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Monday, 12 June 2017

ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 03 : मूलभूत बल – महा एकीकृत सिद्धांत(GUT)

महा एकीकृत सिद्धांत(Grand Unified Theory) विद्युत-चुंबकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा मजबूत नाभिकिय बल के एकीकरण का सिद्धांत है। यह नाम प्रचलित है लेकिन उचित नही है क्योंकि यह महा नही है ना ही एकीकृत है। यह सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण का समावेश नही करता है अर्थात पूर्ण एकीकरण नही हुआ है। यह सिद्धांत पूर्ण सिद्धांत भी नही है क्योंकि इस सिद्धांत मे बहुत से कारक ऐसे है जिनके मूल्य की गणना नही की जा सकती है, उल्टे उन्हे प्रयोग की सफलता के लिए चुना जाता है! फिर भी यह पूर्ण एकीकृत सिद्धांत की ओर एक कदम है।
मूलभूत बलो के एकीकरण का सर्वप्रथम प्रयास मेक्सवेल ने किया था। उन्होने अपने समीकरणो तथा प्रयोगो से विद्युत, चुंबक और प्रकाश किरणो को एक ही बल की विभिन्न अवस्थाओ के रूप मे दर्शाया था। 1967 मे इम्पीरीयल विद्यालय लंदन के अब्दूस सलामतथा हार्वर्ड के स्टीवन वेनबर्ग ने विद्युतचुंबकिय बल तथा कमजोर नाभिकिय बल को एकीकृत करने वाला सिद्धांत प्रस्तावित किया।
महा एकीकृत सिद्धांत के अनुसार सभी मूलभूत बल एक ही बल की विभिन्न अवस्थाये है। कम ऊर्जा पर वे अलग अलग दिखायी देते है लेकिन अधिक ऊर्जा पर उनके गुण एक जैसे होते है।
मजबूत नाभिकिय बल अधिक ऊर्जा पर कमजोर हो जाता है जबकि विद्युत-चुंबकिय बल तथा कमजोर नाभिकिय बल अधिक ऊर्जा पर मजबूत हो जाते है। किसी अत्यंत उच्च ऊर्जा पर जिसे ‘महा एकीकरण उर्जा‘ कहते है , इन तीनो बलो की क्षमता समान होगी तथा वे किसी एक ही बल के अलग अलग स्वरूप होंगे। GUT के अनुसार इस ऊर्जा पर भिन्न भिन्न 1/2 स्पिन के कण जैसे क्वार्क और इलेक्ट्रान भी एक ही प्रकार के कण होगें, यह एक और एकीकरण(पदार्थ कणो का) होगा।
महा एकीकरण उर्जा का मूल्य अच्छी तरह से ज्ञात नही है लेकिन यह हजारो करोड़ो करोड़ो GeV होना चाहीए। वर्तमान कण त्वरक(Particle Acclerator) कणो को सौ GeV पर टकरा सकते है और प्रस्तावित कण त्वरक इस क्षमता को कुछ हजार GeV तक ले जायेंगे। किसी कण को महा एकीकरण ऊर्जा तक ले जाने के लिये कण त्वरक को सौर मंडल के आकार का बनाना होगा। यह अव्यवहारिक और आर्थिक रूप से असंभव है। इस कारण से महा एकीकृत सिध्दांत को प्रयोगशाला मे जांचा नही जा सकता है। लेकिन इस सिद्धांत के कम ऊर्जा वाले गुणधर्मो की जांच की जा सकती है।
इस सिद्धांत की सबसे दिलचस्प भविष्यवाणी है कि प्रोटान जो कि साधारण पदार्थ के अधिकतर द्रव्यमान का आधे के लगभग भाग बनाता है, अपने आप क्षय हो कर छोटे कण जैसे पाजीट्रान(एन्टी-इलेक्ट्रान) बना सकता है। इसका कारण यह है कि महा एकीकरण ऊर्जा पर क्वार्क और पाजीट्रान मे कोई अंतर नही है। एक प्रोटान के अंदर तीन क्वार्क होते है  उनके पास पाजीट्रान मे परिवर्तन के लायक ऊर्जा नही होती है, लेकिन किसी दूर्लभ अवसर पर कोई क्वार्क पाजीट्रान मे