इलेक्ट्रानिक्स फ़ार यु के अक्टूबर 2014 अंक मे प्रकाशित लेख
कुछ संख्याये जैसे आपका फोन नंबर या आपका आधार नंबर अन्य संख्याओं से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इस लेख मे हम जिन संख्याओं पर चर्चा करेंगे वे ब्रह्मांड के पैमाने पर महत्वपूर्ण है, ये वह संख्याये है जो हमारे ब्रह्मांड को पारिभाषित करती है, हमारे आस्तित्व को संभव बनाती है और ब्रह्माण्ड के अंत को तय करेंगी।
1. सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक( The Universal Gravitational Constant)
![Universe](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/universe.jpg?w=700)
![300px-NewtonsLawOfUniversalGravitation](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/300px-newtonslawofuniversalgravitation.png?w=150&h=105)
यह एक दिलचस्प तथ्य है कि इस लेख के तेरह स्थिरांको मे से गुरुत्विय स्थिरांक(G) सबसे पहले खोजा गया है लेकिन इसका मान सबसे कम सटिक रूप से ज्ञात है। इसकी सटिकता मे कमी का कारण यह है कि यह बल अन्य सभी मूलभूत बलों मे सबसे कमजोर बल है। न्युटन के लंदन छोड़कर जाने की तीन शताब्दियों बाद पृथ्वी का द्रव्यमान 6 x 1024 किग्रा होने के बावजूद मानव इस बल को मात देते हुये एक रासायनिक राकेट के प्रयोग से प्रयोग द्वारा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बाहर एक उपग्रह स्पूतनिक कक्षा मे भेजने मे सफल हुआ था।
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक G: 6.67×10−11 N·(m/kg)2
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक G: 6.67×10−11 N·(m/kg)2
2. प्रकाशगति(The Speed of Light)
![LightSpeed](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/lightspeed.jpg?w=700)
उन्नीसवीं सदी के अंत तक तकनीक और प्रयोगविधियों मे इतना विकास हो गया था कि प्रकाशगति को उसकी वास्तविक गति के 0.02 समीप मान तक माप लिया गया था।
अलबर्ट मिशेलसन और एडवर्ड मार्ले (Albert Michelson and Edward Morley) ने दिखाया कि प्रकाशगति उसकी दिशा पर निर्भर नही करती है। इस प्रयोग के परिणामो मे आइंस्टाइन को उनके प्रसिद्ध कार्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के लिये मार्ग दिया जोकि 20 वी सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज थी और शायद अब तक की भी।
अक्सर यह कहा जाता है कि प्रकाश से तेज यात्रा असंभव है। यह सही है कि कोई भी भौतिक वस्तु प्रकाश से तेज यात्रा नही कर सकती लेकिन हमारे कंप्युटर प्रकाशगति के निकट गति से सूचना संसाधन करते है उसके बावजूद हम दस्तावेजों के डाउनलोड होने के लिये अधिरता से इंतजार करते है। प्रकाशगति तेज है लेकिन निराशा की गति उससे भी तेज है।
अक्सर यह कहा जाता है कि प्रकाश से तेज यात्रा असंभव है। यह सही है कि कोई भी भौतिक वस्तु प्रकाश से तेज यात्रा नही कर सकती लेकिन हमारे कंप्युटर प्रकाशगति के निकट गति से सूचना संसाधन करते है उसके बावजूद हम दस्तावेजों के डाउनलोड होने के लिये अधिरता से इंतजार करते है। प्रकाशगति तेज है लेकिन निराशा की गति उससे भी तेज है।
c=299,792,458 m/s
3. आदर्श गैस स्थिरांक(The Ideal Gas Constant)
