यह कैसे जाना जाये कि वास्तव मे क्या हो रहा है ?
मान लेते हैं कि रदरफोर्ड के प्रयोग के जैसे अन्य प्रयोगों से मूलभूत कणो की उपस्थिति जान पाना संभव है लेकिन हम यह कैसे जाने कि वास्तव मे क्या हो रहा है ?
श्रोत/लक्ष्य/जांच ( source/target/detection) के सबसे सामान्य उदाहरण को लेते है , जिससे हम सारे विश्व को देखते है।
जब हम प्रकाश को लेते है तब हम जानते हैं कि प्रकाश किरणे लाखों अरबो ’फोटान’ से बनी होती है। अन्य मूलभूत कणो के जैसे फोटान कण भी ’तरंग’ के जैसे व्यवहार रखते है। इसी कारण से फोटान कण हर उस वस्तु के बारे मे सूचना रखते है, जिससे वे टकराते है अर्थात प्रतिक्रिया करते है।
मान लिजिये कि आपके पीछे एक प्रकाश बल्ब है तथा सामने एक टेनिस गेंद रखी है। फोटान प्रकाश बल्ब (श्रोत) से उत्सर्जित होकर , टेनिस गेंद (लक्ष्य) से टकराकर विचलीत होते है तथा यही फोटान आपकी आंख (जांच यंत्र) से टकराते है। आपकी आंखे फोटान के आने की दिशा से गेंद की दिशा तथा आकार का निष्कर्ष निकालती हैं और आप जानते है कि आपके सामने एक गोलाकार गेंद रखी है। यही नही इन फोटानो के विभिन्न तरंगदैर्ध्य से आप जानते हैं कि गेंद का रंग हरा तथा पीला है। (ध्यान रहे कि फोटानो की हर तरंगदैर्ध्य का एक अलग रंग होता है, और इसी से वस्तुओं का रंग निर्धारित होता है, लेख के नीचे इस पर टिप्पणी देंखे।*)
हमारा मस्तिष्क फोटानो की इन सुचनाओं को ग्रहण कर उनका विश्लेषण करता है तथा उसमे टेनिस गेंद की छवि का निर्माण करता है। टेनिस बाल की यह मानसिक छवि हमे उसकी वास्तविकता का अहसास कराती है।
विभिन्न वस्तुओं से टकराकर वापिस आती प्रकाश किरणो से हम विश्व का अहसास करते है , देखते हैं। कुछ प्राणी जैसे चमगादड़ तथा डाल्फीन ध्वनि तरंगो के उत्सर्जन और जांच से विश्व का अहसास करते है। किसी भी भौतिक वस्तु की जांच के लिये किसी भी तरह की परावर्तित तरंग का प्रयोग किया जा सकता है।
एक बेहतर सूक्ष्मदर्शी
तरंगो के प्रयोग से भौतिक विश्व को देखने मे एक समस्या है, इससे बननी वाली छवि प्रयुक्त तरंगों के तरंगदैर्ध्य से सीमीत हो जाती है।
हमारी आंखे दृश्य प्रकाश के लिये बनी है, जिसका तरंगदैर्ध्य 0.0000005 मीटर के आसपास है। यह सामान्यतः पर्याप्त है क्योंकि हमे अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिये 0.0000005 से छोटी वस्तुओं को देखना नही होता है।
लेकिन दृश्य प्रकाश की तरंगो का तरंगदैर्ध्य किसी कोशिका से छोटी वस्तुओं के आकार से ज्यादा होता है और उन्हे दृश्य प्रकाश से देखा नही जा सकता है। हमारी आंखे उन्हे देखने मे असमर्थ हो जाती है। इससे छोटी वस्तुओं को देखने के लिये हमे इससे छोटी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगो का प्रयोग करना पड़ता है। इसी कारण से वायरस को देखने के लिये इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है, इलेक्ट्रान तरंगो का तरंगदैर्ध्य वायरस के आकार से कम होता है। लेकिन इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी के प्रयोग से प्राप्त परमाणु की छवि काफी धुँधली होती है।
तरंगदैर्ध्य – एक गुफा
लेकिन सौभाग्य से आपके पास अंधेरे मे चमकने वाली बास्केटबाल की गेंदो का बक्सा है। अचानक आपको एक जानवर की आवाज सुनायी देती है। क्या यह खूंखार भूखा भालू है या आपके दोस्त आपके साथ मजाक कर रहे हैं ?
इसका पता करने आप आवज की दिशा मे बास्केटबाल फेंकना शुरू करते है और याद रखते हैं कि बास्केटबाल कहां पर टकरा रहा है। इस तरह से आपको निचे दी आकृति के अनुसार रूपरेखा दिखायी देती है।
ओहो…. बास्केटबाल इतनी बड़ी है कि जब वह आपके सामने की वस्तु से टकराकर वापिस आ रही है तो आप यही समझ पा रहे हैं कि सामने जो भी है उंचा और चौड़ा है!
