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Wednesday, 14 June 2017

सौरबाह्य(EXOPLANET) ग्रहों की खोज का विज्ञान

अगस्त 2016 तक 3000 से अधिक सौरबाह्य ग्रह खोजे जा चुकें है। इनमे से लगभग 100 ग्रहों को 2004 पश्चात चीली स्थित ला सिल्ला वेधशाला(La Silla) के हाई एक्युरेशी रेडियल वेलोसिटी प्लेनेट सर्चर(High Accuracy Radial Velocity Planet Searcher- HARPS) के द्वारा खोजा गया है। 2009 के पश्चात एक हजार से अधिक ग्रहों को नासा की केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला के द्वारा खोजा गया है। इस लेख मे हम कई प्रकाश वर्ष दूर स्थित इन सौरबाह्य ग्रहों को खोजने मे आने वाली चुनौतियों तथा उन्हे खोजने की विभिन्न तकनीकीयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।exoplanet01

सौरबाह्य(Exoplanet) क्या होते है?

सौरबाह्य ग्रह सूर्य के अतिरिक्त किसी अन्य तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह को कहा जाता है। इन खोजे गये सौरबाह्य ग्रहों मे सबसे छोटा ग्रह हमारे चंद्रमा से दुगुना द्रव्यमान वाला है जबकि सबसे विशाल बृहस्पति से 29 गुण द्रव्यमान वाला है।
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इनका वर्गीकरण कैसे होता है ?

सौरबाह्य ग्रहों को उनके द्रव्यमान के अनुसार वर्गिकृत किया जाता है। इनके छ: मुख्य वर्ग है :
लघु पृथ्वी(Sub Earth), पृथ्वी सदृश(Earth Like) , महा-पृथ्वी(Super Earth)
नेपच्युन सदृश(Neptune Like), बृहस्पति सदृश(Jupiter Like), महा-बृहस्पति(Super Jupiter)
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पृथ्वी सदृश कितने सौरबाह्य ग्रह है?

यदि एक तारे के पास एक ग्रह का औसत मानकर चले तथा कुछ तारों के पास एकाधिक ग्रह माने तब सूर्य के जैसे हर पांच तारों मे एक के पास पृथ्वी सदृश ग्रह है। मंदाकिनी आकाशगंगा मे 200 अरब तारे है, जिससे संभावना है कि हमारी ही आकाशगंगा मे लगभग 11 अरब पृथ्वी सदृश ग्रह होंगे।
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अब तक कितने सौर बाह्य ग्रह खोजे जा चुके है ?

  • 3,275 ग्रहों की पुष्टि
  • 2,416 ग्रहों के अपुष्ट प्रमाण
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इतने कम ग्रह क्यों खोजे गयें है?

सर्वप्रथम सौर बाह्य ग्रह की खोज अत्याधिक कठीन है। इस खोज मे तीन प्रमुख चुनौतियाँ है :
  1. ये ग्रह अपने मातृ तारे की प्रखर दीप्ति मे खो जाते है।
  2. इन ग्रहों का अपना प्रकाश नही होता है जिससे वे अपने मातृ तारे से लाखो गुणा धुंधले होते है।
  3. ये अत्याधिक दूरी पर स्थित है। इनमे से सबसे निकट का खोजा गया ग्रह प्रोक्सीमा बी भी हमसे 4.3 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। अन्य सभी इससे अधिक दूरी पर स्थित है।
दूसरे इन सौर बाह्य ग्रहों की खोज की तकनीक हाल-फ़िलहाल मे ही विकसीत की गई है। उन्नत निरीक्षण तकनीक तथा उन्नत उपकरण जैसे HARP तथा केप्लर वेधशाला के द्वारा इन ग्रहों की खोज तथा पुष्टि का इतिहास केवल 10-12 वर्ष पुराना है।
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सर्वप्रथम खोजा गया सौर बाह्य ग्रह कौनसा था?

सर्वप्रथम सौर बाह्य ग्रह 1988 कनाडा के खगोल वैज्ञानिकों ब्रुस कैम्पबेल(Bruce Campbell), जी ए एच वाकर (G. A. H. Walker)तथा स्टीफन यंग(Stephan Yang) मे गामा सेफई(Gamma Cephei) की परिक्रमा करता ग्रह खोजा था। ये वैज्ञानिक विक्टोरीया विश्वविद्यालय तथा कोंलंबिया विश्वविद्यालय से संबधित थे। लेकिन इस ग्रह की पुष्टि 2003 मे ही हो पायी थी।
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सौर बाह्य ग्रहों की खोज कैसे होती है ?