![GasConstants](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/gasconstants.jpg?w=225&h=300)
राबर्ट बायल(Robert Boyle) शायद ऐसे पहले महान प्रायोगिक वैज्ञानिक थे और वे वर्तमान प्रायोगिक विधि की आधारशीला रखने वालो मे से है जिसमे किसी भी प्रयोग मे एक या एकाधिक ही कारक मे परिवर्तन कर अन्य कारको पर परिवर्तन का मापन किया जाता है। पुनरावलोकन मे यह प्रत्यक्ष दिखायी देता है लेकिन यह एक दूरदर्शिता भरा कदम था।
राबर्ट बायल ने गैस के दबाव और आयतन के मध्य संबध को खोजा था, इसकी एक सदी बाद जैक्स चार्ल्स(Jacques Charles) तथा जोसेफ गे लुसाक(Joseph Gay-Lussac ) ने आयतन और तापमान के मध्य संबध खोजा था। यह खोज सफ़ेद जैकेट पहनकर किसी वातावनुकुलित प्रयोगशाला मे आधुनिक उपकरणो के प्रयोग से नही हुयी थी। इस प्रयोग के लिये गे-लुसाक एक गर्म हवा के गुब्बारे मे 23,000 फ़ीट की ऊंचाई पर गये थे, जोकि उस समय का विश्व रिकार्ड था।
बायल, चार्ल्स तथा गे-लुसाक के प्रयोगो के परिणामो को एक साथ सम्मिलित करने पर कहा जा सकता है कि किसी गैस की निश्चित मात्रा मे तापमान, दबाव तथा आयतन के गुणनफल के अनुपात मे होता है। इस अनुपात के स्थिरांक को आदर्श गैस स्थिरांक कहा जाता है।
R=8.3144621(75) J/ K/ mol
R=8.3144621(75) J/ K/ mol
4. परम शून्य( Absolute Zero)
![AbslouteZero](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/absloutezero.jpg?w=700)
माइकल फैराडे जिन्हे विद्युत के अध्यन के लिये जाना जाता है, ने गैस के विस्तार द्वारा शीतल तापमान की संभावना जतायी थी। फैराडे ने एक बंद परखनली मे कुछ द्रव क्लोरीन का निर्माण किया था, जब इस परखनली को तोड़ा गया , क्लोरीन का दबाव कम हुआ और क्लोरीन तत्क्षण गैस मे परिवर्तित हो गयी। फ़ैराडे ने पाया कि यदि दबाव कम करने पर द्रव गैस मे परिवर्तित की जा सकती है तब गैस पर दबाव डाल कर गैस को द्रव मे परिवर्तित किया जा सकता है जिसका तापमान कम होगा। यही प्रक्रिया रेफ़्रिजरेटर मे होती है, गैस को दबाव से संपिडित किया जाता है और उसे विस्तारित होने दिया जाता है जिससे वह अपने आसपास के पदार्थ को शीतल कर देती है।
20 वी सदी के प्रारंभ से ही वैज्ञानिक दबाव के द्वारा आक्सीजन , हायड्रोजन, हिलीयम को द्रवित करने मे सफल हो गये थे। इस प्रक्रिया मे वे परम शून्य से कुछ डीग्री तक पहुंच गये थे। लेकिन गति से उष्मा प्राप्त होती है और लेजर तकनीक द्वारा परमाणुओं की गति रोकने से हम परम शून्य के पास एक डीग्री के लांखवे हिस्से पास तक शीतल तापमान प्राप्त कर चूके है जोकि −273.15° C से अल्पमात्रा मे ही अधिक है। परम शून्य तक पहुंचना प्रकाशगति प्राप्त करने जैसा ही कठिन है, पदार्थ इस सीमा के समीप तक पहुंच सकता है लेकिन उसे कभी पा नही सकता है।
परम शून्य न्यूनतम सम्भव ताप हैं तथा इससे कम कोई ताप संभव नही हैं । इस ताप पर गैसों के परमाणुओं की गति शून्य हो जाती हैं । इसे 0° केल्विन में दर्शाते हैं ।
5.एवेगाड्रो संख्या( Avogadro’s Number)
![Avogadro's Number](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/avogadros-number.jpg?w=700)
