यदि आप ब्रह्माण्ड की व्याख्या कुछ मूलभूत शब्दो मे करना चाहें तो आप कह सकते है कि ब्रह्माण्ड के कुछ सरल गुणधर्म होते हैं। हम इन सभी गुणों से परिचित भी हैं, इतने ज्यादा कि हम उन पर ध्यान भी नही देतें हैं। लेकिन विशेष सापेक्षतावाद के अंतर्गत ये गुणधर्म हमारी अपेक्षा के विपरीत आश्चर्यजनक रूप से व्यवहार करतें हैं। विशेष सापेक्षतावाद पर आगे बढने से पहले ब्रह्माण्ड के इन मूलभूत गुणो की चर्चा करतें है।
अंतराल/अंतरिक्ष(Space)
हम जो भी कुछ भौतिक वस्तुओ को देखते है या जो भी घटना घटीत होती है , वह अंतराल/अंतरिक्ष के तीन आयामो मे होती है। अंतराल/अंतरिक्ष यह हमारे भौतिक विश्व का त्रीआयामी चित्रण है। इसी अंतराल/अंतरिक्ष के कारण किसी भी पिंड/वस्तु की तीन दिशाओ मे लंबाई, चौडाई और ऊंचाई होती है और वह तीन दिशाओ दायें/बायें, उपर/नीचे तथा आगे/पिछे गति कर सकता है।
समय
![Infinity-Time2](https://vigyan.files.wordpress.com/2013/04/infinity-time2.jpg?w=300&h=179)
पदार्थ(matter)
पदार्थ की सबसे सरल परिभाषा के रूप मे स्थान(अंतराल/अंतरिक्ष) ग्रहण करने वाली कोई भी वस्तु है। कोई भी पिंड जिसे आप देख सकते है, स्पर्श कर सकते हैं, या बल प्रयोग से उसे हटा सकते है पदार्थ है। आपने बचपन से कक्षाओ मे पढा ही होगा कि पदार्थ अरबो सूक्ष्म संघनित परमाणुओ से बना होता है। उदाहरण के लिये पानी एक यौगिक है जो दो हायड्रोजन और एक आक्सीजन के परमाणु से बने अणुओ होता है।
लेकिन यह परमाणु भी और छोटे कणो से बना होता है जिन्हे न्युट्रान, प्रोटान और इलेक्ट्रान कहते है। न्युट्रान और प्रोटान परमाणु के केन्द्र मे तथा इलेक्ट्रान इस केन्द्रक की परिक्रमा करते होते है। न्युट्रान इनमे सबसे भारी कण होता है लेकिन विद्युत-उदासीन होता है। प्रोटान भी भारी कण(न्युट्रान से हल्का) है लेकिन धनात्मक आवेशित होता है। इलेक्ट्रान हल्के कण होते है और ऋणात्मक रूप से आवेशित होते है। किसी परमाणु के इन कणो की संख्या से उस परमाणु के गुणधर्म परिभाषित होते है। उदाहरण के लिये परमाणु मे एक ही प्रोटान हो तो वह हायड्रोजन का परमाणु , दो हो तो हिलीयम , तीन हो तो लिथियम बनायेगा। प्रोटानो की यही संख्या उस परमाणु का ब्रह्माण्ड मे व्यवहार निर्धारित करती है। परमाणु मे प्रोटान तथा इलेक्ट्रानो की संख्या समान होती है। न्युट्रानो की संख्या भी सामान्यतः प्रोटानो के बराबर होती है लेकिन उनका समान होना आवश्यक नही है।
गति(motion)
कोई भी वस्तु जो अंतरिक्ष मे स्थानांतरण कर रही हो गतिमान होती है। गति भौतिकी की बहुत सी दिलचस्प अवधारणाओ को जन्म देती है।
द्रव्यमान तथा ऊर्जा (Mass and Energy)
द्रव्यमान
किसी पदार्थ के द्रव्यमान की दो परिभाषायें है और दोनो महत्वपुर्ण हैं। एक परिभाषा जो हाईस्कूल मे पढाई जाती है और दूसरी पूर्ण रूप से तकनिकी है जो भौतिकी मे प्रयुक्त की जाती है।
