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Monday, 12 June 2017

ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 08 : क्या प्रति-ब्रह्माण्ड(Anti-Universe) संभव है?

सैद्धांतिक रूप से तथा प्रायोगिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रति पदार्थ का अस्तित्व है। अब यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रति-ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव है ?
हम जानते है कि किसी भी आवेश वाले मूलभूत कण का एक विपरीत आवेश वाला प्रतिकण होता है। लेकिन अनावेशित कण जैसे फोटान (प्रकाश कण), ग्रैवीटान(गुरुत्व बल धारक कण) का प्रति कण क्या होगा?
कण और प्रतिकण मिल कर ऊर्जा बनाते है। फोटान और ग्रेवीटान जैसे कण बलवाहक कण होते है, इस कारण से वे स्वयं के प्रति कण हो सकते है। ग्रेवीटान कण स्वयं का प्रतिकण है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण और प्रतिगुरुत्वाकर्षण एक ही है। प्रति पदार्थ को गुरुत्वाकर्षण/प्रतिगुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे ही गीरना चाहीये। जिस तरह गुरुत्व के प्रभाव से पदार्थ के कणो मे आकर्षण होता है, उसी तरह से प्रतिगुरुत्वाकर्षण से प्रति पदार्थ के कणो मे आकर्षण ही होगा। अर्थात गुरुत्वाकर्षण और प्रति गुरुत्वाकर्षण दोनो आकर्षण बल ही है।
(प्रतिगुरुत्वाकर्षण यह शब्द इस संदर्भ मे सही शब्द नही है। प्रतिकण एक दूसरे को साधारण कण की तरह आकर्षित करते है, यह एक अवधारणा है, अभी तक इसे प्रयोगशाला मे प्रमाणित नही किया गया है क्योंकि अब तक कुल निर्मित प्रतिपदार्थ १ ग्राम से भी कम है।)
पाल डीरेक का सिद्धांत दो मूल प्रश्नो का हल देने मे सक्षम है। यह दो मूल प्रश्न है:
  1.  प्रकृति द्वारा प्रतिपदार्थ के निर्माण का उद्देश्य क्या है?
  2.  क्या प्रति ब्रह्माण्ड का अस्तित्व हो सकता है ?
प्रति बह्माण्ड से पहले कुछ आधारभूत जानकारी
हमारे ब्रह्माण्ड की तीन सममीतीयां है , .C(Charge – आवेश), P(Parity -सादृश्यता) तथाT(Time -समय)। यह माना जाता था कि भौतिकी के नियम इन तीनो सममीतीयों का पालन करते है।
  1. सममीती C : कण तथा प्रतिकण के लिए नियम समान है।
  2. सममीती P :  किसी अवस्था तथा उसकी दर्पण अवस्था के लिए नियम समान है(दाये दिशा मे घुर्णन करते कण की दर्पण अवस्था बायें घूर्णन करती होगी)।
  3. सममीती T : यदि आप सभी कण और सभी प्रतिकण के गति की दिशा पलट दे तो सारी प्रणाली भूतकाल मे चली जायेगी, दूसरे शब्दों मे नियम भूतकाल मे तथा भविष्य मे समान है।
किसी भी प्रतिब्रह्माण्ड के लिए हमे इन तीन सममीतीयो मे से कम से कम एक या अधिकतम तीनो को विपरीत करना होगा।
क्या प्रति-ब्रह्माण्ड संभव है ?