प्रथम कुंजी है, परमाणु सिद्धांत, जिसे 19 वी सदी के आरंभ मे जान डाल्टन(John Dalton) ने खोजी थी। प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक रिचर्ड फ़ेयनमैन(Richard Feynman) के अनुसार परमाणु सिद्धांत इतना महत्वपूर्ण है कि वह कहते है
” किसी भी प्रलय की अवस्था मे यदि समस्त वैज्ञानिक ज्ञान नष्ट होने वाला हो और अगली पीढ़ी के लिये उन्हे एक वाक्य मे ज्ञान देना हो तो कौन सा वाक्य कम से कम शब्दो मे अधिकतम ज्ञान रखेगा ? मुझे लगता है कि वह परमाणु सिद्धांत है, जिसके अनुसार सभी वस्तुये परमाणुओं से बनी है , ऐसे छोटे कण जो अविराम गतिमान रहते है।”
प्रकृति मे 92 तत्व पाये जाते है जोकि ब्रह्मांड के समस्त साधारण पदार्थ का निर्माण करते है। लेकिन ब्रह्माण्ड का अधिकतर पदार्थ यौगिक है जिसमे भिन्न प्रकार के तत्वो का मिश्रण है। इस तरह से आधुनिक रसायन की दूसरी कुंजी है वह खोज है जिसके अनुसार हर यौगिक एक जैसे अणुओं(molecules) से बना है। उदाहरण के लिये शुद्ध जल एक जैसे असंख्य H2O अणुओं से बना है।
लेकिन किसी आयतन मे कुल कितने अणु हो सकते है? हम किसी भी रासायनिक प्रक्रिया के परिणाम का अनुमान लगा सकते है, यह आधुनिक रसायनशास्त्र की एक बड़ी सफलता है। इटालीयन रसायन शास्त्री एमेडीओ एवेगाड्रो ने प्रस्ताव दिया कि समान तापमान और दबाव पर विभिन्न गैसो की समान मात्रा मे समान संख्या मे अणु होंगे। जब उन्होने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया तब उनकी काफी आलोचना हुयी लेकिन इस सिद्धांत द्वारा रसायनशास्त्रीयों को किसी रासायनिक प्रक्रिया के पहले और पश्चात मे मात्रा के मापन द्वारा अणुओं की संरचना के अनुमान मे सहायता मीली। एवेगाड्रो संख्या अर्थात 12 ग्राम कार्बन मे परमाणुओं की संख्या को कहते है और यह लगभग 6 के पश्चात 23 शून्य है। इसे एक मोल मे अणुओं की संख्या भी कहते है, रसायनशास्त्री इस इकाई का प्रयोग किसी पदार्थ की मात्रा के मापन मे करते है।
लेकिन किसी आयतन मे कुल कितने अणु हो सकते है? हम किसी भी रासायनिक प्रक्रिया के परिणाम का अनुमान लगा सकते है, यह आधुनिक रसायनशास्त्र की एक बड़ी सफलता है। इटालीयन रसायन शास्त्री एमेडीओ एवेगाड्रो ने प्रस्ताव दिया कि समान तापमान और दबाव पर विभिन्न गैसो की समान मात्रा मे समान संख्या मे अणु होंगे। जब उन्होने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया तब उनकी काफी आलोचना हुयी लेकिन इस सिद्धांत द्वारा रसायनशास्त्रीयों को किसी रासायनिक प्रक्रिया के पहले और पश्चात मे मात्रा के मापन द्वारा अणुओं की संरचना के अनुमान मे सहायता मीली। एवेगाड्रो संख्या अर्थात 12 ग्राम कार्बन मे परमाणुओं की संख्या को कहते है और यह लगभग 6 के पश्चात 23 शून्य है। इसे एक मोल मे अणुओं की संख्या भी कहते है, रसायनशास्त्री इस इकाई का प्रयोग किसी पदार्थ की मात्रा के मापन मे करते है।
एवेगाड्रो संख्या : 6.022169 x 10 23
6. विद्युत और गुरुत्वाकर्षण की सापेक्ष क्षमता (The Relative Strength of Electricity and Gravity)
![RelativeStrength](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/relativestrength1.jpg?w=700)