सामन्यतः द्रव्यमान को किसी पिंड मे पदार्थ की मात्रा (अर्थात इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान की संख्या )के रूप मे परिभषित किया जाता है। यदि आप द्रव्यमान को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से गुणा कर दें तब आपको भार (Weight)प्राप्त होगा। जब आप यह कहते है कि खाना खाने या व्यायाम से आपका भार परिवर्तन हो रहा है, वास्तविकता मे आपका द्रव्यमान परिवर्तन हो रहा होता है। ध्यान दें कि द्रव्यमान आपकी अंतरिक्ष मे स्थिति पर निर्भर नही करता है। चंद्रमा पर आपका द्रव्यमान आपके पृथ्वी के द्रव्यमान के समान ही होगा। लेकिन आपका भार चंद्रमा पर पृथ्वी की तुलना मे 1/6 रह जायेगा क्योंकि चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना मे 1/6है। पृथ्वी पर ही जैसे आप सतह से दूर जाते है, गुरुत्वाकर्षण कम होते जाता है अर्थात आपका भार कम होते जाता है।
भौतिकी मे द्रव्यमान की परिभाषा थोडी अलग है। इस परिभाषा के अनुसार किसी पिंड की गति मे “त्वरण के लिये आवश्यक बल की मात्रा(the amount of force required to cause a body to accelerate)” को द्रव्यमान कहा जाता है। भौतिकी मे द्रव्यमान ऊर्जा से जुडा हुआ है। किसी पिंड का द्रव्यमान गतिशिल निरीक्षक के सापेक्ष उस पिंड की गति पर निर्भर करता है। गतिशिल पिंड यदि अपने द्रव्यमान की गणना करता है तब द्रव्यमान हमेशा समान ही रहेगा। लेकिन यदि निरिक्षक गतिशिल नही है और वह गतिशिल पिंड के द्रव्यमान की गणना करता है, तब निरिक्षक पिंड की गति के त्वरित होने पर उस पिंड के द्रव्यमान मे वृद्धि पायेगा। सरल शब्दो मे आप एक जगह खडे होकर किसी गतिशिल पिंड के द्रव्यमान की गणना कर रहे हों और वह पिंड अपनी गति बढाते जा रहा हो तो आप हर मापन मे उस पिंड के द्रव्यमान को पहले से ज्यादा पायेंगे। इसे ही सापेक्ष द्रव्यमान (relativistic mass)कहते है। ध्यान दिजीये कि आधुनिक भौतिकी मे द्रव्यमान के सिद्धांत का प्रयोग नहीं होता है, अब उसे ऊर्जा के रूप मे ही मापा जाता है। अब ऊर्जा और द्रव्यमान को एक ही माना जाता है। आगे इस पर हम और चर्चा करेंगे।
ऊर्जा(Energy)
किसी तंत्र के कार्य करने की क्षमता की मात्रा ऊर्जा कहलाती है। इसके कई रूप है, जैसे स्थितिज(potential) ऊर्जा, गतिज(Kinetic) ऊर्जा इत्यादि। ऊर्जा की अविनाशिता के नियम के अनुसार ऊर्जा का निर्माण और विनाश असंभव है, उसे केवल एक रूप से दूसरे रूप मे परिवर्तित किया जा सकता है। ऊर्जा का एक रूप मे संरक्षण नही होता है, तंत्र की कुल ऊर्जा की मात्रा का संरक्षण होता है। जब आप छत से एक गेंद को गिराते हैं, गिरती हुयी गेंद के पास गतिज ऊर्जा होती है। जब आप गेंद को गिराने वाले थे , गेंद के पास स्थितिज(potential) ऊर्जा थी जो गिराने के बाद गतिज(Kinetic) ऊर्जा मे परिवर्तित हो गयी। जैसे ही गेंद जमीन से टकरती है कुछ ऊर्जा तापिय ऊर्जा(heat energy) मे परिवर्तित होती है। यदि आप इस संपूर्ण प्रक्रिया मे हर चरण पर कुल ऊर्जा का मापन करेंगें, कुल ऊर्जा आपको हमेशा समान मिलेगी।
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