सौर बाह्य ग्रहों की खोज की दो विधियाँ है, प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। किसी सौरबाह्य ग्रह की खोज की प्रत्यक्ष विधी मे उस ग्रह का सीधे सीधे चित्र लिया जाता है, इसके द्वारा अत्याधिक द्रव्यमान वाले ग्रह तथा अपने मातृ तारे से अधिक दूरी वाले ग्रहों की खोज हो पाती है। सामान्यत: ये ग्रह गैस महाकाय ग्रह होते है जोकि अत्याधिक उष्ण और तीव्र अवरक्त विकिरण का उत्सर्जन करते है, इस विकिरण को विशेष रूप से बनाये गये सीधे चित्र लेनेवाले उपकरणो द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। लेकिन अब तक खोजे गये ग्रहों मे से अधिकांश को अप्रत्यक्ष विधि से खोजा गया है।
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ये अप्रत्यक्ष विधियाँ कौनसी है ?

कोणिय गति(Radial Velocity)

इस विधि मे अत्याधिक संवेदनशील स्पेक्ट्रोग्राफ का प्रयोग होता है जो कि तारे के प्रकाश वर्णक्रम(Spectrum)मे इस तारे की परिक्रमा करते छोटे ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न विचलन को पकड़ लेता है। यदि यह तारा निरीक्षक की ओर गति कर रहा है तो वर्णक्रम नीले रंग की ओर विस्थापित होगा, यदि निरीक्षक से दूर जा रहा है तो वर्णक्रम लाल रंग की ओर विस्थापित होगा। खगोल वैज्ञानिक इस तारे के वर्णक्रम मे एक निश्चित अवधि मे होने वाले लाल, नीले और वापस वास्तविक वर्णक्रम को पाने का प्रयास करते है। यदि किसी तारे के वर्णक्रम इस तरह का सावधिक विचलन (लाल, नीले , मूल वर्णक्रम) पाया जाता है तो यह उस तारे की परिक्रमा करते किसी अन्य पिंड की उपस्थिति का संकेत होता है। यदि इस विचलन की मात्रा अधिक ना हो तो वह पिंड कोई ग्रह ही हो सकता है।

गुण

सौरबाह्य ग्रह की खोज मे सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विधि। पृथ्वी से 100 प्रकाशवर्ष की दूरी तक के तारों के ग्रहों की खोज मे सहायक

कठीनाईयाँ

ग्रह के द्रव्यमान की गणना सटिक रूप से नही की जा सकती है; खोजा गया पिंड ग्रह ना होकर कम द्रव्यमान वाला तारा भी हो सकता है।
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संक्रमण विधि(Transit Photometry)

जब कोई अपने मातृ तारे के सामने से गुजरता है तो वह अपने मातृ तारे के प्रकाश को किंचित रूप से मंद करता है। तारे तथा पृथ्वी के मध्य से ग्रह के गुजरने को संक्रमण(Transit) कहा जाता है। तारे के प्रकाश मे यदि एक नियत अंतराल पर कमी आती है तो यह किसी ग्रह के द्वारा नियत अंतराल पर तारे के सामने से गुजरने का संकेत होता है। प्रकाश मे आने वाली कमी की मात्रा से ग्रह के आकार का भी पता लगाया जा सकता है, एक छोटा ग्रह तारे के प्रकाश मे किसी बड़े ग्रह की तुलना मे अपेक्षाकृत रूप से कम मंदी लाता है।

गुण

किसी सौर बाह्य ग्रह की खोज की सबसे संवेदनशील विधि; विशेषत: केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला जैसे उपकरणो के लिये यह सर्वोत्त्म विधि है। इस वेधशाला ने अबतक इस विधि से हजारो सौर बाह्य ग्रह खोजे है। इस विधि के द्वारा सौर बाह्य ग्रह के वातावरण मे विभिन्न गैसो की उपस्थिति और मात्रा को भी ज्ञात किया जा सकता है। सैकड़ो प्रकाशवर्ष की दूरी पर तारों के ग्रहों की खोज के लिये बेहतरीन विधि।

कठिनाईयाँ

इस विधि से ग्रह की खोज मे निरीक्षण काल मे संक्रमण होना चाहिये। दो संक्रमणो के मध्य अंतराल उस ग्रह के अपनी कक्षा मे परिक्रमा काल के अनुसार महिनो से लेकर वर्षो तक हो सकता है तथा संक्रमण कुछ घंटो से लेकर कुछ दिनो तक का हो सकता है। इस विधि मे खगोल वैज्ञानिको को एक नही, एकाधिक संक्रमण का एक नियमित अंतराल मे निरीक्षण करना होता है।
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गुरुत्विय माइक्रोलेंसींग(Gravitational Microlensing)

