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Monday, 12 June 2017

गुरुत्विय तरंगो की खोज: महाविस्फोट(Big Bang), ब्रह्मांडीय स्फिति(Cosmic Inflation), साधारण सापेक्षतावाद की पुष्टि

Update :BICEP2 के प्रयोग के आंकड़ो मे त्रुटि पायी गयी थी। इस प्रयोग के परिणामो को सही नही माना जाता है।
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पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा सूर्य के आसपास उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा काल-अंतराल(space-time) मे लाये जाने वाली वक्रता के फलस्वरूप करती है। मान लिजीये यदि किसी तरह से सूर्य को उसके स्थान से हटा लिया जाता है तब पृथ्वी पर सूर्य की (या सूर्य के गुरुत्वाकर्षण)अनुपस्थिति का प्रभाव पडने मे कितना समय लगेगा ? यह तत्काल होगा या इसमे कुछ विलंब होगा ? सूर्य के पृथ्वी तक प्रकाश 8 मिनट मे पहुंचता है, सूर्य की अनुपस्थिति मे पृथ्वी पर अंधेरा होने मे तो निश्चय ही 8 मिनट लगेंगे, लेकिन गुरुत्विय अनुपस्थिति के प्रभाव मे कितना समय लगेगा ? यदि हम न्युटन के सिद्धांतो को माने तो यह प्रभाव तत्काल ही होगा लेकिन आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के अनुसार यह तत्काल नही होगा क्योंकि गुरुत्वाकर्षण भी तरंगो के रूप मे यात्रा करता है। इस लेख मे हम इसी गुरुत्विय तरंगो की चर्चा करेंगे।
हमारे पास ऐसा कोई उपाय नही है जिससे हम यह जान सके कि आज से लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड के जन्म के समय क्या हुआ था। लेकिन वैज्ञानिको ने सोमवार 17 मार्च 2014 महाविस्फोट अर्थात बीग बैंग सिद्धांत को मजबूत आधार देने वाली नयी खोज की घोषणा की है। यदि यह खोज सभी जांच पड़ताल से सही पायी जाती है तो हम जान जायेंगे कि ब्रह्मांड एक सेकंड के खरबवें हिस्से से भी कम समय मे कैसे अस्तित्व मे आया।
कैलीफोर्नीया इंस्टीट्युट आफ टेक्नालाजी के भौतिक वैज्ञानिक सीन कैरोल कहते है कि
“यह खोज हमे बताती है कि ब्रह्माण्ड का जन्म कैसे हुआ था। मानव जाति जिसका आधुनिक विज्ञान कुछ सौ वर्ष ही पूराना है लेकिन वह अरबो वर्ष पहले हुयी एक घटना जिसने ब्रह्माण्ड को जन्म दिया को समझने के समिप है, यह एक विस्मयकारी उपलब्धि है”।
वैज्ञानिको ने पहली बार आइंस्टाइन द्वारा साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत मे प्रस्तावित गुरुत्विय तरंगो के अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण पाया है। गुरुत्विय तरंगे काल-अंतराल(space-time) मे उठने वाली ऐसी लहरे है जो महाविस्फोट से उत्पन्न सर्वप्रथम थरथराहट है।
पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित दूरदर्शी जिसका नाम BICEP2 — Background Imaging of Cosmic Extragalactic Polarization 2 है, इस खोज मे सबसे महत्वपूर्ण साबित हुयी है। इस दूरबीन ने महाविस्फोट से उत्पन्न प्रकाश के ध्रुवीकरण(polarization) को विश्लेषित करने मे प्रमुख भूमिका निभायी है, जिसके फलस्वरूप वैज्ञानिक यह महत्वपूर्ण खोज कर पाये हैं।

ब्रह्माण्ड का विस्तार(inflation-स्फिति)

ब्रह्माण्डीय स्फितिहम जानते हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक अत्यंत संघनित बिंदु से आज से 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक महाविस्फोट(Big Bang) से हुयी है। इस महाविस्फोट के 10 -35 सेकंड(प्लैंक काल) के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तेज गति से वृद्धि(exponential growth) हुयी। इस काल को ब्रह्माण्डीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान-प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके 300,000 वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।

