In this blog you will enjoy with science

Monday, 12 June 2017

ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 01 : मूलभूत कण और मूलभूत बल

यह श्रंखला पदार्थ और उसकी संरचना पर आधारित है।  इस विषय पर हिन्दी में लेखो का अभाव है ,इन विषय को हिन्दी में उपलब्ध कराना ही इस श्रंखला को लिखे जाने का उद्देश्य है। इन श्रंखला के विषय होंगे:
  • 1. मूलभूत कण(Elementary particles)
  • 2.मूलभूत बल(Elementary Forces)
  • 3.मानक प्रतिकृति(Standard Model)
  • 4.प्रति पदार्थ(Antimatter)
  • 5. ऋणात्मक पदार्थ(Negative Matter)
  • 6. ग्रह, तारे, आकाशगंगा  और निहारिका
  • 7. श्याम वीवर(Black Hole)
  • 8.श्याम  पदार्थ तथा श्याम ऊर्जा (Dark Matter and Dark Energy)
  • 9. ब्रह्मांड का अंत (Death of Universe)

पदार्थ पृथक सूक्ष्म   कणो से बना होता है और उसे मनमाने ढंग से सूक्ष्म  से सूक्ष्मतम रूप मे तोड़ा नही जा सकता है, यह सिद्धांत पिछले सहस्त्र वर्षो से सर्वमान्य है। लेकिन यह सिद्धांत दार्शनिक आधार पर ही था, इसके पिछे प्रयोग और निरिक्षण का सहारा नही था। दर्शनशास्त्र मे इस पृथक सूक्ष्म कण अर्थात परमाणु की प्रकृती विभिन्न संस्कृती और सभ्यताओ मे अलग अलग तरह से परिभाषित की गयी थी। एक परमाणु का मूलभूत सिद्धांत वैज्ञानिको द्वारा रसायन शास्त्र मे नये आविष्कार के पश्चात पिछली कुछ शताब्दी मे मान्य हुआ है।

इतिहास

परमाणु के सिद्धांत का संदर्भ प्राचीन भारत और ग्रीस मे मिलता है। भारत मे आजीविकजैन और चार्वाक मान्यताओ मे परमाणु के सिद्धांत का संदर्भ ईसा पूर्व छठी शताब्दी का है। न्याया और वैशेशीखा मान्यताओं ने इसके आगे परमाणु से जटिल वस्तुओ के निर्माण के सिद्धांत को प्रस्तावित किया था। पश्चिम मे परमाणु के सिद्धांत का संदर्भ ईसा पूर्व पांचवी शताब्दि मे लेउसीप्पस के शिष्य डेमोक्रीट्स के विचारो मे मिलता है। डेमोक्रिट्स ने ही परमाणु का वर्तमान अंग्रेजी नाम “Atom” दिया था जिसका अर्थ है अविभाज्य। डेमोक्रिट्स के अनुसार पदार्थ विभिन्न प्रकार के परमाणुओं के बड़ी मात्रा मे एक साथ जमा होने से बनता है।

आधुनिक विज्ञान

1803 मे ब्रिटीश वैज्ञानिक जान डाल्टन ने परमाणु के सिद्धांत से यह समझाने का प्रयास किया कि क्यों तत्व हमेशा छोटी पूर्ण संख्याओ के अनुपात मे मिलाने पर प्रतिक्रिया करते है तथा क्यों कुछ गैसें अन्य गैसों की तुलना मे ज्यादा अच्छे से पानी मे घूल जाती है। डाल्टन के अनुसार हर तत्व एक विशिष्ट प्रकार के परमाणु से बना होता है और परमाणु मिलकर रासायनिक पदार्थो का निर्माण करते है। 1827 मे राबर्ट ब्राउन ने ब्राउनियन गति की खोज की थी। किसी द्रव मे धूलकणों के अनियमित रूप से विचरण को ब्राउनियन गति कहते है। 1905 मे आइंस्टाइन ने ब्राउनियन गति को  द्रव के परमाणुओ द्बारा धूलकणो से टकराने के फलस्वरूप उत्पन्न गतिविधी माना था और इसके लिए एक गणितिय माडेल बनाया था। फ्रेंच वैज्ञानिक जीन पेर्रिन ने आइंस्टाइन के सिद्धांत का प्रयोग करते हुए परमाणु का द्रव्यमान और आकार मापा था। इस तरह से डाल्टन के परमाणु सिद्धांत का सत्यापन हो गया था।
इस समय तक परमाणु के अविभाज्य होने पर शंकाये उत्पन्न हो चुकी थी। ट्रीनीटी महाविद्यालय कैम्ब्रिज के प्रोफेसर जे जे थामसन इलेक्ट्रान के अस्तित्व को प्रमाणित कर चूके थे जो कि सबसे छोटे परमाणु से भी हजार गुणा छोटा था। थामसन के इस प्रयोग मे उन्होने एक धातु के तार को गर्म किया जिससे उस तार से इल्केट्रान का उत्सर्जन प्रारंभ हो गया। इलेक्ट्रान पर ऋणात्मक आवेश होता है जिससे उन्हे विद्युत क्षेत्र द्वारा फास्फोरस की परत वाली स्क्रीन की ओर आकर्षित किया जा सकता है। जब ये इलेक्ट्रान स्क्रीन से टकराते थे, उस बिंदू पर प्रकाशिय चमक उत्पन्न करते थे। जल्दी ही यह पता चल गया कि ये इलेक्ट्रान परमाणु के अंदर से आ रहे थे। 1911 मे अर्नेसट रदरफोर्ड ने प्रमाणित किया कि परमाणु मे आंतरिक संरचना होती है, उनके अनुसार परमाणु मे  धनात्मक आवेश वाले नन्हे केन्द्र के आसपास इलेक्ट्रान परिक्रमा करते है। रदरफोर्ड ने यह खोज रेडीयो सक्रिय पदार्थो द्वारा उत्सर्जित धनात्मक आवेश युक्त अल्फा कणो के अध्ययन के बाद की। सर्वप्रथम यह माना गया कि परमाणु इलेक्ट्रान और धनात्मक आवेश वाले प्रोटान से बना होता है। 1932 मे जेम्स चैडवीक ने परमाणु के केन्द्र मे एक और कण न्यूट्रॉन को खोज निकाला जिसपर कोई आवेश नही होता है। चैडवीक को इस खोज के लिए नोबेल पुरुस्कार मिला।
अगले 30 वर्षो तक न्युट्रान और प्रोटान को मूलभूत कण माना जाता रहा। लेकिन कुछ प्रयोगो ने जिसमे प्रोटान को अन्य प्रोटान या इलेक्ट्रान से अत्याधिक गति से से टकराया जाता था यह सिद्ध किया कि प्रोटान और न्यूट्रॉन  और भी छोटे कणो से बने है। इन कणो को मुर्रे गेलमन ने क्वार्क नाम दिया।

