“एक समय की बात है(Once Upon a time)”……..।
बहुत सारी अच्छी कहानियों की शुरुआत इस जादुई वाक्यांश से शुरू होती है लेकिन समय की कहानी क्या है ? हमलोग हमेशा कहते है समय व्यतीत होता है, समय धन है, हम समय नष्ट करते है, हम समय बचाने की कोशिश कर रहे है लेकिन वास्तव में हम समय के बारे में क्या जानते है ? खैर, समय एक नदी की तरह एक पल से अगले पल तक एक अविनाशी प्रवाह सा लगता है और हमे समय का प्रवाह हमेशा एक दिशा में ही दिखता है वो है भविष्य की ओर। लेकिन यह सही नही है पिछली शताब्दी की खोजों से हमे पता चलता है की हम समय के बारे में जो कुछ सोचते है वह किसी भ्रम से ज्यादा कुछ नही है। हमारी रोज़मर्रा के अनुभव के विपरीत समय बिल्कुल भी किसी के लिए नही बहता। हमारा अतीत कही नही जा सकता और हमारा भविष्य पहले से ही मौजूद हो सकता है। हमे पता है समय की रफ़्तार तेज हो सकती है या धीमी हो सकती है और सभी घटनाएँ जो हमे प्रतीत हो रही है की केवल एक ही दिशा में प्रकट हो सकती है यह सत्य नही है वे अतीत में भी प्रकट हो सकती है।
- लेकिन यह कैसे हो सकता है ?
- हम समय से इतने परिचित होने के बावजूद इतने गलत कैसे हो सकते है ?
- अगर समय ऐसा नही है जैसा हमसब को लगता है तो वास्तव में समय क्या है ?
- समय की शुरुआत क्या है ?
- यह कहाँ से आया है ?
कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और भौतिकविज्ञानी डेविड अल्बर्ट कहते है समय क्या है हर कोई इसे अच्छी तरह से जानता है लेकिन तबतक, जबतक आप उन्हें समय को परिभाषित करने के लिए न कह दे। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफ़ेसर एलेन गुथ का कहना है समय क्या है वास्तव में यह भौतिक के लिए 64000 डॉलर का सवाल है।
तो अब हम इस गहरी और मायावी समय के रहस्य को कैसे उजागर करना शुरू कर सकते है। एक तरीका है समय को मापना। हम विभिन्न आकार एवं कई प्रकार की घड़ियों का उपयोग हजारों वर्षो से समय को सटिकता से मापने के लिए करते आ रहे है। हमारी पहली घड़ी तो हमारी पृथ्वी ही है मतलब पृथ्वी का घूर्णन। हमने पृथ्वी के दैनिक घूर्णन के पुनरावृत्ति को हमेशा ही समय का आकलन करने के लिए उपयोग किया है। हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर पीटर गैलीसन् का कहना है हम हमेशा ही समय को मापने के लिए उन चीजो की तलाश करते रहे है जो बार-बार अपने आप को दोहराता है यह दोहराव का चक्र ही एक घड़ी बन जाता है और यह घड़ी हमारे लिए समय। पृथ्वी की गति को धूपघड़ी के साथ मापने के बाद हमने दिनों को घंटो में बाँट दिया फिर पेंडुलम का उपयोग कर मिनट को सेकंड में विभाजित कर दिया अब हम क्वांटम क्रिस्टल के कम्पनों का उपयोग समय को और सटिकता से मापने के लिए कर रहे है। यदि आप वास्तव में जानना चाहते है की समय क्या है तो आपको कोलोराडो स्थित राष्ट्रीय मानक और प्रौद्योगिकी संस्थान अवश्य जाना चाहिये। यहाँ समय को बहुत अधिक सटीकता से मापा जाता है यह पूरे विश्व का सबसे सटीक समय मापन केंद्र है।

