अलबर्ट आइन्स्टाइन ने 1905 में “विशेष सापेक्षतावाद(Theory of Special Relativity)” तथा 1915 में “सामान्य सापेक्षतावाद(Theory of General Relativity)” के सिद्धांत को प्रस्तुत कर भौतिकी की नींव हीला दी थी। सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार न्युटन के गति के तीन नियम(Newtons laws of motion) पूरी तरह से सही नहीं है, जब किसी पिंड की गति प्रकाश गति के समीप पहुंचती है वे कार्य नहीं करते है। साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार न्युटन का गुरुत्व का सिद्धांत भी पूरी तरह से सही नहीं है और वह अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो में कार्य नहीं करता है।
हम सापेक्षतावाद को विस्तार से आगे देखेंगे, अभी हम केवल न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत तथा साधारण सापेक्षतावाद सिद्धांत के मध्य के अंतर को देखेंगे। ये दोनों सिद्धांत कमजोर गुरुत्वाकर्षण के लिए समान गणना करते है , यह एक सामान्य परिस्तिथी है जो हम रोजाना देखते और महसूस करते है। लेकिन निचे तीन उदाहरण दिए है जिसमे इन दोनों सिद्धांतो की गणनाओ में अंतर स्पष्ट हो जाता है।
न्युटन के सिद्धांत और आइन्स्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के मध्य कुछ मूलभूत अन्तर
- बुध गृह की कक्षा समय के साथ चित्र में दिखाए अनुसार अपने प्रतल से विचलित होती है। (चित्र में विचलन को बढा चढ़ा कर दिखाया गया है,वास्तविकता में यह कम है।) इसे सामान्य रूप से ग्रह की सूर्य समीप स्थिती में विचलन(precession of the perihelion ) कहा जाता है। न्युटन के सिद्धांत के अनुसार इस विचलन को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है। लेकिन साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार हर शताब्दी में 43 सेकण्ड का विचलन अतिरिक्त होना चाहीये , और यह विचलन निरिक्षणों के अनुरूप था। यह प्रभाव काफ़ी छोटा है लेकिन गणना के अनुसार और सटीक है ।
- आइन्स्टाइन के सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में प्रकाश की दिशा में परिवर्तन होना चाहिए जोकि न्युटन के सिद्धांत के विपरीत है। लेकिन सूर्यग्रहण के समय इसे निरीक्षित कीया गया और आइन्स्टाइन के सिद्धांत के प्रभाव और सटीक मूल्य को सही पाया गया। इस प्रभाव को गुरुत्वीय लेंसींग(gravitational lensing) कहा जाता है।
- साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार किसी विशाल गुरुत्वीय क्षेत्र से आने वाले प्रकाश में लाल विचलन होना चाहीये, यह भी न्युटन के सिद्धांत के विपरीत है। विस्तृत निरिक्षणो विशाल गुरुत्वीय क्षेत्र से आने वाले प्रकाश में लाल विचलन(red shift) पाया गया और उसका मूल्य आइन्स्टाइन के सिद्धांत की गणना से सटीकता से मेल खाता था।
विद्युत-चुम्बकीय(electro-magnetic) क्षेत्र की तरंगे हो सकती है जो ऊर्जा का वहन करती है, इसी तरंग को प्रकाश कहा जाता है। उसी तरह से गुरुत्वीय क्षेत्र की भी ऊर्जा वहां करने वाली तरंग होना चाहीये, जिसे गुरुत्वीय तरंगे(gravitational wave) कहते है। इन तरंगो को काल-अंतराल(space-time) में वक्रता उत्पन्न करने वाली लहरों के रूप में देखा जा सकता है। इन तरंगो की गति भी प्रकाश गयी के तुल्य होना चाहीये। जिस तरह त्वरण करते आवेश से विद्युत्-चुम्बकीय तरंगे उत्पन्न होई है, त्वरण करते द्रव्यमान से भी गुरुत्वीय तरंगे उत्पन्न होनी चाहीये। लेकिन गुरुत्वीय तरंगे को महसूस करना या उनका निरिक्षण करना कठिन है क्योंकि वे बहुत कमजोर होती है। अभी तक उनके निरिक्षण का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मील पाया है लेकिन उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से युग्म पल्सर(binary pulsers) तारो में देखा गया है। पल्सर तारो से उत्पन्न पल्सो के आगमन समय को सटीकता से मापा जा सकता है, इससे यह जाना जा सकता है की युग्म पल्सर तारो की कक्षा धीमे धीमे कम हो रही है। यहाँ पाया गया है की कक्षा में कमी की दर एक वर्ष में एक सेकंड का दस लांखवाँ भाग है , यहाँ कमी गुरुत्वीय तरंगो के रूप में ऊर्जा क्षय के फलस्वरूप है जोकि साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनूरूप है ।
विशेष सापेक्षतावाद
आइन्स्टाइन का विशेष सापेक्षतावाद सिद्धांत उन्ही तंत्रों के लिए है जो त्वरण नहीं कर रहे हो अर्थात उनकी गति में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा हो। न्युटन के दूसरे नियम के अनुसार त्वरण के लिए बाह्य बल आवश्यक है, विशेष सापेक्षतावाद बलो की अनुपस्थिति में ही वैध है। इसी वजह से इसे गुरुत्वीय बल की उपस्थिति वाले क्षेत्रो में में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। हम इस लेख श्रृंखला में देखेंगे की इसे किस तरह से प्रयोग में लाया जाता है।
- विशेष सापेक्षतावाद की सबसे बड़ी खोज द्रव्यमान तथा ऊर्जा में संबध है।
E=mc2
- दूसरी सबसे बड़ी खोज काल और अंतराल पर गति का प्रभाव है। प्रकाश गति के समीप गति प्राप्त करने पर अंतराल गति की दिशा में सिकुड जाता है तथा समय की गति धीमी हो जाती है। यह सब विचित्र लगता है क्योंकि हमने आज तक प्रकाश गति की गति के तुल्य कोई भी वस्तु/पिंड देखा नहीं है, लेकिन अनेक प्रयोगों ने सिद्ध किया है कि विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत सही है और हमारी समझ से सही न्युटन के नियम प्रकाश गति के समीप गलत हो जाते है।
साधारण सापेक्षतावाद
विशेष सापेक्षतावाद के सिद्धांत की एक सीमा है कि इसके वैध होने के लिए त्वरण अर्थात बलो की अनुपस्थिति अनिवार्य है। विशेष सापेक्षतावाद सिद्धांत की इस कमी को दूर करने के लिए आइन्स्टाइन ने साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया। आइन्स्टाइन को इस सिद्धांत के विकास के लिए दस वर्ष लग गये। उन्होंने विशेष सापेक्षतावाद के सिद्धांत में गुरुत्वीय बल के प्रभाव को जोड़ते हुए साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया। न्युटन के गुरुत्व बल के सिद्धांत की जगह लेने एक नया सिद्धांत आ गया।
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