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Wednesday, 14 June 2017

सूर्य की ओर मानवता के दूत : एक नजर प्रमुख सौर अभियानो पर

हमारे सौरमंडल का केंद्र और पृथ्वी पर जीवन का प्रथम कारण “सूर्य” जो एक दहकता हुआ खगोलीय पिंड है। हमारी पृथ्वी की तरह सौरमंडल के अन्य ग्रह भी सूर्य के चक्कर लगाते हैं। और सूर्य से इन्हें प्रकाश मिलता है जिससे इनका ताप बना रहता है। हमारी पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। और इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान की तुलना में लगभग 332000 गुना है। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से मिलकर बना है।
सूर्य के उच्च ताप एवं उसके आंतरिक हेलिओस्फियर (हमारी सौर प्रणाली का सबसे भीतरी क्षेत्र) का अध्ययन करने के लिए भिन्न भिन्न देशों के वेेधशालाओं ने सौर अभियान शुरू किया जिनमें कुछ सफल हुए और कुछ असफल। प्रस्तुत है इनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण:

1- पायनीर (pioneer) मिशन

पायोनीर(Pioneer10-11)
पायोनीर(Pioneer10-11)
वर्ष 1959 और 1968 के मध्य सूर्य पर अध्ययन करने के लिए नासा द्वारा पायनीर 5,6,7,8 और 9 उपग्रह भेजा गया था। इन उपग्रहों ने सौर पवन और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की पहली विस्तृत माप दी थी। इसके लिए ये उपग्रह सूर्य से उतनी ही दूरी पर परिक्रमा कर रहे थे,जितनी दूरी पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
पायनीर 9 काफी लंबे समय तक काम करता रहा और उसने मई 1983 तक आंकड़े भेजें।
लक्ष्य : इस मिशन का लक्ष्य सौर पवन और सौर चुंबकीय क्षेत्रों को मापना था।
असफलता के कारण : वर्ष 1983 में अंतरिक्ष यान तकनीकी समस्या आ जाने के कारण संकेत भेजने में असफल रहा।

2- हेलिओस अंतरिक्ष यान और स्काईलैब अपोलो टेलिस्कोप माउंट

हेलिओस(Helios)
हेलिओस(Helios)
1970 के दशक में प्रक्षेपित किए गए ये दोनो उपग्रहों ने सौर कोरोना ( एक प्लाज्मा की परत जो सूर्य एवं अन्य तारों को चारों ओर से घेरे रहता है।) के नए आंकड़े उपलब्ध करवाए।
हेलिओस 1 और 2 का प्रक्षेपण अमेरिका एवं जर्मनी द्वारा संयुक्त रुप से किया गया था।
लक्ष्य : इनका लक्ष्य किसी अन्य कक्षा से बुध ग्रह की कक्षा के अंदर अंतरिक्ष यान को ले जाने के लिए सौर पवन का अध्ययन करना था।
असफलता के कारण : पिछले अंतरिक्ष यानों ने उड़ान संख्याओं के रिकॉर्ड को तोड़ने में सफलता हासिल की थी। लेकिन हेलिओस ऐसा नहीं कर सका और करीब 30 मिनट के उड़ान के बाद शक्तिशाली पवन से टकरा कर, प्रशांत महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
वर्ष 1973 में नासा ने स्काईलैब स्पेस स्टेशन की शुरूआत की जिसमें एक सौर वेधशाला मॉड्यूल था। इस वेधशाला का नाम “अपोलो टेलिस्कोप माउंट” था। पहली स्काईलैब में सौर संक्रमण क्षेत्र एवं सौर कोरोना से उत्सर्जित होने वाली पराबैगनी किरणों का पर्यवेक्षण किया। इन पर्यवेक्षकों में कोरोना से बड़े पैमाने पर होने वाले उत्सर्जन यानी ‘क्षणिक प्रभामंडल’ और सौर पवन से कोरोनल छिद्रों का पहली बार निरक्षण भी शामिल है।

3- मैक्सिमम मिशन

वर्ष 1980 में नासा ने सौर मैक्सिमम मिशन की शुरुआत की थी।
लक्ष्य : इस अंतरिक्ष यान का लक्ष्य उच्च सौर गतिविधि और सौर प्रकाश के दौरान सौर विकिरण से निकलने वाली गामा किरणें,एक्स-रे और पराबैंगनी विकिरणों की जांच करना था।
असफलता के कारण : प्रक्षेपण के कुछ महीनों के बाद इलेक्ट्रॉनिक विफलताओं की वजह से अंतरिक्ष यान स्टैंडबाई मोड में चला गया और अगले 3 वर्षों तक यह निष्क्रिय पड़ा रहा।
लेकिन 1984 में अंतरिक्ष यान चैलेंजर मिशन STS-41 मैं उपग्रह को खोज निकाला और जून 1989 में पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले इसने सौर कोरोना की हजारों तस्वीरें ली।

4- योहकोह (सूरज- sunbeam)