लेकिन हमारी घड़ियां कितनी सटीक है या कितनी गलत है ये कोई बात ही नही है घड़ियां हमेशा चलती रहेगी लेकिन वे हमे आजतक नही बता पायी की समय क्या है और हम क्या माप रहे है ? हम नही जानते की समय क्या है लेकिन समय बीतने का अनुभव हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम हमेशा समय के बारे में सोचते है, अतीत को याद करते है, भविष्य के लिए योजना बनाते है समय की निरंतर टिक-टिक में अपना जीवन जीते है। आप किसी रेलवे स्टेशन पर कभी न कभी गए ही होंगे आप रेलवे स्टेशन जाकर सर्वप्रथम क्या करते है ?…जवाब है आप यह पता लगाते है की ट्रेन समय पर चल रही है या नही। क्या आपको पता है यह ट्रेन यात्रा ही समय के शुरुआती खोजो में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रेलयात्रा के शुरुआती दिनों में समय के कारण एक अनोखी समस्या उत्पन्न हो गयी उसके बाद प्रत्येक शहर को अपना विशेष समय निर्धारित करना पड़ा। हमसब को पता है दोपहर के समय सूर्य ठीक हमारे सर के ऊपर रहता है लेकिन दूसरे शहरों में समय कुछ और ही रहता है क्योंकि इस समय सूर्य उनके सर के ऊपर नही होता हालांकि ये बात ज्यादातर लोगो के लिए बहुत मायने नही रखती। जब हम ट्रेन का सफर करते है तब ट्रेन उस शहर का समय ले सकती है जहाँ से उसने यात्रा शुरू की है। मान लीजिये आप पेरिस से जिनेवा जा रहे है तो आप पूरी तरह से पेरिस के समय पर है क्योंकि आपने पेरिस से यात्रा शुरू की है अगर आप इसके विपरीत यात्रा करते है तब आप जिनेवा के समय पर है। यदि दोनों शहरो के समय में अंतर न किया जाय तो आपको भ्रम उत्पन्न हो जायेगा। यदि किसी दो शहरो में समय का अंतर हो तो कोई ट्रेन यदि अधिक से अधिक रेल लाइन को पार करना शुरू कर देती है तो उस इंटरचेंज पर स्थित लोगो को दोनों शहरो का समय अलग होने के कारण उन्हें भी भ्रम होने लगा तब जाकर लंबी दुरी पर स्थित घड़ियों में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता एक बड़ी समस्या बनकर उभरी खासकर तब जब दो शहर एक ही ट्रेन ट्रैक से जुड़े हो। इस समस्या को दूर करने के लिए सिक्रनाइज घड़ियों की आवश्यकता महसूस की गयी। यही से आधुनिक समय की कहानी शुरू हो गयी।


मान लीजिये मैं अपनी कार से उत्तर दिशा में 60.00 km/h की रफ़्तार से गति कर रहा हूँ मैं अच्छी गति से उत्तर दिशा की ओर बढ़ रहा हूँ। अब मैंने अपनी कार को दूसरी सड़क पर मोड़ दिया है ये सड़क उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर जाती है मैं अब भी 60.00 km/h की रफ़्तार से जा रहा हूँ लेकिन अब मैं उस गति से उत्तर दिशा की ओर नही बढ़ पा रहा जिस गति से मैं कुछ देर पहले बढ़ रहा था। आप कह सकते है की मैंने दोनों दिशाओ में अपनी गति को बाँट दिया है तो क्या मैंने समय को भी दोनों दिशाओ में बाँट दिया है। इसका जवाब है …नही !! मैं समय को गति से अलग नही सकता और मेरी गति समय के साथ किसी दिशा में नही अंतरिक्ष में हो रही थी। समय और अंतरिक्ष के बीच इस अप्रत्याशित सम्बन्ध के कारण, आइंस्टीन को यह एहसास हुआ की समय और अंतरिक्ष को अलग-अलग नही सोचा जा सकता इसलिए उन्होंने इसे स्पेसटाइम(Spacetime) कहा क्योंकि समय और स्थान एक साथ जुड़े हुए है। जब अंतरिक्ष और समय एक दूसरे से अलग नही किये जा सकते तो