परिवर्तन के लायक ऊर्जा  प्राप्त कर सकता है। अनिश्चितता के सिद्धांत(uncertainty principle) के अनुसार किसी प्रोटान के अंदर किसी क्वार्क की ऊर्जा तय नही की जा सकती है। इस तरह से प्रोटान का क्षय संभव है। किसी क्वार्क के महा एकीकरण ऊर्जा प्राप्त करने की संभावना इतनी कम है कि इसके निरीक्षण के लिए 1 मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन(1  के बाद 30 शुन्य) वर्ष प्रतिक्षा करनी होगी। इससे यह प्रतित होता है कि सहज प्रोटान क्षय प्रायोगिक रूप से जांचा नही जा सकता है लेकिन यदि हम एक बड़ी मात्रा मे पदार्थ के प्रोटानो का निरिक्षण करे तो संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए कोई 1 के बाद 30 शून्य प्रोटानो को 1 वर्ष तक निरीक्षण करे तो वह एक प्रोटान के क्षय को देख सकता है।
इस तरह के कई प्रयोग किये गये है लेकिन किसी प्रयोग ने प्रोटान या न्युट्रान के क्षय को निश्चित प्रमाण प्रस्तुत नही किया है। एक प्रयोग मोर्टन साल्ट माईन ओहीयो मे  आठ हजार टन पानी का प्रयोग किया गया था। इस प्रयोग के लिये इस स्थान का चयन ब्रह्मांडीय विकिरण से बचाव के लिए किया गया था। लेकिन कोई भी सहज प्रोटान क्षय नही पाया गया। इस से यह लगता है कि प्रोटान की संभव आयु दस मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन(1  के बाद 31शुन्य) से ज्यादा होगी। यह महा एकीकरण सिद्धांत द्वारा कल्पित आयु से ज्यादा है लेकिन कुछ अन्य गणनाओ के अनुसार प्रोटान की आयु इससे भी ज्यादा हो सकती है। इन सिद्धांत की जांच के लिये और ज्यादा पदार्थ का प्रयोग कर ज्यादा संवेदनशील उपकरणो के साथ प्रयोग की आवश्यकता है।
प्रोटान या न्युट्रान के सहज क्षय का निरिक्षण कठीन है। लेकिन हमारा आस्तित्व इसकी उल्टी प्रक्रिया अर्थात प्रोटानो के निर्माण से है। ज्यादा सटिक शब्दो मे हमारा आस्तित्व ब्रम्हाण्ड के निर्माण के समय बने क्वार्क के निर्माण से जो प्रति-क्वार्क(Antiquark) से ज्यादा संख्या मे थे। पृथ्वी पर  पदार्थ मुख्यतः प्रोटान और न्युट्रान से बना है जोकि क्वार्क से बने है। लेकिन पृथ्वी पर प्रति-प्रोटान(Anti-Proton) या प्रति-न्यूट्रॉन(Anti-Neutron) नही है जो कि प्रति-क्वार्क(Anti-Quark) से बने होते है। कुछ ही प्रतिप्रोटान या प्रतिन्युट्रान प्रयोगशालाओ मे वैज्ञानिको ने महाकाय कण त्वरको(Large Particle Acclerator) से बनाये है। हमे हमारी गंगा से उत्सर्जित ब्रह्मांडीय विकिरण से ज्ञात है कि हमारी आकाशगंगा मे भी कुछ उच्च ऊर्जा वाले टकराव मे निर्मित होने वाले कण/प्रति-कण युग्म(Particle/Anti-Particel Pair) के अतिरिक्त प्रतिप्रोटान और प्रतिन्युट्रान नही है। यदि हमारी आकाशगंगा मे प्रतिपदार्थ की उपस्थिती होती तब पदार्थ और प्रतिपदार्थ की सीमा पर कण तथा प्रतिकण के टकराव से उत्पन्न होने वाले विकिरण से प्रतिपदार्थ अपनी उपस्थिती दर्शाता। कण और प्रतिकण दोनो एकदूसरे से टकराने पर नष्ट होकर ऊर्जा मे परिवर्तित हो जाते है।
