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Monday, 12 June 2017

ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 10 : श्याम विवर (Black Hole) क्या है?

श्याम वीवर
श्याम वीवर
श्याम विवर (Black Hole) एक अत्याधिक घनत्व वाला पिंड है जिसके गुरुत्वाकर्षण से प्रकाश किरणो का भी बच पाना असंभव है। श्याम विवर मे अत्याधिक कम क्षेत्र मे इतना ज्यादा द्रव्यमान होता है कि उससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण किसी भी अन्य बल से शक्तिशाली हो जाता है और उसके प्रभाव से प्रकाश भी नही बच पाता है।
श्याम विवर की उपस्थिति का प्रस्ताव 18 वी शताब्दी मे उस समय ज्ञात गुरुत्वाकर्षण के नियमो के आधार पर किया गया था। इसके अनुसार किसी पिंड का जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा या उसका आकार जितना छोटा होगा, उस पिंड की सतह पर उतना ही ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल महसूस होगा। जान मीशेल तथा पीयरे सायमन लाप्लास दोनो ने स्वतंत्र रूप से कहा था कि अत्याधिक द्रव्यमान या अत्याधिक लघु पिंड के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से किसी का भी बचना असंभव है, प्रकाश भी इससे बच नही पायेगा।
इन पिंडो को ’श्याम विवर(Black Hole)’ नाम जान व्हीलर ने 1967 मे दिया था। भौतिक विज्ञानीयों तथा गणितज्ञों ने यह पाया है कि श्याम विवर के पास काल और अंतराल(Space and Time) के विचित्र गुणधर्म होते हैं। इन विचित्र गुणधर्मो की वजह से श्याम विवर विज्ञान फतांसी लेखको का पसंदीदा रहा है। लेकिन श्याम विवर फतांसी नही है। श्याम विवर का आस्तित्व है और जब भी एक महाकाय तारे की मृत्यु होती है एक श्याम विवर का जन्म होता है। यह महाकाय तारे अपनी मृत्यु के पश्चात श्याम विवर बन जाते है। हम श्याम विवर को नही देख सकते है लेकिन उसमे गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप उसमे गिरते द्रव्यमान को देख सकते है। इस विधि से खगोल वैज्ञानिको ने अब तक ब्रह्माण्ड का निरीक्षण कर सैकड़ो श्याम विवरो की खोज की है। अब हम जानते है कि हमारा ब्रह्माण्ड श्याम विवरो से भरा पड़ा है और उन्होने ब्रह्माण्ड को आकार देने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
क्या श्याम विवर भौतिकी के नियमो का पालन करते है ?
श्याम विवर भौतिकी के सभी नियमों का पालन करते हैं। उसके विचित्र गुणधर्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के फलस्वरूप उत्पन्न होते है।
1679 मे आइजैक न्युटन ने प्रमाणित किया था कि ब्रह्माण्ड के सभी पिण्ड एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित होते है। गुरुत्वाकर्षण भौतिकी के सभी मूलभूत बलो मे सबसे कमजोर बल है। हमारे दैनिक जीवन मे प्रयुक्त होने वाले अन्य बल जैसे विद्युत, चुंबकत्व इससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। लेकिन गुरुत्वाकर्षण हमारे ब्रह्माण्ड को आकार देता है क्योंकि यह खगोलिय दूरीयोँ पर भी प्रभावी है। उदाहरण के लिए इस बल के प्रभाव से चन्द्रमा ग्रहों की ,ग्रह सूर्य की तथा सूर्य आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है।
किसी भारी पिंड द्वारा काल-अंतराल मे लायी गयी विकृति(गुरुत्वाकर्षण)
किसी भारी पिंड द्वारा काल-अंतराल मे लायी गयी विकृति(गुरुत्वाकर्षण)
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपने साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के द्वारा हमारे गुरुत्वाकर्षण के ज्ञान को उन्नत किया। उन्होने सिद्ध किया कि प्रकाश एक सीमित गति अर्थात लगभग 3 लाख किमी/सेकंड की गति से चलता है। इसका अर्थ यह है कि काल और अंतराल(Space and Time) एक दूसरे से संबधित हैं। 1915 मे उन्होने सिद्ध किया कि भारी पिण्ड अपने आसपास के 4 आयाम वाले काल-अंतराल को विकृत करते है, यह विकृति हमे गुरुत्वाकर्षण के रूप मे दिखायी देती है। जैसे किसी चादर पर एक भारी लोहे की गेंद रख दे तो वह चादर को विकृत कर देती है, अब उसके पास कंचो को बिखरा दे तो वे उस गेंद की परिक्रमा करते हुये अंत मे गेंद के पास पहुंच जाते है। यहां चादर अंतराल(Space) है, गेंद एक भारी पिंड और चादर मे आयी विकृति गुरुत्वाकर्षण बल। (4 आयाम : लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और समय)
आइंस्टाइन के पूर्वानुमानो को परखा जा चूका है और विभिन्न प्रयोगो से प्रमाणित किया गया है। अपेक्षाकृत कमजोर गुरुत्वाकर्षण बल जैसे पृथ्वी पर आइन्स्टाइन और न्युटन के पूर्वानुमान समान है। लेकिन मजबूत गुरुत्वाकर्षण जैसे श्याम विवर के पास मे आइन्स्टाइन के सिद्धांत से कई नये विचित्र अद्भुत तथ्यो की जानकारी प्राप्त हुयी है।
श्याम विवर का आकार कितना होता है ?
