![What the ....](https://vigyan.files.wordpress.com/2016/10/auroranorway_richardsen_2330.jpg?w=383&h=201)
ध्रुवीय ज्योति (अंग्रेजी: Aurora), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।
![हेंड्रिक एंटून लॉरेंज (Hendrik Antoon Lorentz :1853-1928) डेनमार्क के सैद्धान्तिक भौतिकविज्ञानी और लिण्डेन के प्रख्यात प्रोफ़ेसर थे।जिन्हें पीटर जीमन (Peter Zeeman)के साथ संयुक्त रूप से 1902 में जीमन प्रभाव के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।](https://vigyan.files.wordpress.com/2016/11/hendrik-lorentz-1.jpg?w=300&h=250)
हेंड्रिक एंटून लॉरेंज (Hendrik Antoon Lorentz :1853-1928) डेनमार्क के सैद्धान्तिक भौतिकविज्ञानी और लिण्डेन के प्रख्यात प्रोफ़ेसर थे।जिन्हें पीटर जीमन (Peter Zeeman)के साथ संयुक्त रूप से 1902 में जीमन प्रभाव के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
हम सब जानते है सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का महान स्रोत है कारण सूर्य पर नाभिकीय संलयन का होना। इसके कारण सूर्य से सौर लपटें(solar flair)उठती रहती है ये सौर लपटें विशेष अवधि में अपने चक्र को घटाती और बढ़ाती रहती है क्योकि सूर्य अपने ध्रुव को निश्चित समयअंतराल मे बदलता रहता है। सूर्य से सौर लपटें उठते रहने के कारण ये सौर लपटें पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field)मे प्रवेश करती है वास्तव मे सौर लपटे विशाल संख्या मे सूर्य से निकलनेवाली आवेशित इलेक्ट्रान और प्रोटोन है। ये इलेक्ट्रान और प्रोटोन जब पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र मे प्रवेश करती है तो उसपर एक बल लगने लगता है जिसे लॉरेंज बल(Lorentz force)कहा जाता है।
लॉरेंज के अनुसार, जब कोई आवेशित कण किसी चुम्बकीय बल क्षेत्र में गति करता है तो उसपर एक बल क्रियाशील हो जाता है जिसकी दिशा दोनों के तल पर लम्बवत होती है अर्थात क्रियाशील बल की दिशा आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के तल पर लम्ब होती है। लॉरेंज़ बल कितना शक्तिशाली होगा यह आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बनने बाले कोण पर निर्भर करता है। यदि बना कोण 0° हो तो बल न्यूनतम होगा पर यदि बना कोण 90° हो तो उसपर लगने वाला बल बहुत ही शक्तिशाली होगा मतलब जैसे जैसे कोण का मान 0° से 90° की ओर बढ़ता जायेगा लगने वाला बल ताकतवर होता जायेगा और 90° पर बल सबसे महत्तम मान पर होगा।यदि कोण का मान 90° से 180° की और ज्यो-ज्यो बढेगा तो फिर लगने वाला बल कमजोर होता जायेगा और 180° पर बल का मान नगण्य हो जायेगा।इस प्रकार हम पाते है की लगने वाला बल 90° पर अपने सबसे महत्तम मान पर होता है।
इसे इस समीकरण से दर्शाया जाता है
इसे इस समीकरण से दर्शाया जाता है
F=q(V×B)
=qVB.SinA
यहाँ F बल,q कण का आवेश,V आवेशित कण का वेग,B चुम्बकीय क्षेत्र,A आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बना कोण है।
![aurora-1](https://vigyan.files.wordpress.com/2016/11/aurora-1.jpg?w=174&h=158)
जैसा की ऊपर की पंक्तियों में भी उल्लेख किया गया है ध्रुवीय ज्योति उत्पन्न होने का कारण जब उच्च ऊर्जा वाले कण (मुख्यतः इलेक्ट्रान)पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में उपस्थित उदासीन अणुओं से उनकी जोरदार टक्कर है। बड़े तीव्रता वाली ध्रुवीय ज्योति चाँद की रौशनी के समान उज्जवल होती है। ध्रुवीय ज्योति की ऊँचाई पृथ्वी से 80 किमी से लेकर 500 किमी तक हो सकती है। सामान्य तीव्रता वाली ध्रुवीय ज्योति की औसत ऊँचाई 110 किमी से लेकर 200 किमी तक होती है।
![aurora-2](https://vigyan.files.wordpress.com/2016/11/aurora-2.jpg?w=165&h=300)
भौतिकी मे इस घटना को उत्तर ध्रुवीय ज्योति(Northern Lights or Aurora Borealis) या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति (Southern Lights or Aurora Australis)कहा जाता है। यह प्राकृतिक आतिशबाजी का दृश्य रात्रि मे ही देखा जा सकता है सूर्य की उपस्थिति मे इसे आप देख नही सकते। सूर्यास्त के बाद पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों मे(अलास्का,उत्तरी कनाडा,आइसलैंड,नॉर्वे)आप इस प्राकृतिक आतिशबाजी का आनंद ले सकते है।
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