क्वार्क

दो अप और एक डाउन क्वार्क से बना प्रोटान
दो अप और एक डाउन क्वार्क से बना प्रोटान
क्वार्क के छः प्रकार है जिन्हे अप, डाउन,स्ट्रेन्ज, चार्मड, बाटम और टाप नाम दिया गया है। पहले तीन प्रकार की खोज १९६० मे हो गयी थी, चार्मड १९७४ मे, बाटम १९७७ मे तथा टाप १९९५ मे खोजा गया है। इनमे से हर प्रकार तीन रंगो के होते है, लालहरा और नीला। ध्यान दे कि ये रंग केवल नाम के लिए है। क्वार्क दृश्य प्रकाश किरणों के तरंग दैर्घ्य से छोटे होते है, जिससे उनका कोई रंग संभव नही है। आधुनिक वैज्ञानिक ग्रीक भाषा के नामो से उब गये थे और उन्होने ये कुछ नये तरीके से नाम दे दिये है।
एक प्रोटान या न्युट्रान तीन अलग अलग रंग के क्वार्क से बना होता है। प्रोटान मे दो अप क्वार्क और एक डाउन क्वार्क होता है। न्युट्रान मे दो डाउन और एक अप क्वार्क होता है। हम अन्य क्वार्क (स्ट्रेन्ज, चार्मड,बाटम और टाप) से भी कण बना सकते है लेकिन इनका द्रव्यमान ज्यादा होने से ये अस्थायी होंगे और  प्रोटान और न्यूट्रॉन मे बदल जायेंगे।
अब हम जानते है कि न परमाणु, न प्रोटान और न न्यूट्रॉन अविभाज्य है। अब यह प्रश्न है कि सबसे मूलभूत कण कौनसे है, जोकि हर पदार्थ की संरचना की आधारभूत इकाई है ?
प्रकाश का तरंग दैर्घ्य परमाणु के आकार से काफी ज्यादा होता है, हम परमाणु के विभिन्न हिस्सो को साधारण तरीकों से नही देख सकते है। हमे इसके लिये कुछ ऐसी वस्तु प्रयोग करनी होती है, जिसकी तरंग दैर्घ्य बहुत छोटी हो। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सभी कण तरंग होते है और जिस कण की उर्जा जितनी ज्यादा होती है उतनी तरंग दैर्घ्य छोटी होती है। कणो की इस ऊर्जा को इलेक्ट्रान वोल्ट(eV) मे मापा जाता है। थामसन के प्रयोग मे इलेक्ट्रान को स्क्रीन की ओर आकर्षित करने के लिए विद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया गया था। एक वोल्ट के विद्युत क्षेत्र से इलेक्ट्रान जितनी ऊर्जा ग्रहण करता है उसे 1 इलेक्ट्रान वोल्ट कहते है। उन्नीसवी सदी मे कणो को ज्यादा ऊर्जा नही दी जा सकती थी। उस समय कणो को किसी पदार्थ के जलने से प्राप्त कुछ इलेक्ट्रान वोल्ट के तुल्य ऊर्जा ही प्रदान की जा सकती थी, इस कारण हम मानते थे कि परमाणु सबसे छोटा कण है। रदरफोर्ड के प्रयोग मे अल्फाकणो की ऊर्जा कुछ लाख इलेकट्रान वोल्ट थी और हम इलेक्ट्रान की खोज कर पाये थे। अब हम विद्युत चुंबकिय क्षेत्र से करोड़ो अरबो इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा कणों को दे सकते है जिसके फलस्वरूप हम जानते है कि तीस वर्ष पहले के मूलभूत कण और भी छोटे कणो से बने है। तो क्या ज्यादा ऊर्जा वाले कणों से हम और भी छोटे कणों की खोज कर सकते है ? यह संभव है लेकिन हमारे पास कुछ सैद्धांतिक कारण है जो यह बताते है कि हम प्रकृति के सबसे मूलभूत कणों की खोज के समीप है।

