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Wednesday 14 June 2017

GN-Z11: सबसे प्राचीन तथा सबसे दूरस्थ ज्ञात आकाशगंगा

लेख संक्षेप :

gn-z11GN-z11 यह एक अत्याधिक लाल विचलन(high redshift) वाली आकाशगंगा है जोकि सप्तऋषि तारामंडल मे स्थित है। वर्तमान जानकारी के आधार पर यह सबसे प्राचीन तथा दूरस्थ आकाशगंगा है। GN-z11 के प्रकाश के लालविचलन का मूल्य z=11.1 है जिसका अर्थ पृथ्वी से 32 अरब प्रकाशवर्ष की दूरी है। GN-z11 की जो छवि हम देख रहे है वह 13.4 अरब वर्ष पुरानी है अर्थात बिग बैंग के केवल चालिस करोड़ वर्ष पश्चात के छवि। इस वजह से इस आकाशगंगा की दूरी सामान्यत: 13.4 अरब वर्ष बता दी जाती है।
इस आकाशगंगा की खोज हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला तथा स्पिटजर वेधशाला के आंकड़ो के आधार पर की गयी है। शोध वैज्ञानिको ने हब्बल दूरबीन के वाईड फ़िल्ड कैमरा 3 के प्रयोग से इस आकाशगंगा के लाल विचलन की गणना द्वारा दूरी ज्ञात की। यह लाल विचलन ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण उत्पन्न होता है।
इससे पहले EGSY8p7 आकाशगंगा को सबसे प्राचीन आकाशगंगा माना जाता था लेकिन GN-z11 आकाशगंगा उससे 1.5 करोड़ वर्ष प्राचीन है।
हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी की तुलना मे GN-z11 पांच गुणा छोटी है और इसका द्रव्यमान मंदाकिनी का 1% है लेकिन इसमे तारो का निर्माण 24 गुणा तेजी से हुआ है।

क्या है GN-z11?