लेकिन यह भी अच्छा है कि विद्युत ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण से इतनी ज्यादा शक्तिशाली होने से जीवन इस रूप मे संभव है। जीवन रासायनिक और विद्युत प्रक्रियाओं का एक सम्मिश्रण है, लेकिन रासायनिक प्रक्रियायें भी जो हमारी मासंपेशीयों को ताकत देती है या हमारे भोजन की पाचन प्रक्रियायें भी अपने मूल मे विद्युत ऊर्जा पर ही निर्भर है। रासायनिक प्रक्रियाये परमाणुओं की बाह्य सीमाओं पर स्थित इलेक्ट्रानो के एक परमाणु से दूसरे परमाणु के मध्य पाला बदलने से ही होती है। इस सारी प्रक्रियाओं मे ही विभिन्न यौगिक बनते है क्योंकि इलेक्ट्रानो द्वारा पाला बदलने या एकाधिक परमाणुओं को साझा करने से वे परमाणु अब जुड़ गये है। इलेक्ट्रानो को ही गति से हमारा तंत्रिका तंत्र हमारी मांसपेशीयों को संकेत भेजता है जिससे हम चलफ़िर पाते है, हमारा मस्तिष्क सूचना संग्रहण और निर्णय लेता है और हमारी चेतना का प्रादुर्भाव होता है।
यदि विद्युत ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण से कमजोर होती तो ब्रह्माण्ड वर्तमान रूप मे संभव नही होता, ना ही वर्तमान स्वरूप मे जीवन। हो सकता है कि उस स्थिति मे भी जीवन अपने लिये मार्ग खोज लेता लेकिन हमे उसके लिये कोई दूसरा ब्रह्माण्ड खोजना होगा।
विद्युत ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण बल से 1036 ज्यादा शक्तिशाली है।
7. बोल्ट्जमैन स्थिरांक( Boltzmann’s Constant)
![Boltzmann's Constant](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/boltzmanns-constant.jpg?w=225&h=300)
इस समस्या का हल आस्ट्रियन भौतिक वैज्ञानिक लुडविग बोल्टजमैन ने पाया था, उन्होने खोज की थी कि शीतल जल की तुलना मे बर्फ़ के टूकड़ो साथ गर्म जल मे उष्मा वितरण के ज्यादा तरिके है। प्रकृति का खेल प्रतिशत मे चलता है। वह अक्सर सबसे ज्यादा संभव तरिके को चूनती है और इस संबध को बोल्ट्जमैन स्थिरांक परिभाषित करता है। अव्यवस्था व्यवस्था से ज्यादा सामान्य है, किसी कमरे को साफ करने की बजाये उसे खराब करने के ज्यादा तरिके होते है। व्यवस्थित बर्फ के टूकड़े बनाने की अपेक्षा पिघले बर्फ़ के रूप मे अव्यवस्थित स्थिति बनाना आसान है।
बोल्टजमैन का एन्ट्रापी समीकरण जो बोल्टजमैन स्थिरांक को समाविष्ट करता है, मर्फ़ी के नियम की भी व्याख्या करता है :
यदि कोई चीज गलत हो सकती है तो वह होगी ही। कोई दुष्ट शक्ति आपके साथ कुछ भी गलत होने के लिये जिम्मेदार नही है, गलत चीज होने के तरिके सही चीज होने के तरिके की संख्या मे बहुत ज्यादा होते है।
1.3807 x 10 -23 joule/kelvin (J · K -1 )
8. प्लैंक स्थिरांक(Planck’s Constant)
![Planck's Constant](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/plancks-constant.jpg?w=700)
” आज मेरे पास एक ऐसी अवधारणा है जो न्युटन के सिद्धांतो के जैसे ही क्रांतिकारी और महान सिद्ध होगी”।
मैक्स प्लैंक का विश्वास इतना मजबूत था और समय ने उन्हे सही साबित भी किया। उनके चौंका देने वाले रहस्योद्घाटन के अनुसार ब्रह्माण्ड मे ऊर्जा का वितरण छोटे छोटे पैकेटो के रूप मे होता है, यह परमाण्विक सिद्धांत से मेल खाता था जिसके अनुसार पदार्थ भी छोटे कणॊ अर्थात परमाणुओं से बना है। इन ऊर्जा के छोटे पैकेटो को क्वांटा कहा गया और इन पैकेटो के आकार को प्लैंक स्थिरांक (h) का नाम दिया गया।