गुरुत्विय तरंग

वैज्ञानिक मानते हैं कि काल-अंतराल(space-time)संरचना मे छोटी छोटी लहरे उठती रहती है जिन्हे क्वांटम विचलन(quantum fluctuation)कहते हैं। यदि आप काल-अंतराल को अत्यंत सूक्ष्म रूप से देखने मे सक्षम हो तो वे आपको नजर आयेंगी। लेकिन ऐसा कोई सूक्ष्मदर्शी संभव नही है जिसके प्रयोग से इस सूक्ष्म स्तर पर देख सकें। इस तरह के विचलन ब्रह्माण्ड के जन्म के समय पर भी उपस्थित थे जिन्हे महाविस्फोट की घटना ने विशाल बना दिया था, इन्ही विशाल विचलन ने गुरुत्विय तरंग उत्पन्न की थी। इन सर्वप्रथम गुरुत्विय तरंगो के प्रभाव को आज भी हम ब्रह्माण्डीय विकीरण(cosmic microwave background) मे देख सकते है। सरल शब्दो मे ये गुरुत्विय तरंगे महाविस्फोट की पश्चात्वर्ती आघात (aftershock) हैं। BICEP2 ने इन्ही गुरुत्विय लहरो के प्रत्यक्ष प्रमाण को देखने मे सफलता पायी है।
कुछ अन्य प्रयोग जैसे काल्टेक की प्रयोगशाला LIGO -Laser Interferometer Gravitational Wave Observatory भी गुरुत्विय तरंगो के सत्यापन का प्रयास कर रहे है लेकिन वे सभी इसके एक और पहलू श्याम विवर द्वारा उत्पन्न गुरुत्विय तरंगो पर केंद्रित है।
BICEP2 द्वारा खोजी गयी गुरुत्विय तरंगे उस समय के समस्त ब्रह्मांड मे विस्तृत हुयी होंगी। इन तरंगो के शीर्ष(peaks) और गर्त(troughs) मे मध्य अरबों प्रकाशवर्ष की दूरी रही होगी।
शुरुवाती ब्रह्मांड द्वारा उत्सर्जित प्रकाश किरणो को हम आज भी ब्रह्मांडीय विकिरणो के रूप मे देख सकते है और ये विकिरण हमे ब्रह्मांड के इतिहास के बारे मे प्रमाण उपलब्ध कराता है। पिछले वर्ष ही यूरोपीयन अंतरिक्ष संस्थान के प्लैंक अंतरिक्ष वेधशाला ने ब्रह्मांड के जन्म के 380,00 वर्ष पश्चात के तापमान का विस्तृत मानचित्र बनाया था, यह मानचित्र इन्ही ब्रह्माण्डीय विकिरण पर आधारित था।
BICEP2 मे B Modes के संकेत
BICEP2 मे B Modes के संकेत
BICEP2 के प्रयोग मे वैज्ञानिको का ध्यान तापमान की बजाय ब्रह्माण्डीय विकिरण के एक विशिष्ट ध्रुविकरण पर था, वे इस विकिरण के विद्युत क्षेत्र की दिशा पर नजरे गड़ाये थे। वैज्ञानिक बजाय ब्रह्माण्डीय विकिरण के एक विशिष्ट ध्रुविकरण(polarisation) “B Modes” की तलाश मे थे क्योंकि यह ध्रुविकरण गुरुत्विय तरंग के फलस्वरूप एक मोड़ जैसा पैटर्न दर्शाता है। B Modes जैसे चक्करदार पैटर्न सिर्फ गुरुत्विय तरंगो से संभव है और इन्ही प्रमाणो को BICEP2 ने खोजा है। वैज्ञानिको के अनुसार ये गुरुत्विय तरंगो के स्पष्ट हस्ताक्षर है।

क्या ये परिणाम विश्वसनिय है?

इस तरह के प्रयोगो मे से यह पहला सफल प्रयोग है। इस पर अभी संदेह करना उचित है जब तक कि इसे प्रयोगो द्वारा दोहरा नही लिया जाता। अगले दो तीन वर्षो मे इस प्रयोग के परिणामो को यदि दोहरा लिया जाता है तभी इन्हे विश्वसनिय माना जायेगा।

सामान्यतः किये जाने वाले प्रश्न(FAQ)

गुरुत्विय तरंगे क्या है ?

गुरुत्विय तरंगे समस्त विश्व मे ऊर्जा का वहन करने वाली लहरे हैं। इनके अस्तित्व का पूर्वानुमान अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा 1916 मे साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के प्रतिपादन मे किया गया था। अब तक इन तरंगो कि उपस्थिति के परिस्थितिजन्य प्रमाण थे लेकिन इन्हे प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित नही किया जा सका था। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि ये तरंगे किसी परमाणु से भी लाखों गुणा छोटी होती है। ये कुछ इस तरह से है कि आप कई किलोमीटर दूर से किसी झील की सतह पर उठने वाली लहर को देखने का प्रयास कर रहे हों।
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है महाविस्फोट(Big Bang) से उत्पन्न मौलिक गुरुत्विय तरंगो की खोज क्योंकि वे हमे ब्रह्माण्ड के निर्माण से संबधित जानकारी उपलब्ध करायेंगी।

साधारण सापेक्षतावाद क्या है?

1916 मे अलबर्ट आइंस्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण बल को गणितिय तरिके से व्यक्त करने के लिए एक अवधारणा विकसित की थी। इस अवधारणा को उन्होने साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत का नाम दिया था। इस सिद्धांत मे काल-अंतराल को एक साथ एक ही निर्देशांक पद्धति के द्वारा दर्शाया गया था, जबकि इसके पहले काल(time) और अंतराल(space) को अलग अलग माना जाता था।
इसके अनुसार काल-अंतराल एक विशाल चादर के जैसे हैं और पदार्थ उसमे अपने द्रव्यमान से एक झोल उत्पन्न करते है। यह झोल ही गुरुत्वाकर्षण बल उत्पन्न करता है। गुरुत्विय तरंगे इसी चादर(काल-अंतराल) मे उत्पन्न लहरे हैं।

इस खोज का क्या महत्व है?

