गुरुत्विय लेंस अंतरिक्ष में किसी बड़ी वस्तु के उस प्रभाव को कहते हैं जिसमें वह वस्तु अपने पास से गुज़रती हुई रोशनी की किरणों को मोड़कर एक लेंस जैसा काम करती है। भौतिकी के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की वजह से कोई भी वस्तु अपने इर्द-गिर्द के व्योम (“दिक्-काल” या स्पेस-टाइम) को मोड़ देती है और बड़ी वस्तुओं में यह मुड़ाव अधिक होता है। जिस तरह चश्मे, दूरबीन के मुड़े हुए शीशे से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है, उसी तरह गुरुत्वाकर्षण लेंस से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है।
![Gravitational-lensing-A](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/09/gravitational-lensing-a.png?w=300&h=208)
किसी अत्यंत दीप्तीमान पिंड जैसे एक तारे, आकाशगंगा या एक क्वासर की कल्पना किजीये जो कि पृथ्वी से 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर हो। इस लेख मे हम मान लेते है कि वह क्वासर है। यदि हमारे और क्वासर के मध्य कुछ ना हो तो , हम उस क्वासर की एक छवि देख पायेंगे। लेकिन यदि कोई महाकाय आकाशगंगा या आकाशगंगा समूह हमारे और उस क्वासर के मध्य हो और हम उस क्वासर को देख ना पा रहे हों तो क्या होगा ?
![Gravitational-lensing-B](https://vigyan.files.wordpress.com/2014/09/gravitational-lensing-b.png?w=300&h=222)
सामान्यत: मे पृथ्वी और क्वासर के मध्य की आकाशगंगा क्वासर-पृथ्वी के मध्य की सरल रेखा के केंद्र मे नही होती है, इस अवस्था मे क्वासर उत्सर्जित प्रकाश के दो पथ आकाशगंगा से भिन्न दूरी तय कर आयेंगे। और क्वासर की छवियाँ हमे भिन्न भिन्न दूरी पर बनते दिखायी देंगी। चित्र ब देखें।
अंत मे इन सभी पिंडो के मध्य दूरी इतनी अधिक है कि आकाशगंगा की त्रिज्या तथा आकाशगंगा का द्र्व्यमान वितरण को एक बिंदु के रूप मे माना जा सकता है, इससे गणना मे आने वाली त्रुटि नगण्य होगी। अब हम सरल ज्यामिति के प्रयोग से उस आकाशगंगा के द्रव्यमान, आकाशगंगा की दूरी तथा दोनो छवियों की दूरी के आधार पर उस क्वासर की वास्तविक दूरी की गणना कर सकते है।
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