मैक्स प्लैंक के क्वांटम सिद्धांत ने ना केवल ब्रह्माण्ड की संरचना की व्याख्या की , उसके अतिरिक्त इसने 20 वी और 21 वी सदी मे तकनिकी क्रांति को एक चिंगारी भी दी। इलेक्ट्रानिक्स मे हर नयी खोज, लेजर से लेकर कंप्युटर, से चुंबकिय अनुनाद छवि निर्माण( magnetic resonance imagers), ये सभी क्वांटम सिद्धांत के आधार पर बने है। इसके अतिरिक्त क्वांटम सिद्धांत हमे वास्तविकता की सहज ज्ञान के विपरीत एक अनोखी तस्विर दिखाता है। कुछ अवधारणायें जैसे समानांतर ब्रह्माण्ड जोकि विज्ञान फंतांशी के भाग हुआ करते थे, अब उन्हे मान्यता मिल रही है। यह सब क्वांटम सिद्धांत की बदौलत संभव हुआ जो यह बताती है कि कोई भी स्थिती ऐसी क्यों है या ऐसा क्यो हो सकता है, यह सिद्धांत हर परिणाम या घटना की सुसंगत व्याख्या करने मे सक्षम है या संतोषजनक रूप से कर पाता है।
मैक्स प्लैंक के क्वांटम सिद्धांत ने ना केवल ब्रह्माण्ड की संरचना की व्याख्या की , उसके अतिरिक्त इसने 20 वी और 21 वी सदी मे तकनिकी क्रांति को एक चिंगारी भी दी। इलेक्ट्रानिक्स मे हर नयी खोज, लेजर से लेकर कंप्युटर, से चुंबकिय अनुनाद छवि निर्माण( magnetic resonance imagers), ये सभी क्वांटम सिद्धांत के आधार पर बने है। इसके अतिरिक्त क्वांटम सिद्धांत हमे वास्तविकता की सहज ज्ञान के विपरीत एक अनोखी तस्विर दिखाता है। कुछ अवधारणायें जैसे समानांतर ब्रह्माण्ड जोकि विज्ञान फंतांशी के भाग हुआ करते थे, अब उन्हे मान्यता मिल रही है। यह सब क्वांटम सिद्धांत की बदौलत संभव हुआ जो यह बताती है कि कोई भी स्थिती ऐसी क्यों है या ऐसा क्यो हो सकता है, यह सिद्धांत हर परिणाम या घटना की सुसंगत व्याख्या करने मे सक्षम है या संतोषजनक रूप से कर पाता है।
h=6.62606957 × 10-34 m2 kg / s
9. स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या( The Schwarzschild Radius)
![Schwarzschild Radius](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/schwarzschild-radius.jpg?w=700)
आइन्सटाइन ने साधाराण सापेक्षतावाद के सिद्धांत को कुछ समीकरणो के रूप मे प्रस्तुत किया था। इन समीकरणो को हल करना अत्याधिक दूष्कर कार्य था लेकिन युद्ध कि विभिषिका के मध्य स्कवार्जचाइल्ड ने उनका हल खोज निकाला। यही नही उन्होने प्रामाणित किया कि किसी भी मात्रा मे पदार्थ को एक विशिष्ट त्रिज्या के गोले मे सांपिडित किया जाये तो वह श्याम विवर बन जायेगा। इस गोले की त्रिज्या स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या कहलाती है। स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या का कोई एक मान नही है, हर विशिष्ट द्रव्ययमान के लिये एक विशिष्ट स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या है।
अधिकतर व्यक्ति यह मानकर चलते है कि श्याम विवर कल्पनातित रूप से लघु, घने और काले होना चाहिये। उदाहरण के लिये पृथ्वी के द्रव्यमान के लिये स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या केवल 1 सेमी है। अर्थात पृथ्वी को श्याम विवर बनाने के लिये उसके संपूर्ण द्रव्यमान को 1 सेमी त्रिज्या मे संपिड़ित करना होगा। लेकिन श्याम विवर खोखले(कम घनत्व के) भी हो सकते है। यदि किसी संपूर्ण आकाशगंगा के द्रव्यमान को उसके तुल्य स्कवार्जचाइल्ड त्रिज्या मे समान घनत्व मे फैलाया जाये तब उस श्याम विवर का घनत्व पृथ्वी के वातावरण का 0.0002 भाग ही होगा।