हमारे पास एक नया ब्रह्माण्डीय किर्तिमान है, 2013 मे खोजी गयी एक आकाशगंगा अब तक की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा है। यदि शोध के आंकड़े सही है तो इस आकाशगंगा का जो प्रकाश हम आज देख रहे है वह उस आकाशगंगा से अबसे 13.3 अरब वर्ष पहले रवाना हुआ होगा। इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शायद हम ब्रह्मांड के सबसे आरंभिक तारों को जन्म लेते हुये देख रहे है!
वर्तमान जानकारी के अनुसार यह निरीक्षण और उससे संबधित आंकड़े सटिक लग रहे है लेकिन संदेह की गुंजाईश हमेशा रहती है। इन निरीक्षणो के लिये प्रयुक्त उपकरणो को उनकी क्षमता की अधिकतम सीमा तक प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग मे हब्बल दूरबीन तथा स्पिट्जर दूरबीन का प्रयोग किया गया है। अब इसमे कोई शक नही है कि निकट भविष्य मे प्रक्षेपित की जानेवाली विशालकाय अंतरिक्ष वेधशाला जेम्स वेबर अंतरिक्ष वेधशाला का सबसे पहला लक्ष्य यही आकाशगंगा होगी। इस वेधशाला के प्रक्षेपण से पहले किसी अन्य उपकरण से इस निरीक्षण की स्वतंत्र पुष्टि संभव नही है क्योंकि किर्तिमान स्थापित करने वाली दूरी के निरीक्षण के लिये हमने अपने सबसे बेहतरीन उपकरणो को उनकी क्षमता की सीमा तक प्रयोग किया है।
यह चित्र ब्रह्माण्ड की कालरेखा दर्शाता है जो दायें 13.8 अरब वर्ष पहले हुये बिग बैंग से वर्तमान समय तक का है। नयी खोजी गयी आकाशगंगा GN-z11 सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा है जिसका लाल विचलन z=11.1 है जो कि बिग बैंग के चालीस करोड़ वर्ष बाद की निर्मित है। इससे पहले की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा GN-z11 के 15 करोड़ वर्ष पश्चात निर्मित हुयी थी।
यह चित्र ब्रह्माण्ड की कालरेखा दर्शाता है जो दायें 13.8 अरब वर्ष पहले हुये बिग बैंग से वर्तमान समय तक का है। नयी खोजी गयी आकाशगंगा GN-z11 सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा है जिसका लाल विचलन z=11.1 है जो कि बिग बैंग के चालीस करोड़ वर्ष बाद की निर्मित है। इससे पहले की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा GN-z11 के 15 करोड़ वर्ष पश्चात निर्मित हुयी थी।
इस आकाशगंगा GN-z11 को सप्तऋषि तारामंडल के पास पाया गया है, यह खोज अत्यंत दूरी पर स्थित आकाशगंगाओ के सर्वे का एक भाग है। हब्बल दूरबीन के विस्तृत क्षेत्र वाले कैमरा तीन के प्रयोग से खगोल वैज्ञानिको ने आकाश मे पांच छोटे बिंदु देखे। यह कैमरा तीन अवरक्त प्रकाश के लिये अत्यंत संवेदनशील है।
यह एक विस्मयकारी खोज थी। नवजात आकाशगंगाओ से सामान्यत: पराबैंगनी किरणो उत्सर्जित करती है क्योंकि उनमे निर्मित हो रये नवजात महाकाय ऊर्जा से भरे होते है और अपने आस पास इस ऊर्जा को फ़ैलाते रहते है। लेकिन ये आकाशगंगाये अत्यंत दूरी पर स्थित है, इतनी दूरी पर कि इनसे उत्सर्जित प्रकाश को हम तक पहुंचने के लिये ब्रह्माण्ड के विस्तार से जुझना पढ़ा है। इस यात्रा मे प्रकाश की ऊर्जा कम होती है और यह प्रकाश हम तक पहुंचते तक पराबैंगनी किरणो से अवरक्त किरणो मे परिवर्तित हो जाता है, इस प्रभाव को लाल विचलन(red shift) कहते है। इस प्रकाश को जांचने के लिये ही हब्बल के अवरक्त प्रकाश वाले उपकरणो का प्रयोग किया गया।
लेकिन इतना काफ़ी नही है। हायड्रोजन गैस पराबैंगनी प्रकाश किरणो का अवशोषण करती है। लेकिन इस अवशोषण की भी एक सीमा है। यदि प्रकाश मे अत्याधिक ऊर्जा है तो वह हायड्रोजन परमाणु से इलेक्ट्रान को अलग कर देती है जिससे परमाणु अब प्रकाश का अवशोषण नही कर पाता है। इस सीमा से अधिक ऊर्जा वाली पराबैंगनी प्रकाश किरण हायड्रोजन को पार नही कर पाती है। यदि हम इस प्रकाश के वर्णक्रम को देखें तो इस विशिष्ट ऊर्जा पर प्रकाश नही होता है। इसे लीमन अंतराल(Lyman Break) कहते है।
लेकिन यदि यह प्रकाश इतनी दूर की आकाशगंगा से आ रहा है तब लीमन अंतराल से दूर वाली प्रकाश किरणे भी लाल विचलन से प्रभावित होती है और अवरक्त किरणो के रूप मे दिखायी देती है। यदि आप भिन्न भिन्न फ़िल्टरो से इन आकाशगंगाओ का चित्र ले तो वे आपको को कुछ चित्र मे दिखायी देंगी , कुछ मे नही। यदि आप देखें कि वे किन चित्रों मे अदृश्य है आप उसकी दूरी की गणना कर सकते है। जो आकाशगंगा जितनी दूरी होगी, उतना अधिक लीमन अंतराल मे विचलन होगा।
पारंपरिक रूप से किसी भी विकिरण मे आये लाल विचलन का प्रयोग आकाशगंगाओ की दूरी मापने मे होता है लेकिन ब्रह्मांड मे सर्वाधिक दूरस्थ पिंडो के प्रकाश मे उत्पन्न लाल विचलन के मापन मे कठिनायी होती है। ये दूरस्थ पिंड ही ब्रह्मांड के प्रारंभ मे निर्मित पिंड होते है। बिग बैंग के तुरंत पश्चात सारा ब्रह्मांड आवेशित कण इलेक्ट्रान-प्रोटान तथा प्रकाशकण- फोटान का एक अत्यंत घना सूप था। ये फोटान इलेक्ट्रान से टकरा कर बिखर जाते थे जिससे शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे प्रकाश गति नही कर पाता था। बिग बैंग के 380,000 वर्ष पश्चात ब्रह्मांड इतना शीतल हो गया कि मुक्त इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अनावेशित हायड्रोजन परमाणु का निर्माण करने लगे, इन हायड्रोजन परमाणुओं ने ब्रह्माण्ड को व्याप्त रखा था, इस अवस्था मे प्रकाश ब्रह्माण्ड मे गति करने लगा था। जब ब्रह्माण्ड की आयु आधे अरब वर्ष से एक अरब वर्ष के मध्य थी, तब प्रथम आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है, इन आकाशगंगाओ ने अनावेशित हायड्रोजन गैसे को पुनः आयोनाइज्ड कर दिया जिससे ब्रह्मांड अब भी आयोनाइज्ड है।
पुनः आयोनाइजेसन से पहले अनावेशित हायड्रोजन गैस के बादलो द्वारा नवजात आकाशगंगाओ द्वारा उतसर्जित विकिरण कुछ मात्रा मे अवशोषित कर लिया जाता रहा होगा। इस अवशोषित विकिरण के वर्णक्रम मे लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) का भी समावेश है जोकि नवजात तारो द्वारा उत्सर्जित पराबैंगनी(ultraviolet) किरणो से उष्ण हायड्रोजन का वर्णक्रमीय हस्ताक्षर है। इस लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) को तारों के निर्माण के संकेत के रूप मे देखा जाता है। यदि किसी गैस के बादल मे वर्णक्रमीय विश्लेषण मे यदि लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) दिखायी दे तो इसका अर्थ है कि उस बादल मे तारो का जन्म हो रहा है