इस खोज के दो महत्वपूर्ण पहलू है। प्रथम तो यह कि यह ब्रह्मांड के अध्ययन के नये क्षेत्र खोलेगा जिससे हम तरंगो की उत्पत्ति और उनके ब्रह्मांड की विभिन्न प्रक्रियाओं पर प्रभाव को समझा जा सकता है। दूसरा इससे आइंस्टाइन के सिद्धांत महाविस्फोट(Big Bang) और ब्रह्मांडीय स्फिति की पुष्टि हुयी है।

गुरुत्विय तरंगो के अस्तित्व की पुष्टि कैसे संभव है?

दक्षिणी ध्रुव पर स्थित दूरबीन BICEP2 गुरुत्विय तरंगो की तलाश मे लगा हुआ है, यह दूरबीन ब्रह्मांडीय विकिरण के एक परिष्कृत गुणधर्म की जांच कर रहा है। ब्रह्मांडीय विकिरण महाविस्फोट से उत्पन्न हुआ था, इसकी खोज 1964 मे आकस्मिक रूप से एक रेडीयो दूरबीन द्वारा की गयी थी। इस ब्रह्मांडीय विकिरण को ब्रह्मांड के जन्म की प्रतिध्वनि कहा गया था। BICEP2 ने इस ब्रह्मांडिय विकिरण का परिष्कृत गुणधर्म अर्थात उसमे उत्पन्न ध्रुविकरण(polarisation) को मापा है और इसका मान अनुमानो के अनुरूप पाया है। ब्रह्मांडीय विकिरण पर इस तरह का पैटर्न केवल गुरुत्विय तरंगो द्वारा ही संभव है और यह भी तभी संभव है जब उसे ब्रह्मांडीय स्फिति(cosmic inflation) द्वारा परिवर्धित(amplified) किया गया हो।

ब्रह्मांडीय स्फिति(cosmic inflation) क्या है?

महाविस्फोट का सिद्धांत जार्ज लैमीत्रे ने प्रतिपादित किया था, इसे उन्होने “बीते कल के बिना आज(the day without yesterday)” का नाम दिया था क्योंकि यह वह क्षण था जब काल और अंतराल(Space and Time) का जन्म हुआ था। लेकिन सभी वैज्ञानिक इससे सहमत नही थे क्योंकि यह सिद्धांत उनके निरिक्षण की पुष्टि नही करता था। ब्रह्मांड मे पदार्थ इतने समांगी(uniform) रूप से वितरित है कि वैज्ञानिक नही मानते थे कि इस तरह का वितरण महाविस्फोट के जैसी प्रलयंकारी घटना से संभव है। 1970 मे वैज्ञानिको मे महाविस्फोट के सिद्धांत मे ब्रह्माण्डीय स्फिति (cosmic inflation) का समावेश किया जोकि महाविस्फोट के एक सेकंड के खरबवे हिस्से के पश्चात घटित हुआ था। लेकिन इसे प्रमाणित करना अत्यंत कठिन था। इस तरह कि स्फिति ही महाविस्फोट के समय की मौलिक गुरुत्विय तरंगो को इस तरह से परिवर्धित कर सकती की उन्हे वर्तमान मे मापा जा सके। यदि वर्तमान मे इस मौलिक गुरुत्विय तरंगो को खोज लिया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि ब्रह्मांडीय स्फिति घटित हुयी है।

आगे क्या ? क्या ब्रह्मांड वैज्ञानिको का कार्य समाप्त हो चूका है?

नही, कार्य तो अब प्रारंभ हुआ है। आइंस्टाइन जानते थे कि साधारण सापेक्षतावाद का मेल क्वांटम भौतिकी से नही होता है। साधारभ सापेक्षतावाद जहाँ पर गुरुत्वाकर्षण और समस्त ब्रह्माण्ड की व्याख्या करता है वहीं पर क्वांटम भौतिकी अत्यंत सूक्ष्म कणो के स्तर पर अन्य बलो विद्युत-चुंबकीय बल , कमजोर और मजबूत नाभिकिय बलों की व्याख्या करता है। दोनो के पैमाने अलग अलग है, एक विशाल स्तर पर, दूसरा सूक्ष्म स्तर पर कार्य करता है। लगभग एक शताब्दि के प्रयासो के पश्चात भी दोनो सिद्धांतो का एकीकरण संभव नही हो सका है। लेकिन मौलीक गुरुत्विय तरंगो की खोज हुयी है, ये तरंगे उस समय उत्पन्न हुयी है जब गुरुत्वाकर्षण तथा ब्रह्माण्ड क्वांटम भौतिकी दोनो एक ही सूक्ष्म पैमाने पर ही कार्य कर रही थी। इन गुरुत्विय तरंगो का विश्लेषण और अध्ययन शायद हमे एक सार्वभौमिक सिद्धांत(Theory Of Everything) की ओर ले जाये।

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