लेकिन आपके पास अंधेरे मे चमकने वाली टेनिस की गेंदे भी है। अब आपने टेनिस की गेंदो को फेंकना प्रारंभ किया और टकराने की जगह को याद रखना जारी रखा। अब कुछ ऐसी तस्वीर बनी।
पहले से बेहतर.. । लेकिन सामने की वस्तु का आकार पहले से स्पष्ट है लेकिन टेनिस की गेंदे भी इतनी बड़ी है कि एक मोटी सी ही रूपरेखा बन रही है।
आहा, सौभाग्य से आपके पास अंधेरे मे चमकने वाले कंचे भी है। इन कंचो के फेंकने से कुछ ऐसी तस्वीर बनेगी। यह पहले से बेहतर छवि है। भागो….. सामने भूखा भालू है…..!
अंत मे आपको स्पष्ट छवि के निर्माण के लिए सबसे छोटी गेंदो का प्रयोग करना पड़ा!
(इस लेख के लिये किसी भी भालू को चोट नही पहुंचायी गयी है।)
(इस लेख के लिये किसी भी भालू को चोट नही पहुंचायी गयी है।)
कहानी का निष्कर्ष
इस सारी कहानी का निष्कर्ष है कि :
- भूखे भालू पर कोई भी वस्तु ना फेंके।
- किसी भी वस्तु से संबंधित अधिकतम सूचना जानने के लिये सबसे छोटा जांच उपकरण प्रयोग करें।
हमारे जांच उपकरण(गेंद) से द्वारा कोई भी टक्कर केवल यह सूचना देगी कि उस जांच उपकरण के व्यास मे कोई भालू मौजूद है। इन तीनो जांच उपकरण(गेंद) मे से कंचे सबसे ज्यादा प्रभावी उपकरण है क्योंकि किसी कंचे से टकराव ज्यादा प्रभावी दूरी की सूचना देगा क्योंकि उसका व्यास सबसे कम है। बास्केटबाल के टकराव से बनी छवि धूंधली है क्योंकि उससे भालू के आकार का सही अनुमान कठिन है। जैसे ही गेंदे छोटी हुयी छवि और बेहतर होते गयी और भालू का आकार स्पष्ट होते गया। किसी छवि के स्पष्टता को ही “रीजाल्युशन(Resolution)” कहा जाता है, जो डीजीटल तकनीक मे पिक्सेल मे मापा जाता है। ये पिक्सेल भी तो नन्ही गेंदे है….!
बड़ी तरंगदैर्ध्य वाले कणो को बास्केटबाल के जैसे माना जा सकता है क्योंकि वह जिससे टकराती है उसके बारे मे ज्यादा सूचना देने मे असमर्थ रहती है। कम तरंगदैर्ध्य वाले कणो को कंचो के तुल्य माना जाता है क्योंकि वे टकराने वाली वस्तु के बारे मे बेहतर सूचना प्रदान करती हैं। सारांश यह है कि कण की जितनी कम तरंगदैर्ध्य होगी लक्ष्य संबधित ज्यादा बेहतर और स्पष्ट सूचना प्राप्त होगी।
रीजाल्युशन (स्पष्टता) तथा तरंगदैर्ध्य को तरणताल के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। यदि तरणताल की लहरें 1 मीटर की दूरी पर है अर्थात 1 मीटर तरंगदैर्ध्य की लहरे है और आप तरणताल मे एक छड़ी चित्रानुसार डालते है तब इससे उन लहरों पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा। लहरे आसानी से छड़ी के पास से गुजर जायेंगी क्योंकि छड़ी उन लहरो की तुलना मे बहुत छोटी है। यदि लहरे छड़ी की चौड़ाई से छोटी हो तो ? आप समझ सकते है कि क्या होगा!
रीजाल्युशन (स्पष्टता) तथा तरंगदैर्ध्य को तरणताल के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। यदि तरणताल की लहरें 1 मीटर की दूरी पर है अर्थात 1 मीटर तरंगदैर्ध्य की लहरे है और आप तरणताल मे एक छड़ी चित्रानुसार डालते है तब इससे उन लहरों पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा। लहरे आसानी से छड़ी के पास से गुजर जायेंगी क्योंकि छड़ी उन लहरो की तुलना मे बहुत छोटी है। यदि लहरे छड़ी की चौड़ाई से छोटी हो तो ? आप समझ सकते है कि क्या होगा!
सभी कण की तरंग के जैसे गुणधर्म होते है। इसीलिये जब हम कणो को जांचयंत्र के जैसे प्रयोग करते है तब हमे छोटी तरंगदैर्ध्य वाले कणो से बेहतर सूचना प्राप्त होती है। सरल नियम है कि कोई भी कण अपने तरंगदैर्ध्य तक के आकार तक ही जांच कर सकता है उससे कम आकार के लिये उससे कम तरंगदैर्ध्य वाले कण का प्रयोग करना होगा।












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