मूलभूत कण और स्पिन

कणो की स्पिन
कणो की स्पिन
कोई भी कण, कण और तरंग की तरह दोहरा व्यवहार करता है। ब्रम्हांड की हर वस्तु (प्रकाश और गुरुत्व भी)को कण के रूप मे दिखाया जा सकता है। इन कणो का एक गुण होता है, स्पिन(Spin)। स्पिन के बारे मे सोचने का एक उपाय एक धूरी पर घुमता हुआ लट्टू है। यह थोड़ा विरोधाभाषी हो सकता है क्योंकि क्वांटम भौतिकी मे अच्छी तरह परिभाषित अक्ष नही होता है। किसी कण का स्पिन यह बताता है कि वह कण विभिन्न दिशाओ से देखने पर कैसा दिखता है।
  • स्पिन 0(शून्य) का कण एक बिन्दू के जैसा है जो हर दिशा से एक जैसा ही दिखता है।
  • स्पिन 1 का कण एक तीर के जैसा है जो भिन्न दिशा से भिन्न दिखता है। वह एक पूरा चक्कर (360डीग्री) घुमाने पर ही पहले जैसा दिखेगा।
  • स्पिन 2 का कण एक दो तरफा तीर के जैसे है जो आधा चक्कर 180 डीग्री घुमाने पर पहले जैसा दिखायी देगा। इसी तरह ज्यादा स्पिन के कण एक अंश घुमाने पर ही पहले जैसा दिखायी देते है।
यह सब आसान और सीधासीधा लगता है लेकिन कुछ कण ऐसे भी है जो पूरा एक चक्कर(360 डीग्री) घुमाने पर भी पहले जैसा नही दिखते है, उन्हे पहले जैसा दिखायी देने के लिये दो चक्कर घुमाना पड़ता है। इन कणो का स्पिन 1/2 होता है। ब्रह्मांड के अब तक के सभी ज्ञात कणो को दो समूहो मे विभाजित किया जा सकता है:
  • 1/2 स्पिन के कण जो ब्रम्हांड मे पदार्थ का निर्माण करते है।
  • स्पिन 0,1,2 के कण जो पदार्थ के कणो के मध्य बलो का निर्माण करते है।

पदार्थ कण पाली के व्यतिरेक सिद्धांत(Exclusion Principal) का पालन करते है। इस सिद्धांत के अनुसार दो समान कण एक साथ समान अवस्था मे नही रह सकते अर्थात अनिश्चितता के सिद्धांत द्वारा परिभाषित सीमा के अंतर्गत दो समान कण समान स्थान और समान गति मे नही हो सकते है। व्यतिरेक सिद्धांत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि क्यों स्पिन ०,१,२ के कणो द्वारा उत्पन्न बलो के प्रभाव के फलस्वरूप पदार्थ के कण अत्याधिक घनत्व वाली अवस्था मे घनीभूत नही होते है। यदि पदार्थ के कण यदि समान स्थान पर एकदम समीप समीप है, तब उनकी गतिंया भिन्न होंगी, अर्थात वे एक जगह पर ज्यादा समय नही रहेंगे। यदि ब्रह्मांड का जन्म व्यतिरेक सिद्धांत के बिना हुआ होता तब क्वार्क भिन्न-भिन्न, अच्छी तरह से परिभाषित प्रोटान और न्युट्रान का निर्माण नही कर पाते, ना ही न्युट्रान और प्रोटान इलेक्ट्रान के साथ मीलकर परमाणु बना पाते। विश्व इलेक्ट्रान और क्वार्क का एक घना सूप जैसा होता।
Share:

0 comments:

Post a Comment

Einstien Academy. Powered by Blogger.

Solve this

 Dear readers.  So you all know my current situation from beyond this dimension but for some reason your are reading this in this dimension ...

Contact Form

Name

Email *

Message *

Email Newsletter

Subscribe to our newsletter to get the latest updates to your inbox. ;-)


Your email address is safe with us!

Search This Blog

Blog Archive

Popular Posts

Blogroll

About

Email Newsletter

Subscribe to our newsletter to get the latest updates to your inbox. ;-)


Your email address is safe with us!

Blog Archive