हमारे पास इस तथ्य के के कोई प्रमाण नही है कि आकाशगंगाये पदार्थ से बनी है या प्रति पदार्थ से। लेकिन वे किसी एक से बनी होंगी। कोई आकाशगंगा पदार्थ और प्रतिपदार्थ के मिश्रण से बनी नही हो सकती है क्योंकि इस अवस्था मे एक दूसरे से टकराकर कण-प्रतिकण विकिरण उत्पन्न करेंगे तथा ऐसा कोई विकिरण अभी तक नही पाया गया है। इस से यह मान्यता है कि सभी आकाशगंगाये क्वार्क से बनी है नाकि प्रतिक्वार्क से। यह असंभव लगता है कि कुछ आकाशगंगाये पदार्थ से बनी हो और कुछ प्रतिपदार्थ से।
यह एक रहस्य है कि क्वार्क की संख्या प्रतिक्वार्क से ज्यादा क्यों होना चाहीये ? वे दोनो समान संख्या मे क्यो नही है ? यह सौभाग्य है कि क्वार्क प्रतिक्वार्क से ज्यादा थे, यदि ऐसा नही होता तब सभी क्वार्क प्रतिक्वार्क से टकराकर एक दूसरे को नष्ट कर देते और ब्रह्माण्ड मे विकिरण के अतिरिक्त कुछ नही बचता। तब ब्रम्हांड मे कोई आकाशगंगा, तारा या ग्रह नही होता ना ही मानव जीवन! शायद महा एकीकृत सिद्धांत यह रहस्य सुलझा सकता है कि वर्तमान मे क्वार्क प्रतिक्वार्क से ज्यादा क्यों है, उस संभावना मे भी जीसमे क्वार्क और प्रतिक्वार्क की संख्या बराबर हो। हमने इसे लेख मे यह देखा है कि GUT के अनुसार उच्च ऊर्जा पर क्वार्क पाजीट्रान(प्रति-इलेक्ट्रान) मे परिवर्तित हो सकता है। इससे उल्टी प्रक्रिया मे प्रतिक्वार्क का इलेक्ट्रान मे, और इलेक्ट्रान तथा पाजीट्रान(एन्टी इलेक्ट्रान) का प्रतिक्वार्क तथा क्वार्क मे परिवर्तन संभव है। ब्रम्हाण्ड के जन्म के कुछ क्षणो मे वह अत्याधिक गर्म था जिससे कणो की ऊर्जा इतनी ज्यादा थी कि ऐसे परिवर्तन संभव थे। लेकिन ऐसा कैसे हुआ कि क्वार्क की संख्या प्रतिक्वार्क से ज्यादा हो गयी ? इसका कारण यह है कि भौतिकी के नियम कण और प्रतिकण के लिए समान नही है।
१९५६ तक यह माना जाता था कि भौतिकी के नियम तीन अलग अलग सममीतीया C(Charge – आवेश), P(Parity -सादृश्यता) तथा T(Time -समय) का पालन करते है।
  1. सममीती C का अर्थ था कि कण तथा प्रतिकण के लिए नियम समान है।
  2. सममीती P का अर्थ था कि किसी अवस्था तथा उसकी दर्पण अवस्था के लिए नियम समान है(दाये दिशा मे घुर्णन करते कण की दर्पण अवस्था बायें घुर्णन करती होगी)।
  3. सममीती T का अर्थ था कि यदि आप सभी कण और सभी प्रतिकण के गति की दिशा पलट दे तो सारी प्रणाली भूतकाल मे चली जायेगी, दूसरे शब्दो मे नियम भूतकाल मे तथा भविष्य मे समान है।
1956 मे दो अमरीकी वैज्ञानिक सुंग दाओ ली तथा चेन निंग यांग ने प्रस्तावित किया कि कमजोर नाभिकिय बल P सममिती को नही मानता है। दूसरे शब्दो मे कमजोर नाभिकिय बल के कारण ब्रह्माण्ड अपनी दर्पण प्रतिकृति ब्रह्माण्ड से भिन्न होगा। उसी वर्ष उनकी एक सहकर्मी चेन शीउंग वु ने इसे प्रमाणित कर दिया। इसे प्रमाणित करने चेन शीउंग वु ने रेडीयो सक्रिय केन्द्रको को चुंबकिय क्षेत्र मे एक पंक्ति से लगा दिया जिससे वे सभी एक ही दिशा मे घुर्णन कर रहे हो और उन्होने निरिक्षण किया की एक दिशा मे इलेक्ट्रान का उत्सर्जन दूसरी दिशा से ज्यादा हो रहा था। अगले वर्ष ली और यांग को भौतिकी का नोबेल मिला। बाद मे यह भी पाया गया कि कमजोर नाभिकिय