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Wednesday, 14 June 2017

जीपीएस से भी तेज और सटीक है गैलीलियो

नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यूरोप ने अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम गैलीलियो बनाया है जो अमेरिका के जीपीएस से कहीं ज्यादा तेज और सटीक है.
Galileo Satellitensystem (ESA/Illustration: Pierre Carril)
समंदर में तैरते विशाल जहाजों की हो या आकाश में उड़ते विमान, नेविगेशन के बिना उन्हें चलाना मुमकिन नहीं. आजकल तो सड़कों पर चलती बहुत सी गाड़ियों का काम भी नेविगेशन के बिना नहीं चलता.
अमेरिकी सैटेलाइटों के मिलकर काम करने से एक सिस्टम बना है, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानि जीपीएस. यूरोप अपने नेविगेशन सिस्टम गैलीलियो को अमेरिका के सिस्टम से भी बेहतर बनाना चाहता है. गैलीलियो की सैटेलाइट्स जीपीएस के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर सिग्नल और फ्रिक्वेंसीज भेजती हैं. इसकी वजह से दुनिया भर में कहीं भी लोकेशन की जानकारी और भी ज्यादा सटीक ढंग से मिल रही है.
मिशन की निगरानी जर्मनी में गैलीलियो कंट्रोल सेंटर से होती है. काम को अनुभवी तकनीशियनों की एक टीम अंजाम देती है. एयर एंड स्पेस ट्रिप टेक्नीशियन क्रिस्टियान आरबिंगर कहते हैं, "अक्टूबर 2011 से दो सैटेलाइट्स उड़ान भर रही हैं और यहां हमारी टीम सफलता से उन्हें नियंत्रित कर रही है."
भविष्य में इस सेंटर से 18 और गैलीलियो सैटेलाइट्स कंट्रोल की जाएंगी. यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है, इसे पूरा करने के लिए दुनिया भर के 100 वैज्ञानिक और तकनीशियन मिलकर काम कर रहे हैं. आरबिंगर कहते हैं, "हमारा काम सैटेलाइट्स को सुरक्षित ढंग से उड़ाना है. सफल शुरूआत के बाद हम रुटीन वाला काम करते हैं और जरूरी नेविगेशन डाटा को इंपोर्ट करने लगते हैं."
शुरुआती तकनीकी समस्याओं के बाद 2011 में एक रूसी रॉकेट के जरिये गैलीलियो के फर्स्ट फेज के उपग्रह भेजे गए. पृथ्वी से 20 हजार किलोमीटर ऊपर पहुंचने के बाद उपग्रह निर्धारित कक्षा में स्थापित हुए. उपग्रह इस तरह स्थापित किये गए हैं कि वे धरती के एक एक सेंटीमीटर को कवर कर सकें. 2020 तक कुल 30 गैलीलियो सैटेलाइट्स भेजी जाएंगी. इनकी मदद से पृथ्वी पर कहीं भी मुफ्त नेविगेशन संभव होगा.
इस पूरे अभियान पर खर्च करीब पांच अरब यूरो आएगा. अंतरिक्ष में लगी गैलीलियो आंखें भविष्य में इंसान को बेहतरीन नेविगेशन मुहैया करायेंगी.

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