मान लिजीए किसी वैज्ञानिक गल्प कथा(Science Fiction) मे नायक अंतरिक्ष मे पृथ्वी के जैसा ग्रह खोज निकालता है। यह नया खोजा ग्रह हर मायनो मे पृथ्वी के जैसा ही होता है, एक ही अंतर होता है कि वह प्रतिपदार्थ से बना है। इस ग्रह पर हमारे जुड़वाँ मौजूद है जिनके प्रति-बच्चे है। ये प्रति-मानव प्रति-शहरो मे रहते है। प्रति-रसायनशास्त्र तथा रसायनशास्त्र के नियम समान है, केवल आवेश बदल गये है, इसकारण से प्रतिब्रम्हाण्ड के प्रतिमानवो को पता नही चलता है कि वे प्रति-पदार्थ के बने है। उनकी दृष्टी से हम प्रतिपदार्थ से निर्मित है। (भौतिक विज्ञान के अनुसार इसे विपरीत आवेश ब्रह्माण्ड(विपरीत C ब्रह्माण्ड) कहेंगे क्योंकि यहां धन आवेश और ऋण आवेश मे अदलाबदली हो गयी है लेकिन अन्य सभी कुछ समान है।)
किसी अन्य विज्ञान गल्प कथा मे वैज्ञानिको को अंतरिक्ष मे पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह मिलता है जो कि पृथ्वी की दर्पणाकृति है। इस ग्रह मे हर वस्तु का बायां भाग दायें से तथा दायां भाग बांए से बदला हुआ है। सभी के हृदय दायें है तथा अधिकतर व्यक्ति बाएं हाथ से कामकरने वाले है। वे भी कभी यह नही जान पाएंगे कि वे बायेदायें विपरित दर्पण ब्रह्माण्ड मे रहते है। (भौतिक विज्ञान के अनुसार इस दर्पणाकृति ब्रह्माण्ड को एक विपरीत दिशा ब्रह्माण्ड(विपरीत P ब्रह्माण्ड) कहेंगे।)
लेकिन क्या विपरीत C ब्रह्माण्ड या विपरित P ब्रह्माण्ड का अस्तित्व हो सकता है? भौतिक विज्ञान इन प्रश्नो को गंभीरता से लेते है क्योंकि न्युटन तथा आइंस्टाइन के समीकरणों पर परामाण्विक कणो के आवेश बदलने से या परामाण्विक कणो के की दाएं और बाएं दिशा की अदलाबदली से कोई अंतर नही आता है। वे उसी तरह वैध रहते है। अर्थात  न्युटन तथा आइंस्टाइन के समीकरणों के अनुसार सैद्धांतिक रूप से विपरीत C ब्रह्माण्ड या विपरीत P ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव है।
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक रिचर्ड फेनीमन ने इन ब्रह्माण्डो से संबधित एक मनोरंजक प्रश्न पूछा था। मान लिजिए की हमने किसी दिन इन दूरस्थ ग्रह के परग्रहीयो से रेडीयो संपर्क स्थापित कर लिया है लेकिन हम उन्हे देख नही सकते है। हम नही जानते है कि वे पदार्थ से निर्मित है या प्रतिपदार्थ से। क्या हम इन परग्रहीयो को रेडीयो के द्वारा बायें तथा दा्यें के मध्य अंतर समझा सकते है ? आप कोशिश कर के देख लिजीये। यदि भौतिकी के नियम विपरीत P ब्रह्माण्ड के लिए समान रहते है तब यह असंभव है।
रिचर्ड के अनुसार कुछ तथ्यो को समझाना आसान होता है, जैसे हमारे शरीर का आकार, हमारी उंगलियों, हाथो, पैरो की संख्या। हम परग्रहीयो को रसायनशास्त्र और जीवशास्त्र के नियम समझा सकते है। लेकिन यदि हम बायें या दा्यें के सिद्धांत(या घड़ी की दिशा और घड़ी की विपरीत दिशा) को समझाने का प्रयास करे तो हम असफल रहेंगे। हम उन्हे कभी नही समझा पायेंगे कि हमारा हृदय शरीर के बायें है,या किस दिशा मे पृथ्वी घूर्णन करती है या किस दिशा मे डी एन ए के अणुओ के पेंच घुमे हुये है।
लेकिन जब कोलंबीया विश्व विद्यालय के सुंग दाओ ली तथा चेन निंग यांग ने इस सिद्धांत को गलत प्रमाणित कर दिया। उनके अनुसार परमाण्विक कणो की संरचना के अनुसार विपरीत P ब्रह्माण्ड(दर्पणाकृति ब्रह्माण्ड) का अस्तित्व संभव नही है। १९५६ मे दो अमरीकी वैज्ञानिक सुंग दाओ ली तथा चेन निंग यांग ने प्रस्तावित किया कि कमजोर नाभिकिय बल P सममिती को नही मानता है। दूसरे शब्दो मे कमजोर नाभिकिय बल के कारण ब्रह्माण्ड अपनी दर्पण प्रतिकृति ब्रह्माण्ड से भिन्न होगा। उसी वर्ष उनकी एक सहकर्मी चेन शीउंग वु ने इसे प्रमाणित कर दिया। इसे प्रमाणित करने चेन शीउंग वु ने रेडीयो सक्रिय केन्द्रको को चुंबकिय क्षेत्र मे एक पंक्ति से लगा दिया जिससे वे सभी एक ही दिशा मे घुर्णन कर रहे हो और उन्होने निरिक्षण किया की एक दिशा मे इलेक्ट्रान का उत्सर्जन दूसरी दिशा से ज्यादा हो रहा था।  बाद मे यह भी पाया गया कि कमजोर नाभिकिय बल C सममीती का भी पालन नही करता। अर्थात प्रतिपदार्थ से बना ब्रह्मांड सामान्य ब्रह्मांड से भिन्न व्यवहार करेगा।  एक वैज्ञानिक ने इस अवसर पर कहा था कि