बल C सममीती का भी पालन नही करता। अर्थात प्रतिपदार्थ से बना ब्रह्मांड सामान्य ब्रह्मांडसे भिन्न व्यव्हार करेगा। लेकिन कमजोर नाभिकिय बल CP संयुक्त सममीती का पालन करता है। अर्थात किसी ब्रह्मांड की दर्पण प्रतिकृति मे हर कण को उसके प्रतिकण से बदल दिया जाये तो वह मूल ब्रह्मांड के जैसे ही होगा और उसके जैसे ही व्यवहार करेगा। लेकिन 1964 मे दो अमरीकी वैज्ञानिक जे डब्ल्यु क्रोनीन तथा वाल फीच ने पाया कि कुछ कण जैसे K-मेसान के क्षय मे CP सममीती का पालन नही होता है। उन्हे भी इस खोज के लिए नोबेल मीला।(काफी सारे नोबेल इसलिए प्रदान किये गये कि वह दर्शाते है कि ब्रह्मांड उतना सरल नही है जितना हम सोचते थे।)
एक गणितिय प्रमेय के अनुसार क्वांटम मेकेनिक्स तथा सापेक्षता को मानने वाला कोई भी सिद्धांत CPT की संयुक्त सममीती का पालन करेगा। अर्थात ब्रह्मांड के कणो को उनके प्रतिकणो से बदलकर, उनकी दर्पण प्रतिकृति बनाकर, यदि समय की दिशा बदल दी जाये तो बनने वाला ब्रह्मांड मूल ब्रह्मांड जैसा होगा। लेकिन क्रोनीन और फीच ने यह सिद्ध किया कि ब्रह्मांड के कणो को उनके प्रतिकणो से बदलकर, उनकी दर्पण प्रतिकृति बनाकर, यदि समय की दिशा नही बदली जाये तो बनने वाला ब्रह्मांड मूल ब्रह्मांड से अलग होगा। इससे यह साबित होता है कि समय की दिशा बदलने पर भौतिकी के नियम बदलते है, वे T सममीती का पालन नही करते है।
यह निश्चित है कि शुरुवाती ब्रह्मांड T सममीती का पालन नही करता था, जैसे ही समय आगे बढ़ता है ब्रह्मांड का विस्तार होता है, यदि समय पिछे चले तो ब्रह्मांड का संकुंचन होगा। कुछ बल T सममीती का पालन नही करते है, जिससे जैसे ही ब्रह्मांड का विस्तार होता है ये बल इलेक्ट्रान से प्रतिक्वार्क की तुलना मे पाजीट्रान को क्वार्क मे अधिक मात्रा मे परिवर्तित करते है। उसके पश्चात जैसे ही ब्रह्मांड का तापमान उसके विस्तार के साथ कम होता है, प्रतिक्वार्क क्वार्क के साथ टकराकर नष्ट हो जाते है लेकिन क्वार्क की संख्या प्रतिक्वार्क से ज्यादा होने के कारण अधिक मात्रा के क्वार्क बचे रहते है। इन्ही बचे हुये क्वार्को से आज का ब्रह्मांड और हम स्वयं बने हुये है। हमारा स्वयं का आस्तित्व GUT सिद्धांत के पुष्टिकरण के रूप मे लिया जा सकता है।
महा एकीकृत सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण बल का समावेश नही करता है। इससे ज्यादा अंतर नही पढ़ता है क्योंकि यह इतना कमजोर बल है कि इसके प्रभावो की  मूलभूत कणो या परमाणुओ के संदर्भ मे उपेक्षा की जा सकती है। लेकिन तथ्य यह है कि इसकी लंबी दूरी पर पड़ने वाले प्रभाव और हमेशा आकर्षित करने के गुण से इसका प्रभाव जुड़ते जाता है। इस कारण समुचित मात्रा मे पदार्थ कणो से यह बल बाकि बलो पर भारी पड़ता है। यही वजह है कि गुरुत्वाकर्षण बल ने ही ब्रह्मांड को आकार दिया है और उसके विकास को निश्चित किया है। किसी तारे के आकार के पिंड मे भी गुरुत्वाकर्षण बल बाकि बलो पर हावी होकर उसे श्याम वीवर बनने पर विवश कर सकता है।
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