10. हायड्रोजन संलयन की कार्यक्षमता(The Efficiency of Hydrogen Fusion)
“हम सब सितारो की धूल है।” – कार्ल सागन
और वे सही है। और इसका कारण “हायड्रोजन संलयन की कार्यक्षमता”है।
ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा भाग हायड्रोजन का है। इससे अधिक जाटिल तत्व निर्माण के लिये , विशेषतः जीवन के लिये आवश्यक तत्वो के निर्माण के लिये किसी उपाय से हायड्रोजन से उन तत्वो का निर्माण आवश्यक है। ब्रहाण्ड मे इस कार्य के लिये ढेर सारे कारखाने है जिन्हे हम तारे कहते है, जोकि हायड्रोजन गैस के विशाल गोले है और गुरुत्वाकार्षण से बंधे हुये है। इनका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा है कि इनकॆ केंद्र मे हायड्रॊजन के केण्द्र्क आपस मे जुड़कर हिलियम बनाते है, इसी प्रक्रिया को हायड्रोजन संलयन कहते है।
इस प्रक्रिया मे उत्सर्जित ऊर्जा की गणना आइन्सटाइन के प्रसिद्ध समीकरण E = mc2 से की जाती है। इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन का केवल 0.7 प्रतिशत भाग ही ऊर्जा मे परिवर्तित होता है। यही संख्या 0.007 हायड्रोजन संलयन की कार्यक्षमता है और ब्रह्माण्ड मे जीवन का आस्तित्व इसी संख्या पर निर्भर है, इसमे थोड़ी कमी या बढ़ोत्तरी से जीवन वर्तमान स्वरूप मे संभव नही होगा।
हायड्रोजन संलयन प्रक्रिया के प्रथम चरण मे ड्युटेरीयम (हायड्रोजन का भारी समस्थनिक) का उत्पादन होता है, यदि हायड्रोजन संलयन की कार्यक्षमता 0.006 से कम होती है तो यह चरण सफल नही हो पायेगा। इस अवस्था मे तारों का निर्माण होगा लेकिन वे सिर्फ एक बड़ी चमकती गेंद होंगे जिससे ऊर्जा का उत्सर्जन अल्प मात्रा मे ही होगा जैसे हमारे ग्रह बहस्पति से होता है। यदि हायड्रोजन संलयन की कार्यक्षमता 0.008 या उससे ज्यादा हो तो, संलयन प्रक्रिया अत्यन्त कार्यक्षम होगी और हायड्रोजन से हिलियम का निर्माण अल्पावधि मे होकर समस्त ब्रह्माण्ड की हायड्रोजन समाप्त हो जाती। जल के अणु मे दो हायड्रोजन के परमाणु होते है, इस अवस्था मे जल का निर्माण असंभव होता और जिस रूप मे हम जीवन जानते है, उस रूप मे जीवन का अस्तित्व असंभव होता।
11. चंद्रशेखर सीमा (The Chandrasekhar Limit)
![Chandrasekhar Limit](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/chandrasekhar-limit.jpg?w=700)
किसी तारे का भविष्य उसका द्रव्यमान तय करता है। सूर्य के जैसे तारों का जीवन अपेक्षाकृत लंबा होता है, सूर्य का अभी 5 अरब वर्ष जीवन शेष है उसके पस्चात वह लाल महादानव बन कर पृथ्वी को भी निगल जायेगा। सूर्य से थोड़े बड़े तारे स्वेत वामन बनते है, जोकि अत्यंत उष्ण लेकिन छोटे होते है और धीमे धीमे शीतल होकर मृत हो जाते है। लेकिन यदि तारे एक विशिष्ट द्रव्यमान, चन्द्रशेखर सीमा से ज्यादा द्रव्यमान पार करें तो उनका सुपरनोवा बनना तय होता है।