गुरुत्विय माइक्रोलेंसींग किसी तारे के प्रकाश द्वारा किसी अन्य तारे के अत्याधिक समीप से गुजरने से उत्पन्न खगोलिय प्रभाव है। इस प्रभाव मे मध्य का तारा अपने गुरुत्वाकर्षण द्वारा किसी लेंस के जैसे अपने पीछे के तारे के प्रकाश को आवर्धित करता है जिससे उसका प्रकाश किसी दीप्तिवान तश्तरी के जैसे दिखाई देता है। यह एक सामान्य माइक्रोलेंसीग प्रभाव है जो मध्य के लेंस तारे के समीप परिक्रमा करते किसी ग्रह के कारण प्रभावित होता है क्योंकि उस ग्रह का गुरुत्वाकर्षण भी इस प्रकाश को परिवर्तित कर देता है। पृथ्वी पर से निरिक्षण करते समय किसी ग्रह द्वारा उत्पन्न यह प्रभाव तत्कालिक रूप से प्रकाश मे बढोत्तरी के रूप मे दिखाई देता है, यह बढोत्तरी कुछ घंटो से लेकर कुछ दिनो तक हो सकती है। सामान्य माइक्रोलेंसींग प्रभाव और ग्रह की उपस्थिति द्वारा प्रभावित माइक्रोलेंसीग हुये प्रकाश मे बढोत्तरी की तुलना कर किसी ग्रह की उपस्थिति का पता लगाया जाता है।

गुण

इस विधि मे अत्याधिक चकित करने वाली दूरी पर भी ग्रह खोजे का सकते है। जनवरी 2006 मे हमारी आकाशगंगा के केंद्र के समीप 22,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर इस विधि से एक ग्रह खोजा गया था। इस विधि से ग्रह का द्रव्यमान तथा परिक्रमा काल भी ज्ञात किया जा सकता है। एक साथ हजारो ग्रहों को लक्ष्य कर, उस क्षेत्र मे एक भी माइक्रोलेंसीग घटना होने पर उसे देखा जा सकता है और ग्रह को खोजा जा सकता है।

कठिनाई

कठिन तथा अनुमान लगाना मुश्किल। इस विधि से निरीक्षित ग्रह को इस विधि से दोबारा जांचना लगभग असंभव क्योंकि किसी तारे का पृथ्वी की सीध मे किसी अन्य तारे के सामने से गुजरना एक दूर्लभ और आकस्मिक घटना होती है, जिसका दोहराव लगभग असंभव होता है। 2006 मे खोजा गया ग्रह इस विधि से खोजा गया केवल तीसरा ग्रह है।
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आस्ट्रोमेटरी(Astrometry)

इस विधि मे किसी तारे की आकाश मे स्थिति को अत्याधिक सटिक रूप से मापा जाता है। खगोलवैज्ञानिक तारे की स्थिति मे लघु लेकिन नियमित डगमगाहट को मापते है। यदि उन्हे एक नियमित अंतराल मे डगमगाहट मिलती है तो यह किसी परिक्रमा करते ग्रह की उपस्थिति के सशक्त संकेत होते है।

गुण

सबसे संवेदनशील तथा सबसे पुरानी विधियों मे से एक। इस विधि मे सौर बाह्य ग्रह , उसके तारे तथा पृथ्वी एक रेखा मे रहने की आवश्यकता नही होती है जिससे इस विधि को अधिक संख्या मे तारो पर प्रयोग किया जा सकता है। इस विधि से ग्रह के द्रव्यमान की सटिक गणना की जा सकती है।

कठिनाई

इस विधि के प्रयोग के लिये अत्याधिक सटिक मापन की आवश्यकता होती है जो विशाल तथा अत्याधुनिक दूरबीनो से ही किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग पिछले 50 वर्षो से किया जा रहा है लेकिन इस विधि से पहली सफ़लता 2009 मे ही मिल पायी थी।
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कक्षीय दीप्ति(Orbital Brightness)

किसी तारे के प्रकाश की पृथ्वी तक पहंचने वाली मात्रा मे किसी ग्रह की परिक्रमा के फलस्वरूप कमी की बजाय बढोत्तरी हो सकती है। यह स्थिति ग्रह के अपने मातृ तारे के अत्याधिक निकट से परिक्रमा करने के कारण तारे के प्रकाश द्वारा ग्रह को गर्म करने से उत्पन्न उष्मीय विकिरण से आ सकती है। इस विकिरण को तारे के विकिरण से अलग करके देखा नही जा सकता लेकिन दूरबीने तारे के प्रकाश मे एक नियमित अंतराल मे प्रकाश मे बढोत्तरी के निरीक्षण से किसी ग्रह की उपस्थिति की खोज कर सकती है।

गुण

संक्रमण विधि के जैसे ही किसी तारे के निकट परिक्रमा कर रहे विशाल ग्रह की खोज के लिये उपयोगी लेकिन इस विधि मे तारा, ग्रह और पृथ्वी के एक रेखा मे होने की आवश्यकता नही है।

कठीनाई

इस विधि से बहुत कम ग्रह खोजे गये है।
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