हम अतीत, वर्तमान और भविष्य के बीच समय का अंतर कैसे कर सकते है आइंस्टीन के अनुसार ये केवल हमारा भ्रम है। हम समय को सतत प्रवाह के रूप में अनुभव करते है इसे हम क्षणों की एक श्रृंखला के रूप में भी देख सकते है जैसे– 14 अरब साल पहले बिगबैंग से हमारे ब्रह्माण्ड का जन्म, आकाशगंगाओं से तारो का जन्म, पृथ्वी का निर्माण, डायनासोर का उदय, आजतक धरती पर होनेवाली सारी घटनाओं से लेकर आपके इस लेख को पढ़ने तक। लेकिन यह सिर्फ समय की श्रृंखला नही है यह तो स्पेसटाइम की श्रृंखला है। इसे समझने के लिए हम एक सरल अवधारणा आपके समक्ष रखते है। मैं अभी कुछ सोच रहा हूँ, कोई बिल्ली अभी मेरी खिड़की से कूद रही है, कोई ट्रेन मुझसे दूर होती जा रही है, एक कबूतर इस क्षण उड़ान भर रहा है, एक उल्का अभी चंद्रमा पर गिर रही है और दूर किसी तारे में विस्फोट हो रहा है। ये सभी घटनाएं स्पेसटाइम के एक ही स्लाइस में हो रही है लेकिन हमारे ब्रह्माण्ड के विभिन्न क्षेत्रो में। अब हम स्वभाविक रूप से सोचने लगते है की अब क्या होगा हमलोग इसे स्पेसटाइम के स्लाइस पर झूठ बोलकर भी चित्रित कर सकते है की अब ऐसा होगा या वैसा होगा।
आम भावना यह कहती है आप और मैं इस बात पर सहमत हो सकते है की इस पल क्या हो रहा है या अभी स्पेसटाइम के स्लाइस पर अभी जो मौजूद है। लेकिन आइंस्टीन ने बताया की जब आप गति करते है तो समय की यह सामान्य समझ वाली स्पेसटाइम की तस्वीर कही नही टिक रही है। यह काफी जटिल अवधारणाओं में से एक है इसे अच्छी तरह समझने के लिए आप स्पेसटाइम को एक फूली हुई लम्बी पावरोटी की तरह मान ले। आइंस्टीन ने कहा इस फूली हुई पावरोटी को अलग-अलग टुकड़ो में काटने के लिए अलग-अलग तरीके है। अब अलग-अलग स्लाइस में स्पेसटाइम को काटने के लिए विभिन्न तरीके है क्योंकि गति स्पेस और समय को प्रभावित करता है। यदि कोई इस स्पेसटाइम में गति कर रहा है तो वह अलग स्लाइड में इस स्पेसटाइम को कटेगा और उस स्लाइस का कोण भी अलग होगा। सरल शब्दों में कहे तो, वह व्यक्ति जो स्पेसटाइम में गति कर रहा होगा अपनी चाकू से स्पेसटाइम के स्लाइस को अलग कोण से काट रहा होगा उसका स्पेसटाइम स्लाइस मेरी स्पेसटाइम के स्लाइस के समानांतर नही होगा। इस विचित्र प्रभाव को समझने के लिए आप कल्पना करे की कोई एलियन हमसे 10 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर किसी और आकाशगंगा में स्थित है यहाँ पृथ्वी के अंतरिक्ष स्टेशन में एक लड़का बैठा हुआ है। दोनों स्पेसटाइम के एक ही स्लाइस में बैठे हुए है और दोनों की घड़िया भी समान दर से चल रही है इसलिए हम कह सकते है दोनों एक ही स्लाइस को साझा कर रहे है जो पावरोटी की सीधी स्लाइस में कट सकती है। यदि वह एलियन अपनी किसी यान से पृथ्वी से और दूर जाने लगे तो उसकी गति समय को धीमा कर देगी अब हमारे अंतरिक्षयात्री लड़के और उस एलियन के घड़ियों की चाल में अंतर आने लगेगा और दोनों स्पेसटाइम के एक स्लाइस को साझा नही कर पायेगे। अब वह एलियन बिलकुल ही अलग तरीके से स्पेसटाइम स्लाइस को कटेगा अब उसकी स्पेसटाइम स्लाइस अंतरिक्षयात्री लड़के के अतीत में जाने वाली है। वह एलियन एक