“भगवान ने जरूर ग़लती की है!(The God must have made mistake!)”1
यांग और ली सममीती को उखाड़ फेंकने वाली इस खोज के लिए को १९५७ का भौतिकी नोबेल मीला।
रीचर्ड फेनीमेन के लिए इस खोज का अर्थ था कि आप परग्रही से रेडीयो से सपर्क करते समय एक भौतिकी प्रयोग के द्वारा बायें या दायें मे अंतर बता सकते है। उदाहरण के लिए कोबाल्ट ६० से उत्सर्जित इलेक्ट्रान समान मात्रा मे घड़ी की दिशा मे या घड़ी की दिशा के विपरीत घूर्णन नही करते है। अधिकतर इलेक्ट्रान एक विशिष्ट दिशा मे घूर्णन करते है जो कि सममीती सिद्धांत के विरूद्ध है।
रीचर्ड फेनीमेन अब मानवो और परग्रहीयो के मध्य एक भेंट का आयोजन कर सकते है। इस भेंट मे हम परग्रहीयो मिलने के समय अपना दायां हाथ आगे बढ़ाकर हाथ मिलाने कहेंगे। यदि हम उन्हे दायें बायें का सिद्धांत सही तरीके समझा पाये है तो वे अपना दायां हाथ आगे कर देंगे।
लेकिन यदि उन्होने अपना बांया हाथ आगे कर दिया तब ? इसका अर्थ यह होगा कि हमने एक भयानक गलती कर दी है, हम उन्हे दायें और बायें का अर्थ नही समझा पाये हैं। इससे बूरा यह है कि इसका अर्थ यह होगा कि ये परग्रही प्रतिपदार्थ से बने है, और उन्होने प्रयोगो मे सब कुछ उल्टा करते हुये बायें और दायें को उल्टा समझा है। यदि हमने उनसे हाथ मिलाया तो दोनो एक विस्फोट के साथ नष्ट होकर ऊर्जा मे परिवर्तित हो जायेंगे।
यह धारणा 1960 तक रही। हम लोग हमारे ब्रह्माण्ड तथा प्रतिब्रह्माण्ड(प्रति पदार्थ से निर्मित तथा दर्पणाकृति) मे अंतर करने मे असमर्थ थे। यदि आप सममीती तथा आवेश दोनो को पलट दे तब बनने वाला ब्रह्माण्ड भौतिकी के सभी नियमो का पालन करेगा। P सममीती या C सममीती को अलग अलग पलटने पर बनने वाला ब्रह्माण्ड संभव नही है लेकिन सममीती और आवेश दोनो को पलट दे, तब विपरीत CP ब्रह्माण्ड संभव था।
इसका अर्थ यह था कि यदि हम परग्रही से फोन पर बात कर रहे हो तब हम साधारण ब्रह्माण्ड तथा विपरीत CP ब्रह्माण्ड मे अंतर नही बता सकते थे।(अर्थात बाये और दायें की अदलाबदली तथा पदार्थ की प्रतिपदार्थ से अदला-बदली करने पर दोनो ब्रह्माण्ड एक जैसे थे)।
1964 मे भौतिक वैज्ञानिको को दूसरा झटका लगा कि विपरित CP ब्रह्माण्ड संभव नही है। परमाण्विक कणो के अध्ययन के बाद वैज्ञानिको ने पाया कि आवेश और सममीती को पलटने के बाद भी दायें और बायें मे अंतर करना संभव है। 1964 मे दो अमरीकी वैज्ञानिक जे डब्ल्यु क्रोनीन तथा वाल फीच ने पाया कि कुछ कण जैसे K-मेसान के क्षय मे CP सममीती का पालन नही होता है।आप फोन पर किसी विपरीत CP ब्रह्माण्ड के परग्रही को दांये और बायें मे अंतर समझा सकते है। इस खोज के लिए जेम्स क्रोनीन तथा वाल फिच को 1980 का भौतिकी नोबेल मिला।
जब वैज्ञानिको ने पाया कि विपरीत CP ब्रह्माण्ड भौतिकी के नियमो के अनुरूप नही है अर्थात उसका आस्तीत्व संभव नही है, वे काफी निराश हुये। लेकिन यह महाविस्फोट के सिद्धांत का पुष्टीकरण था। यह प्रमाणित करता था कि क्यों पदार्थ की मात्रा प्रतिपदार्थ से ज्यादा है। यदि विपरित CP ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव होता तब महाविस्फोट के दौरान पदार्थ और प्रतिपदार्थ की समान मात्रा होती, और वे एक दूसरे को नष्ट कर ऊर्जा मे परिवर्तित हो जाते। इस अवस्था मे ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ नही बचता। हमारा अस्तित्व है, इसका अर्थ है कि पदार्थ की मात्रा प्रतिपदार्थ से ज्यादा थी जो कि CP सममीती विखंडन का प्रमाण है।
अब तक हमने देखा कि विपरित C ब्रह्माण्ड, विपरित P ब्रह्माण्ड, विपरीत CP ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव नही है। क्या कोई प्रति-ब्रह्माण्ड संभव है ?