लीमन अंतराल किसी आकाशगंगा के वर्णक्रम मे पराबैगनी किरणो से अधिक ऊर्जा वाली किरणे अत्यंत कम दिखायी देती है(उपर। लेकिन यदि आकाशगंगा बहुत दूर है, मे वर्णक्रम लाल विचलन होता है(मध्य)। निचे के चित्र मे आकाशगंगा के प्रकाश मे एक सीमा के बायें कुछ नही दिखायी दे रहा है जिसे लीमन अंतराल कहते है।
लीमन अंतराल
किसी आकाशगंगा के वर्णक्रम मे पराबैगनी किरणो से अधिक ऊर्जा वाली किरणे अत्यंत कम दिखायी देती है(उपर। लेकिन यदि आकाशगंगा बहुत दूर है, मे वर्णक्रम लाल विचलन होता है(मध्य)। निचे के चित्र मे आकाशगंगा के प्रकाश मे एक सीमा के बायें कुछ नही दिखायी दे रहा है जिसे लीमन अंतराल कहते है।
अब हम वापस GN-z11 आकाशगंगा पर आते है। प्राथमिक गणनाओं से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार GN-z11 के प्रकाश मे लाल विचलन की मात्रा z=11 है, जो उसे अब तक की सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा बनायी है। यह इतनी महत्वपूर्ण खोज थी कि इस आकाशगंगा GN-z11 पर हब्बल दूरबीन की 12 परिक्रमा केंद्रित कर दी गती। इस निरीक्षण मे स्पेक्ट्रोमिटर का प्रयोग किया गया जोकि अवरक्त किरणो मे सटिकता से मापन करता है। यह एक अत्याधिक कठिन निरीक्षण था क्योंकि यह आकाशगंगा अत्यंत धुंधली है और इसके आसपास के तारे और आकाशगंगाओं का प्रकाश से निरीक्षण मे अशुद्धियाँ आ सकती थी। इस निरीक्षण मे आंकड़ो के विश्लेषण मे ध्यान रखा गया कि इन आंकड़ो मे कोई अशुद्धि का समावेश ना हो पाये।
जब उन्होने यह किया तो पाया कि विस्मयकारी रूप से इस आकाशगंगा का लाल विचलन z=11.09 था, जो कि इसे 13.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर बना रहा था।
यह अत्याधिक दूरी है। यह एक विस्मयकारी दूरी भी है क्योंकि यह बिग बैंग के केवल 4 करोड़़ वर्ष बाद का समय है, यह वह समय है जब हम मानते है कि ब्रह्मांड मे तारो का जन्म प्रारंभ हुआ था। हम इस आकाशगंगा का जो प्रकाश अब देख रहे है वह ब्रह्मांड की सबसे पहली पिढी के तारो का प्रकाश हो सकता है।
इस निरीक्षण मे यह भी पता चलता है कि यह आकाशगंगा इसके पहले कुछ समय से तारो का निर्माण भी कर रही थी। हमारी जानकारी के अनुसार आकाशगंगाओ के निर्माण और तारो के जन्म के विभिन्न माडेल बताते है कि इस आकाशगंगा मे सूर्य के जैसे तारो के निर्माण की दर हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी से 24 गुणा अधिक है।
इस आकाशगंगा द्रव्यमान एक अरब सूर्य के तुल्य है जोकि बहुत कम है। हमारी आकाशगंगा का द्रव्यमान 1000 अरब सूर्य के तुल्य है। लेकिन यह ठीक है क्योंकि इस आकाशगंगा की आयु कम है। हमे केवल निर्मित तारों का प्रकाश दिखाती दे रहा है और इस आकाशगंगा मे ऐसा बहुत सा पदार्थ हो सकता है जो कि तारो के निर्माण के लिये कच्ची सामग्री है और तारो के रूप मे जन्म का इंतजार कर रहे हों।
अगला प्रश्न है कि हम इतनी दूरी पर ऐसी कितनी आकाशगंगाये खोज सकते है ? GN-z11 असामान्य रूप से दीप्तिमान है, इस दूरी पर आकाशगंगाये इतनी धुंधली होती है कि हमारी दूरबीनो की पकड़ से बाहर होती है। इस आकाशगंगा की खोज के लिये हम थोड़े भाग्यशाली रहे है।
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