चंद्रशेखर सीमा सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 1.4 गुणा द्रव्यमान है। सुब्रमण्यण चंद्रशेखर ने इस सीमा की खोज उस समय की थी जब वे केवल 20 वर्ष के थे और उन्होने भारत सॆ इंग्लैंड की भाप के इंजन से चलने वाले जहाज से यात्रा के दौरान खगोलीय संयोजन, सापेक्षतावाद और क्वांटम सिद्धांतो का एकीकरण करते हुये इस सीमा की खोज की थी।
12.हब्बल स्थिरांक (The Hubble Constant)
![Hubble Constant](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/hubble-constant.jpg?w=700)
यदि ब्रह्माण्ड का जन्म एक महाविस्फोट मे हुआ था तब यह घटना कितने समय पहले हुयी थी और ब्रह्माण्ड का वर्तमान आकार कितना है? इन दोनो प्रश्नो मे एक गहरा संबंध है, एक ऐसा संबंध जिसकी संभावना 1920 मे एडवीन हब्बल के लास एन्जेल्स की माउंट विल्सन वेधशाला मे किये निरीक्षणो से सामने आयी थी।
हब्बल ने राडारगन मे प्रयुक्त होने वाली तकनीक जोकि डाप्लर प्रभाव पर आधारित है, के प्रयोग से पाया था कि सारेऎ आकाशगंगाये पृथ्वी से दूर जा रही है। ब्रह्माण्ड मे पृथ्वी की स्थिती खगोलिय दृष्टि से महत्वहीन है, इसका अर्थ यह है कि आकाशगंगाओं का एक दूसरे से दूर जाना सारे ब्रह्माण्ड मे हो रहा होगा। किसी आकाशगंगाअ के पृथ्वी से दूर जाने की गति और उस आकाशगंगा की पृथ्वी से दूरी के मध्य का अनुपात हब्ब्ल स्थिरांक से मिलता है। इससे यह ज्ञात होता है कि ब्रह्माण्ड का जन्म अब से लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले हुआ था।
13. ओमेगा(Omega)
![Omega](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/07/omega.jpg?w=225&h=300)
यदि आप किसी ग्रह से एक राकेट का प्रक्षेपण करें और आपको राकेट की गति ज्ञात हो तब उस राकेट के उसके गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होने की संभावना, ग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर है। उदाहरण के लिये चंदमा के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होने के लिये आवश्यक गति(पलायन वेग-Escape Velocity) रखने वाला राकेट की गति पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होने के लिये पर्याप्त ना हो।
ब्रह्माण्ड का भविष्य का ज्ञान भी कुछ ऐसी ही गणनाओं पर आधारित है। यदि बिग बैंग ने आकाशगंगाओ को आवश्यक गति दे दी थी तब वे हमेशा एक दूसरे से दूर जाते रहेंगी। यदि उनके पास पर्याप्त गति नही हो तो उनका भविष्य भी पर्याप्त पलायन वेग ना होने वाले राकेट के जैसे होगा। सभी आकाशगंगायें वापिस एक महासंकुचन की स्थिति मे वाफिस खिंची जायेंगी।
यह सब ब्रह्माण्ड के कुल द्रव्यमान पर निर्भर करता है। हम जानते है कि यदि ब्रह्मांड का घनत्व 5 हायड्रोजन परमाणु प्रति वर्ग मीटर हो तो वह सारी आकाशगंगाओं को वापिस एक महासंकुचन की स्थिति मे वापिस खिंचने के लिये पर्याप्त होगा।इस शिरोबिंदु को ओमेगा कहा जाता है, यह ब्रह्माण्ड के कुल द्रव्यमान तथा महासंकुचन को रोकने के लिये आवश्यक न्युनतम द्रव्यमान का अनुपात है। यदि ओमेगा का मूल्य 1 से कम है तॊ ब्रह्माण्ड का सतत विस्तार होते रहेगा। यदि यह 1 से ज्यादा है तब दूरस्थ भविष्य मे कभी महासंकुचन प्रारंभ होगा।
अब तक के हमारी गणना के अनुसार ओमेगा का मूल्य 0.98 तथा 1.1 के मध्य है । ब्रह्माण्ड का भविष्य अभी भी अज्ञात है।
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