निश्चित गति से दूर जा रहा है और वह जो स्लाइस कटेगा वह बहुत ही छोटी कोण से कट रहा है लेकिन वह छोटा कोण भी इस विशाल दुरी पर स्पेसटाइम के स्लाइस में बहुत बड़ा अंतर ला देगा। अब इस स्थिति में वह एलियन अपने स्पेसटाइम स्लाइस में क्या पायेगा ? हमारा मानना है अंतरिक्षयात्री लड़का उस स्लाइस में कही नही होगा क्योंकि सिर्फ 40 साल पहले हमारा अंतरिक्षयात्री मित्र बच्चा था। हम कल्पना कर सकते है की एलियन के उस स्पेसटाइम स्लाइस में पृथ्वी का 200 साल पुराना इतिहास ही दर्ज रहा होगा उस स्लाइस ने 200 साल पुरानी घटनाओं को ही शामिल किया होगा।
अब हम कल्पना करे की यदि वह एलियन अपने यान से पृथ्वी की ओर आने लगे तो इस स्थिति में भी एलियन बिलकुल ही अलग स्पेसटाइम स्लाइस को कटेगा इस बार उसका स्पेसटाइम स्लाइस हमारे भविष्य में होगा। उस एलियन के कटे स्लाइस में हमारी पृथ्वी की वो घटनाये दर्ज होगी जो पृथ्वी के 200 साल बाद भविष्य में होनेवाली है संभव है 200 साल बाद हमारे महान मित्र की पोती की पोती पेरिस से न्यूयॉर्क तक टेलिपोंटिंग कर रही होगी।
हमलोग अपने अतीत के बारे में सोचते है अपने भविष्य के लिए नए-नए योजनाये बनाते है और अतीत की घटनाओं से सीखते भी है। लेकिन भौतिकविज्ञानियो का मानना है की हमारा अतीत, हमारा वर्तमान और हमारा भविष्य सभी वास्तविक रूप से इस स्पेसटाइम में मौजूद है यदि आप भौतिक विज्ञान के नियमो पर विश्वास करते है तो भविष्य और अतीत उतना ही वास्तविक है जितना वर्तमान एक क्षण के रूप में है। सरल शब्दों में कहे तो हमारा भुत, वर्तमान और भविष्य कही नही जानेवाला है और कभी आनेवाला भी नही है सबकुछ सिर्फ स्पेसटाइम के स्लाइस में ही मौजूद है। आइंस्टीन ने कहा था भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल के बीच कोई भेद नही है यह केवल हमारा एक भ्रम है जो लगातार हो रहा है।
लेकिन अगर समय के प्रत्येक पल पहले से ही मौजूद है तो हम उस वास्तविक मानव भावना को कैसे समझा देते है की समय एक नदी है जो लगातार आगे की ओर प्रवाहमान है ? आप मेरा यकीन करे समय वास्तव में कोई प्रवाह नही है। समय एक जमे हुए नदी के समान है। भौतिक के नियम में समय का कोई प्रवाह विद्यमान नही होता बस हमारे व्यक्तिपरत दृष्टिकोण से ही ऐसा प्रतीत होता है की सभी चीजे लगातार बदल रही है तो समय प्रवाहमान है। ये बात ठीक उसी तरह है जिस तरह एक पूरी फ़िल्म सेल्युलाइड पर पहले से ही मौजूद होती है फ़िल्म के सभी क्षण उस सेल्युलाइड पर पहले से ही मौजूद है बस एक प्रोजेक्टर किसी क्षण(Frame) पर प्रकाश डालता है फिर अगले क्षण पर फिर अगले क्षण पर इस प्रकार सतत क्षण प्रदर्शित होता रहता है। लेकिन हमारे भौतिक के नियमो में प्रोजेक्टर प्रकाश की तरह कुछ होने का कोई सबूत नही है जो एक पल के बाद दूसरे पल का चयन कर रहा है इसी कारण हमारा दिमाग यह धारणा बना लेता है की वास्तव में हमसब समय को एक प्रवाह के रूप में अनुभव करते है यह वास्तव में एक भ्रम से अधिक कुछ नही है। लेकिन अगर समय एक जमी हुई नदी के समान है जिसमे कोई प्रवाह नही है तो क्या अतीत या भविष्य की यात्रा करना संभव है ??
