा उत्सर्जित हैं। वैसे इस बुलबुले के अंदर हीलीयोस्फीयर के बाहर से अत्यंत ज्यादा उर्जा वाले कण प्रवेश कर सकते है!
सौरवायु यह किसी तारे के बाहरी वातावरण द्वारा उत्सर्जीत आवेशीत कणो की एक धारा होती है। सौर वायु मुख्यतः अत्याधिक उर्जा वाले इलेक्ट्रान और प्रोटान से बनी होती है, इनकी उर्जा किसी तारे के गुरुत्व प्रभाव से बाहर जाने के लिये पर्याप्त होती है। सौर वायु सूर्य से हर दिशा मे प्रवाहित होती है जिसकी गति कुछ सौ किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। सूर्य के संदर्भ मे इसे सौर वायु कहते है, अन्य तारो के संदर्भ मे इसे ब्रम्हांड वायु कहते है।
सूर्य से कुछ दूरी पर प्लुटो से काफी बाहर सौर वायु खगोलिय माध्यम के प्रभाव से धीमी हो जाती है। यह प्रक्रिया कुछ चरणो मे होती है। खगोलिय माध्यम यह हायड्रोजन और हिलीयम से बना हुआ है और सारे ब्रम्हांड मे फैला हुआ है। यह एक अत्याधिक कम घनत्व वाला माध्यम है।
- सौर वायु सुपर सोनिक गति से धीमी होकर सबसोनिक गति मे आ जाती है, इस चरण को टर्मीनेशन शाक(Termination Shock) या समापन सदमा कहते है।
- सबसोनिक गति पर सौर वायु खगोलिय माध्यम के प्रवाह के प्रभाव मे आ जाती है। इस दबाव से सौर वायु धूमकेतु की पुंछ जैसी आकृती बनाती है जिसे हीलीयोशेथ(Helioseath) कहते है।
- हीलीयोशेथ की बाहरी सतह जहां हीलीयोस्फियर खगोलीय माध्यम से मिलता है हीलीयोपाज(Heliopause) कहलाती है।
- हीलीयोपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम मे एक हलचल उतपन्न करता है। यह खलबली वाला क्षेत्र जो हीलीयोपाज के बाहर है बौ शाक (Bow Shock) या धनुष सदमा कहलाता है।
सौर मण्डल और उसकी सीमाये(पूर्णाकार के लिये चित्र पर क्लीक करें)
सौर मंडल की सीमाओ मे सबसे अंदरूनी सीमा है ‘टर्मीनेशन शाक(Termination shock)’ या समापन सदमा, इसके बाद आती है हीलीयोपाज(Heliopause) और अंत मे ‘बौ शाक(bow shock)’ या धनुष सदमा।
टर्मीनेशन शाक
खगोल विज्ञान मे टर्मीनेशन शाक यह सूर्य के प्रभाव को सीमीत करने वाली बाहरी सीमा है। यह वह सीमा है जहां सौर वायु के बुलबुलो की स्थानिय खगोलिय माध्यम के प्रभाव से कम होकर सबसोनिक(Subsonic) गति तक सीमीत हो जाती है। इससे संकुचन , गर्म होना और चुंबकिय क्षेत्र मे बदलाव जैसे प्रभाव उत्पन्न होते है। यह टर्मीनेशन शाक क्षेत्र सूर्य से 75-90 खगोलीय इकाई की दूरी पर है।(1 खगोलिय इकाई= पृथ्वी से सूर्य की दूरी)। टर्मीनेशन शाक सीमा सौर ज्वाला के विचलन के अनुपात मे कम ज्यादा होते रहती है।
खगोल विज्ञान मे टर्मीनेशन शाक यह सूर्य के प्रभाव को सीमीत करने वाली बाहरी सीमा है। यह वह सीमा है जहां सौर वायु के बुलबुलो की स्थानिय खगोलिय माध्यम के प्रभाव से कम होकर सबसोनिक(Subsonic) गति तक सीमीत हो जाती है। इससे संकुचन , गर्म होना और चुंबकिय क्षेत्र मे बदलाव जैसे प्रभाव उत्पन्न होते है। यह टर्मीनेशन शाक क्षेत्र सूर्य से 75-90 खगोलीय इकाई की दूरी पर है।(1 खगोलिय इकाई= पृथ्वी से सूर्य की दूरी)। टर्मीनेशन शाक सीमा सौर ज्वाला के विचलन के अनुपात मे कम ज्यादा होते रहती है।