उत्तर है हां! विपरीत CP ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव नही है लेकिन एक प्रति ब्रह्माण्ड संभव है जो कि विचित्र है। यदि हम आवेश को विपरीत कर दे, दिशा विपरीत कर दे(दर्पणाकृति) तथा समय की दिशा पलट दे, तब बनने वाला ब्रह्माण्ड भौतिकी के सभी नियमो का पालन करेगा। विपरीत CPT ब्रह्माण्ड संभव है।
समय की दिशा बदलना विचित्र लगता है, यह सामान्य बुद्धि के विपरित है। विपरीत समय के ब्रह्माण्ड मे, आमलेट के अण्डे खाने की प्लेट से कूदकर तवे मे जायेंगे तथा तवे मे छिलके से जुडकर अंडे मे बदल जायेंगे। लाशे मृतावस्था से जिवित होकर, वृद्धावस्था से युवावस्था, युवावस्था से किशोरावस्था की ओर जायेंगी, बेंजामीन बटन की तरह!
सामान्य बुद्धि कहती है कि विपरीत समय का ब्रह्माण्ड संभव नही है ,लेकिन परमाण्विक कणो के गणितिय समीकरण इसे संभव कहते है। न्युटन के नियम भूतकाल मे पिछे या भविष्य मे सामने दोनो दिशा मे कार्य करते है। बीलीयर्ड के खेल की वीडियो रीकार्डींग किजीये। गेंदे एक दूसरे से टकराने पर न्युटन के नियम का पालन करती है। अब इस वीडियो टेप को विपरीत दिशा मे चलायीये। यह विचित्र अवश्य है लेकिन अब भी गेंदे एक दूसरे से टकराने पर न्युटन के नियम का पालन करती है।
क्वांटम भौतिकी मे स्थिती और जटिल हो जाती है। विपरीत समय क्वांटम भौतिकी के विपरीत है लेकिन विपरीत CPT ब्रह्माण्ड क्वांटम भौतिकी के नियमो के अनुरूप है। इसका अर्थ यह है कि पदार्थ को प्रतिपदार्थ से बदलने, दायें और बायें की अदलाबदली के पश्चात यदि समय को भविष्य से भूतकाल की ओर चलायें तब यह ब्रह्मांड भौतिकी के सभी नियमो का पालन करता है।
दूर्भाग्य से हम ऐसे विपरीत CPT ब्रह्माण्ड से संपर्क नही कर पायेंगे। हमारा कोई भी रेडीयो संकेत उनके भविष्य का भाग होगा। लेकिन वे अपने भविष्य को वे भूल चूके होंगे क्योंकि वहां समय विपरीत चलता है। भविष्य काल से भूतकाल की ओर!
विपरीत CPT ब्रह्मांड एक अविश्वसनीय, विचित्र तथा वैज्ञानिको की सनक से ज्यादा कुछ नही लगता है लेकिन कुछ वर्षो पूर्व ऐसे ही बयान श्याम वीवर, श्याम ऊर्जा के लिए दिये गये थे। लार्ड केल्विन ने कहा था कि हवा से भारी कोई भी वस्तु उड़ नही सकती है।  विमानयात्रा आज की सच्चाई है! यह एक सत्य है कि हर नयी खोज के सिद्धांत का पहले मजाक बनाया जाता है, जैसे जार्ज गैमाओ ने “Big Bang अर्थात महाविस्फोट के सिद्धांत” का बनाया था।
अगले अंक मे प्रतिपदार्थ के उपयोग !
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1. अनिश्चितता के सिद्धांत (Theory Of Uncertainty ) आइन्स्टाइन ने कुछ ऐसे ही कहा था :
भगवान पांसे नही फेंकता।(God does not play dice!)
नील्स बोहर(Niels Bohr) ने इसके जवाब मे कहा था:

आइंस्टाइन,  तुम मत बताओ कि भगवान को क्या करना चाहीये! (Einstein, don’t tell God what to do)
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