समय यात्रा करना सैद्धांतिक रूप से बिलकुल संभव है लेकिन यह उतना व्यवहारिक नही जितना हम समझते है यदि समय यात्रा की गयी तो वह हमारे कल्पना के अनुसार कुछ नही होगा।
हमसब समय को एक तीर के रूप में देखते है मतलब एक बार इस तीर को छोड़ दिया तो यह वापस नही आनेवाला है। यह तीर हमेशा एक दिशा में आगे बढ़ता है वो है भविष्य की दिशा। अब एक सामान्य सवाल आपके मन में आ रहा होगा की हम केवल एक ही दिशा में सभी घटनाओं को कैसे देखते है ? हम उन घटनाओं को उल्टे क्रम के रूप में क्यों नही देख सकते ?
हम बड़ी सरलता से इसका जवाब दे देते है की भौतिक के नियम ऐसा कुछ करने की अनुमति नही देता। मगर भौतिकविज्ञानी के अनुसार सभी घटनाएं उल्टे क्रम में भी ठीक वैसे ही घटित होती है जैसे भविष्य में घटित होती है। भौतिक समीकरणों में समय तीर के समान नही होता यह भौतिकविज्ञान का समीकरण आपको रोजमर्रा के अनुभव के विपरीत ही लगने वाला है। चलिये आपको थोडा विस्तार से समझा देते है। अभी मेरे हाथो में एक अंडा है। हमसब जानते है , यदि मैं इस अंडे को ऊँचाई से छोड़ दू तो क्या होगा ?…अंडा टूट जायेगा। अब अंडा टूट चूका है। लेकिन भौतिक के नियम के अनुसार इस पूरी घटना को उल्टा किया जा सकता है फिर अंडा साबूत अवस्था मे वापस मेरी हाथो में हो सकता है। बस मुझे सबकुछ उल्टा करना होगा मतलब सबकुछ के वेग को उल्टा करना। अंडे हर टुकड़ा, अंडे के द्रव्य बूँद, सम्पूर्ण तरल का हर एक परमाणु, सम्पूर्ण खोल का हर परमाणु, मेरी मेज यहाँ तक की वायु हर अणु और परमाणु इन सबके वेग को उल्टा करना होगा और फिर !! वही अंडा वापस से मेरे हाथों में होगा ! ये आपको बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य लग रहा होगा लेकिन आप माने या ना माने यह वास्तविक भौतिक सिद्धांत है। भौतिक विज्ञान के नियम इसकी कोई परवाह नही करता की अंडा टूटा है या नही टूटा है, टूटेगा या नही टूटेगा। यहाँ एक प्रश्न खड़ा हो जाता है अंडे का टूटना बड़ा सरल है और उस टूटे अंडे को वापस पूर्वस्थिति में लाना भी संभव है तो रोज़मर्रा के जीवन में टूटे अंडे को पूर्वस्थिति में हम क्यों नही ला पाते ?