समापन सदमा या टर्मीनेशन शाक की उतपत्ती का कारण तारो ने निकलते वाली सौर वायु के कणो की गति (400किमी /सेकंड) से ध्वनी की गति (0.33किमी/सेकंड) मे परिवर्तन है। खगोलिय माध्यम जिसका घनत्व अत्यंत कम होता है और उसपर कोई विशेष दबाव नही होता है ;वही सौर वायू का दबाव उसे उतपन्न करने वाले तारे की दूरी के वर्गमूल के अनुपात मे कम होती है। जैसे सौर वायु तारे से दूर जाती है एक विशेष दूरी पर खगोलिय माध्यम का दबाव सौर वायु के दबाव से ज्यादा हो जाता है और सौर वायु के कणो की गति को कम कर देता है जिससे एक सदमा तरंग(Shock Wave) उत्पन्न होती है।
सूर्य से बाहर जाने पर टर्मीनेशन शाक के बाद एक और सीमा आती है जिसे हीलीयोपाज कहते है। इस सीमा पर सौर वायु के कण खगोलीय माध्यम के प्रभाव मे पूरी तरह से रूक जाते है। इसके बाद की सीमा धनुष सदमा (बौ शाक-bow shock) है जहां सौरवायु का आस्तित्व नही होता है।
वैज्ञानिको का मानना है कि शोध यान वायेजर 1 दिसंबर 2004 मे टर्मीनेशन शाक सीमा पार कर चूका है, इस समय वह सूर्य से 94 खगोलीय इकाई की दूरी पर था। जबकि इसके विपरीत वायेजर 2 ने मई 2006 मे 76 खगोलिय इकाई की दूरी पर ही टर्मीनेशन शाक सीमा पार करने के संकेत देने शूरू कर दिये है। इससे यह प्रतित होता है कि टर्मीनेशन शाक सीमा एक गोलाकार आकार मे न होकर एक अजीब से आकार मे है।
हीलीयोशेथ
हीलीयोशेथ यह टर्मीनेशन शाक और हीलीयोपाक के बीच का क्षेत्र है। वायेजर 1 और वायेजर-2 अभी इसी क्षेत्र मे है और इसका अध्ययन कर रहे हैं। यह क्षेत्र सूर्य से 80 से 100 खगोलीय दूरी पर है।
हीलीयोशेथ यह टर्मीनेशन शाक और हीलीयोपाक के बीच का क्षेत्र है। वायेजर 1 और वायेजर-2 अभी इसी क्षेत्र मे है और इसका अध्ययन कर रहे हैं। यह क्षेत्र सूर्य से 80 से 100 खगोलीय दूरी पर है।
हीलीयोपाज
यह सौर मंडल की वह सीमा है जहां सौरवायु खगोलीय माध्यम के कणो के बाहर धकेल पाने मे असफल रहती है। इसे सौरमंडल की सबसे बाहरी सीमा माना जाता है।
यह सौर मंडल की वह सीमा है जहां सौरवायु खगोलीय माध्यम के कणो के बाहर धकेल पाने मे असफल रहती है। इसे सौरमंडल की सबसे बाहरी सीमा माना जाता है।
बौ शाक
हीलीयोपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम मे एक हलचल उत्पन्न करता है। यह हलचल वाला क्षेत्र जो हीलीयोपाज के बाहर है ,बौ-शाक या धनुष-सदमा कहलाता है।
हीलीयोपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम मे एक हलचल उत्पन्न करता है। यह हलचल वाला क्षेत्र जो हीलीयोपाज के बाहर है ,बौ-शाक या धनुष-सदमा कहलाता है।
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