योहकोह
योहकोह
वर्ष 1991 में जापान का योहकोह उपग्रह प्रक्षेपित किया गया था।
लक्ष्य : इसका लक्ष्य एक्स-रे तरंगदैर्ध्य पर सूर्य की रोशनी का निरीक्षण करना था।
असफलता के कारण : इसने पूरे सौर चक्र का निरीक्षण किया लेकिन 2001 के वार्षिक ग्रहण के बाद स्टैंडबाई मोड में चला गया और इसके कारण 2005 में वायुमंडल में पुनः प्रवेश करने पर पूरी तरह से नष्ट हो गया।
हिनोडे (Hinode) ,योहकोह (सौर-ए) (yohkoh (solar-A)) मिशन का अनुवर्ती है और 22 सितंबर 2006 को इसे एम-वी-7 राकेट की अंतिम उड़ान के माध्यम से यूचीनोरा अंतरिक्ष केंद्र जापान से प्रक्षेपित किया गया। इसका उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना और उसके चुंबकीय क्षेत्रों को पता लगाना था। इसमें तीन वैज्ञानिक उपकरण-सौर आप्टिकल टेलिस्कोप,एक्सरे टेलीस्कोप और एक्सट्रीम पराबैगनी इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लगे थे। यह तीनों उपकरण मिलकर कोरोना के फोटोस्फीअर से निकलने वाले चुंबकीय ऊर्जा को पैदा होने,उसके परिवहन और अभय का अध्ययन करेंगे और सूर्य के बाहरी वातावरण और जैसे-जैसे यह क्षेत्र ऊपर की ओर बढ़ते हैं उस स्थिति में सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा कैसे जारी होती है चाहे वह धीरे-धीरे हो या तेजी से उसे भी दर्ज करेंगे।

5- द सोलर एंड हेलिस्फेरिक ऑब्जरवेट्री

इसका निर्माण यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने मिलकर किया था इस सबसे महत्वपूर्ण सौर मिशन को 2 सितंबर 1995 को प्रक्षेपित किया गया था।
लक्ष्य : इसे सूर्य की आंतरिक संरचना,उसके व्यापक बाहरी वातावरण और सौर पवन की उत्पत्ति के अध्ययन के लिए डिज़ाइन किया गया था।यह काफी सफल रहा और सोलर डायनामिक्स ऑब्जरवेट्री नाम से अनुवर्ती मिशन को फरवरी 2010 में प्रक्षेपित किया गया।
यह पृथ्वी और सूर्य के बीच लैंग्रेगियन बिंदु पर स्थित है जहां दोनों का गुरुत्वीय खिंचाव समान है।

6- द सोलर टेरिस्टियल रिलेशंस ऑब्जरवेट्री

इस मिशन को अक्टूबर 2006 में नासा ने शुरू किया था।
लक्ष्य : इसका लक्ष्य सूर्य की अनदेखी तस्वीरें लेना अर्थात स्टीरियो ए और बी सूर्य के स्टीरियोस्कोपिक तस्वीरें और कोरोनल मास इजेक्शंस, अगर ग्रहीय स्थान में कणों की तेजी और पृथ्वी के घटनाक्रम की तस्वीरें लेने में सक्षम होंगे।
असफलता के कारण : सूर्य के हस्तक्षेप के कारण अक्टूबर 2014 में नासा का संपर्क स्टीरियो बी से टूट गया।
अब नासा बहुत पहले लगभग 2 वर्षों के बाद संपर्क टूट चुके अंतरिक्ष यान से फिर से संपर्क साध चुका है। लेकिन वैज्ञानिकों को अभी भी यह पता लगाना बाकी है कि अंतरिक्ष में करीब 10 वर्ष तक रहने के बाद भी क्या स्टेरियो-बी अपना मिशन जारी रख सकता है।

7- इंटरफेस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफी(IRIS)

आइरीस(iris explorer)
आइरीस(iris explorer)
इस अंतरिक्ष यान को नासा के द्वारा 27 जून 2013 को प्रक्षेपित किया गया था।
लक्ष्य : ऑर्बिटल साइंसेस को ऑपरेशन पीगासस एक्सएल राकेट द्वारा कक्षा में स्थापित यान के माध्यम से सौर वायुमंडल का अध्ययन करना इसका लक्ष्य था।और यह मिशन सफल रहा जो अभी भी काम कर रहा है।

8- सोलर प्रोब प्लस

सोलर प्रोब प्लस
सोलर प्रोब प्लस
नासा ने महत्वकांक्षी सोलर प्रोबलम निशान तैयार करने के लिए जॉन हाप्किन्स यूनिकर्सिटी अप्लाइड फिजिक्स लेबोरेट्री की मदद ली है।
लक्ष्य : इसका मुख्य लक्ष्य सूर्य कोरोना-इसका बाहरी वातावरण जिससे सौर पवन पैदा होती है, के भीतर से अंतरिक्ष में आवेशित कणों की धाराओं जिनसे सूर्य टकराता है और हमारी सौर प्रणाली में जो यह सामग्री लेकर आती है का अध्ययन करना था। इसे 31 जुलाई 2018,को प्रक्षेपित किया गया जाएगा।

9- “आदित्य”

आदित्य-1
आदित्य-1
सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला मिशन है-आदित्य एल-1। यह मूल रूप से इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान)का एक कोरोनाग्राफी मिशन है ,जिसे भारत सरकार के अंतरिक्ष आयोग ने मंजूरी दी है यह परियोजना एक राष्ट्रीय प्रयास है और इसमें शामिल हैं – इसरो, आईआईए (भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान), उदयपुर सौर वेधशाला,एरिस (आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान),टीआईएफआर ( टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान) और कुछ अन्य भारतीय विश्वविद्यालय।
संस्कृत में सूर्य को “आदित्य” कहा जाता है इसलिए इस मिशन का नाम आदित्य रखा गया है।
लक्ष्य : इसका मुख्य उद्देश्य इस में लगे क्रोनोग्राफर और युवी इमेजर समेत कई उपकरणों के माध्यम से क्रोमोस्फिअर की सौर गतिशीलता और कोरोना का अध्ययन करना है ।यह एल1 के चारों ओर कक्षा में किसी भी ग्रहण प्रच्छादन के बिना सतत सौर पर्यवेक्षण मुहैया कराएगा और यह आने वाले आवेशित कणों की सटीक माप करने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के बाहर उचित निगरानी रखेगा।
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