19वी सदी के ऑस्ट्रियाई भौतिकविद् लुडविग वोल्ट्ज़मान ने इस प्रश्न का सबसे संतोषजनक उत्तर दिया। उनका समीकरण है (S = K log W) यह एक समीकरण है जिसे एन्ट्रापी समीकरण के नाम से जाना जाता है।
हम जानते है कि जल का प्रवाह नीचे ही ओर होता है, उपर की दिशा मे नही क्योंकि गुरुत्वाकर्षण ऐसे ही कार्य करता गुरुत्वाकर्षण एक बल है और गुरुत्विय आकर्षण इस तरह व्यवहार करता है कि वह पृथ्वी के केंद्र मे स्थित हो और जल नीचे की ओर खींचता है। लेकिन हमारे पास इस तथ्य का कोई सरल व्याख्या नही है कि क्यों किसी गर्म जल के पात्र मे बर्फ़ के टुकड़े पिघल जाते है, और किसी शीतल जल के पात्र मे बर्फ़ के टुकड़े क्यों अपने आप नही बनते है? इसका उष्मा की वितरण से संबंध है और इस समस्या का हल 19 वी सदी की सबसे बड़ी सफलता थी।
इस समस्या का हल आस्ट्रियन भौतिक वैज्ञानिक लुडविग बोल्टजमैन ने पाया था, उन्होने खोज की थी कि शीतल जल की तुलना मे बर्फ़ के टुकड़ो साथ गर्म जल मे उष्मा वितरण के ज्यादा तरीके है। प्रकृति का खेल प्रतिशत मे चलता है। वह अक्सर सबसे ज्यादा संभव तरीके को चुनती है और इस संबंध को बोल्ट्जमैन स्थिरांक परिभाषित करता है। अव्यवस्था व्यवस्था से ज्यादा सामान्य है, किसी कमरे को साफ करने की बजाये उसे खराब करने के ज्यादा तरीके होते है। व्यवस्थित बर्फ के टुकड़े बनाने की अपेक्षा पिघले बर्फ़ के रूप मे अव्यवस्थित स्थिति बनाना आसान है।
बोल्टजमैन का एन्ट्रापी समीकरण जो बोल्टजमैन स्थिरांक को समाविष्ट करता है, मर्फ़ी के नियम की भी व्याख्या करता है :
यदि कोई चीज गलत हो सकती है तो वह होगी ही। कोई दुष्ट शक्ति आपके साथ कुछ भी गलत होने के लिये जिम्मेदार नही है, गलत चीज होने के तरीके सही चीज होने के तरीके की संख्या मे बहुत ज्यादा होते है।
इसे समझने के लिए हम एक सरल प्रयोग करते है मैंने अपनी 569 पृष्टों को अंकित कर क्रमबद्ध कर दिया है अब मैं इसे हवा में उछाल देता हूँ अब मेरे सारे पेज बेतरतीब से बिखर गए है उनके बिखराब का कोई क्रम नही है और इसका कारण भी सरल सा है गलत चीज होने के तरीके सही चीज होने के तरीके की संख्या में बहुत ज्यादा होते है। किसी भी चीज को बनाने के मुकाबले उसे बिगाड़ना ज्यादा आसान होता है तो इसका मतलब स्पष्ट है शायद समय के तीर वाली प्रवृत्ति वास्तव में प्रकृति के प्रवृत्ति के अनुसार ही कार्य करता है। लेकिन एक छोटी समस्या यहाँ भी आ जाती है क्योंकि भौतिक के नियम भविष्य और अतीत में कोई अंतर नही करता इसलिए एन्ट्रापी समीकरण को न केवल भविष्य की ओर बल्कि अतीत की ओर भी बढ़ना चाहिये। यह कहना बड़ा सरल प्रतीत होता है लेकिन एन्ट्रापी को किस दिशा में बढ़ना चाहिये। यदि अतीत में एन्ट्रापी बढ़ रहा होता तो तो मेरी 569 पेज पहले ही अव्यवस्थित हो जाती फिर मेरी हाथो को उसे पुनः व्यवस्थित करना पड़ता।
ब्रह्माण्ड का इतिहास एक फ़िल्म की तरह है यदि हम इस फ़िल्म को पीछे करते जाये तो हम उस स्थान पर आ जायेगे जहाँ अंततः स्पेस और समय एक बिंदु पर आ गये है। इस एकल पल से पहले कोई स्थान और समय का कोई अस्तित्व ही नही है इस आधार पर निम्न एन्ट्रापी क्रम का अंतिम छोर बिगबैंग से शुरू होना चाहिए इससे स्पस्ट है एन्ट्रापी की वृद्धि बिगबैंग के बाद से शुरू हो गयी होगी। भौतिकविज्ञानी मानते है की ब्रह्माण्ड की शुरुआत के समय अन्ट्रोपी कम थी हमारी समझ से बिगबैंग ने समय और स्थान को एक तीर के रूप में ब्रह्माण्ड में निर्धारित कर दिया होगा। फिर हमारे ब्रह्माण्ड का विस्तार असामान्य रूप से शुरू हो गया और उसने समय को एक ही दिशा में निर्धारित कर दिया।