श्याम विवर का आकार
श्याम विवर का आकार
श्याम विवर के अंदर सारा द्रव्यमान एक अत्यधिक छोटे बिन्दू नुमा क्षेत्र मे सीमित होता है जिसे केन्द्रीय सिंगयुलैरीटी(Central Singularity) कहते है। घटना-क्षितिज(Event Horizon) श्याम विवर को घेरे हुये एक काल्पनिक गोला है जो श्याम विवर के पास जा सकने की सुरक्षित सीमा दर्शाता है। घटना क्षितीज को पार करने के बाद वापसी असंभव है, इस सीमा के बाद आप श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आकर केन्द्रिय सिंगयुलैरीटी मे समा जायेंगे। घटना-क्षितिज की त्रिज्या को जर्मन वैज्ञानिक स्क्वार्ज्सचील्ड के सम्मान मे स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या (Schwarzschild radius)कहते है।
घूर्णन करता श्याम विवर
घूर्णन करता श्याम विवर
स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या श्याम विवर के द्रव्यमान के अनुपात मे होती है। खगोल वैज्ञानिको ने स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या 6 मील से लेकर हमारे सौर मंडल के आकार तक की पायी है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से श्याम विवर इस सीमा से छोटे और बड़े भी हो सकते है। तुलना के लिए यदि पृथ्वी के सारे द्रव्यमान को दबा कर एक कंचे के आकार का कर दे तो वह श्याम विवर बन जायेगी। आप अनुमान लगा सकते है कि श्याम विवर मे पदार्थ किस दबाव मे और कितने ज्यादा घनत्व का होता है। किसी श्याम विवर का अत्याधिक द्रव्यमान का होना आवश्यक नही है, आवश्यक है उसका अत्याधिक घनत्व का होना। सूर्य के द्रव्यमान के लिए यह सीमा 3 किमी है, अर्थात सूर्य के सारे द्रव्यमान को संकुचित कर 3 किमी त्रिज्या मे सीमित कर दे तो वह श्याम विवर मे परिवर्तित हो जायेगा। ध्यान दे सूर्य की त्रिज्या लगभग 700,000 किमी है।
कुछ श्याम विवर अपने अक्ष(axis) पर घूर्णन भी करते है और स्थिति को ज्यादा जटिल बनाते है। घूर्णन के साथ आसपास का अंतरिक्ष भी आसपास खिंचा जाता है, जिससे एक खगोलीय भंवर का निर्माण होता है। इस अवस्था मे सिंगयुलैरीटी एक बिंदू की जगह एक बेहद पतला वलय(ring) होती है। इस मे एक काल्पनिक गोले की बजाये दो घटना क्षितिज होते है। इनके अतिरिक्त एक अर्गोस्फीयर (Ergosphere)नामक क्षेत्र होता है जो की स्थायी सीमा से बंधा होता है। इसमे फंसा पिंड श्याम विवर के घूर्णन के साथ घूमता रहता है, सैधांतिक रूप से वह श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो सकता है।
कितनी तरह के श्याम विवर संभव है ?
अतिभारी श्याम विवर(Supermassive Black Hole) आकाशगंगा के केन्द्र मे होते है। बड़ी आकाशगंगा मे बड़ा श्याम विवर होता है।
अतिभारी श्याम विवर(Supermassive Black Hole) आकाशगंगा के केन्द्र मे होते है। बड़ी आकाशगंगा मे बड़ा श्याम विवर होता है।
श्याम विवर सामान्यतः एक दूसरे से भिन्न लगते है। लेकिन यह उनके आसपास के क्षेत्रो की भिन्नता के कारण होता है। सभी श्याम विवर एक जैसे होते है, उनके तीन विशिष्ट गुणधर्म होते है:
  1. श्याम विवर का द्रव्यमान (कितनी मात्रा पदार्थ से वह निर्मित है)।
  2. घूर्णन (वह घूर्णन कर रहा है अथवा नही ?,उसके अपने अक्ष पर घूर्णन की गति)।
  3. उसका विद्युत आवेश
विचित्र रूप से श्याम विवर हर निगले गये पिंड के बाकी सभी जटिल गुणधर्मो को मिटा देते है।
खगोलविद किसी श्याम विवर के द्रव्यमान की गणना उसकी परिक्रमा करते पदार्थ के अध्यन से कर सकते है। अभी तक दो तरह के श्याम विवर ज्ञात हुये है।
  1. तारकीय द्रव्यमान वाले श्याम विवर(Stellar Mass) – श्याम विवर जिनका द्रव्यमान सूर्य से कुछ गुणा ज्यादा हो
  2. अतिभारी श्याम विवर(Super Massive Black Hole) – किसी छोटी आकाशगंगा के द्रव्यमान के तुल्य
हाल के कुछ अध्यनो से ज्ञात हुआ है कि इन दो श्याम विवरो के वर्गो के मध्य द्रव्यमान के भी श्याम विवर हो सकते है।
श्याम विवर एक अक्ष पर घूर्णन कर सकते है, उसकी घूर्णन गति एक विशिष्ट सीमा को पार नही कर सकती है। खगोलविद मानते है कि श्याम विवर को घूर्णन करना चाहिये क्योंकि श्याम विवर जिन पिंड (तारो) से बनते है वे भी घूर्णन करते है। हाल के कुछ निरिक्षण इस पर कुछ प्रकाश डाल रहे है लेकिन सभी वैज्ञानिक इस पर एक मत नही है। श्याम विवर विद्युत आवेशीत भी हो सकते है। लेकिन इस अवस्था मे विपरीत आवेश के पदार्थ को आकर्षित कर और उसे निगल कर तेजी से उदासीन हो जायेंगे, इसकारण वैज्ञानिक मानते है कि ब्रह्माण्ड के सभी श्याम विवर विद्युत उदासीन(Neutral) होते है।
नोट: श्याम विवर को हिन्दी मे कृष्ण विवर/कृष्ण छिद्र भी कहा जाता है।(साभार :दर्शन बवेजा जी/नीरज रोहील्ला जी)
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