हमे केवल आभास हो रहा है की हम अतीत से भविष्य की ओर आगे बढ़ते जा रहे है। हम जो कुछ देख रहे है जैसे, सितारों का जन्म, हमारी जीवन की छोटी-बड़ी घटनाएँ जो भुत से भविष्य के अंतर को परिभाषित करने वाले ब्रह्माण्ड में बढ़ते हुए विसंगतियों का परिणाम है। हम 13.7 अरब साल पहले की घटना से आजतक विसंगतियों की दिशा में लगातार बढ़ते जा रहे है लेकिन अगर समय की शुरुआत से ही विसंगतियां हमेशा बढ़ रही है तो क्या स्पेसटाइम का अंत भी हो सकता है। बिगबैंग विस्फोट के बाद से ही निरन्तर ब्रह्माण्ड विस्तार कर रहा है और यह विस्तार की गति और तेज होती जा रही है। भविष्य में यह विस्तार अजीब प्रभाव दिखानेवाला है 100 अरब साल बाद सभी आकाशगंगाये हमारे दृष्टि से ओझल हो जायेगी। समय और अंतरिक्ष के अंत के लिए एक सिद्धान्त हमे बताता है की अंततः एक अतिविशाल ब्लैकहोल हमारे ब्रह्माण्ड पर हावी होने लगेगा और सबकुछ उसमे लुप्त हो जायेगा।
यदि हमारे पास घटनाएँ नही होगी तो हम और आप यह कैसे सोच सकेंगे की समय क्या है और समय क्या था ?? लगभग 350 साल पहले आइजैक न्यूटन ने कहा था समय को परिभाषित करने की कोई आवश्यकता नही है क्योंकि हमसब समय को अच्छी तरह जानते है। सामान्य लोगो की धारणा है की समय इस ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करता है और समय का प्रवाह एक नदी की तरह अविनाशी है। वास्तविक रूप से हमे लगता है की समय एक भ्रम से ज्यादा कुछ नही हो सकता हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी समान रूप से इस स्पेसटाइम में मौजूद है। समय के हमारे रोजमर्रा के अनुभव हमेशा एक प्रभावशाली प्रभाव डालते रहेगे और हम सार्वभौमिक कल्पना करना हमेशा जारी रखेगे। हम मानते आ रहे है की हमारा अतीत खत्म हो चूका है और भविष्य आना अभी बाकि है लेकिन हमारी वैज्ञानिक खोज हमारे इन अनुभवो से परे हमे दिखाना चाह रहे है और हमे समझा भी रहे है।
स्रोत :
ब्रायन ग्रीन द्वारा प्रस्तुत वृत्तचित्र द फ़ेब्रिक आफ द कासमास (The Fabric of the Cosmos by Brian Greene : Brain Greene)|
ब्रायन ग्रीन कोलंबीया विश्वविद्यालय मे भौतिक वैज्ञानिक(Physicist, Columbia University) है।
इस लेख मे निम्न वैज्ञानिको के कथन और आइडीयों का समावेश भी किया गया है।
- JANNA LEVIN (Barnard College/Columbia University)
- DAVID ALBERT (Barnard College/Columbia University):
- ALAN GUTH (Massachusetts Institute of Technology):
- MAX TEGMARK (Massachusetts Institute of Technology)
- PETER GALISON (Harvard University):
- WILLIAM PHILLIPS (National Institute of Standards and Technology):
- STEVE JEFFERTS (National Institute of Standards and Technology)
- S. JAMES GATES, JR. (University of Maryland)
- SEAN CARROLL (California Institute of Technology)
- DAVID KAISER (Massachusetts Institute of Technology):
- JOSEPH LYKKEN (Fermi National Accelerator Laboratory
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